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इंसेफेलाइटिस इलाज के लिए 40 करोड़ देने में भी कंजूसी कर रही है केन्द्र व यूपी की सरकार

इंसेफेलाइटिस मरीजों के इलाज में लगे 300 से अधिक चिकित्सकों व कर्मियों के वेतन, दवाइयों, उपकरणों की मरम्मत के लिए हर वर्ष 30 करोड़ की जरूरत
इंसेफेलाइटिस वार्ड के पीआईसीयू को लेवल 3 आईसीयू में अपग्रेड करने के लिए भी 10 करोड़ नहीं मिला
इस बजट को वार्षिक कार्ययोजना में शामिल करने की है मांग

100 बेड वाले इंसेफेलाइटिस वार्ड में तो दो वर्ष तक 108 कर्मियों के वेतन का बजट नहीं दिया और इस महीने ये पद भी समाप्त कर दिये 

मनोज कुमार सिंह

गोरखपुर, 31 अगस्त। बीआरडी मेडिकल कालेज का दौरा करने वाले केन्द या राज्य सरकार के मंत्री एक बात जरूर कहते हैं कि इंसेफेलाइटिस मरीजों के इलाज के लिए धन की कमी नहीं होने दी जाएगी। साथ ही वे मेडिकल कालेज के प्राचार्य व अन्य ओहदेदारों को निर्देश देते हैं कि इंसेफेलाइटिस मरीजों के इलाज के लिए जरूरी धन का प्रस्ताव भेजें।
बीआरडी मेडिकल कालेज पिछले चार-पांच वर्षों से केन्द्र और प्रदेश सरकार को जो प्रस्ताव भेजता रहा है उसमें सर्वाधिक इस बात के हैं कि इंसेफेलाइटिस मरीजों के इलाज में लगे चिकित्सकों, नर्स, वार्ड ब्वाय व अन्य कर्मचारियों का वेतन, मरीजों की दवाइयां तथा उनके इलाज में उपयोगी उपकरणों की मरम्मत के लिए एकमुश्त बजट आवंटित की जाए। यह बजट एक वर्ष का करीब-करीब 40 करोड़ आता है लेकिन दोनों सरकारें आज तक यह नहीं कर सकी हैं। यही नहीं केंद्र सरकार ने तो 108 कर्मियों के लिए धन नहीं दिया और इस महीने तो ये सभी पद समाप्त भी कर दिये।

BRD Medical college

अभी 29 अगस्त को मेडिकल कालेज के बाल रोग विभाग की अध्यक्ष ने प्राचार्य को लिखा कि इंसेफेलाइटिस वार्ड के दो वेंटीलेटर और 16 मानीटर खराब हैं जिनकी मरम्मत जरूरी है। यह समस्या रोज की है। इंसेफेलाइटिस वार्ड के उपकरण, एसी निरन्तर खराब रहते हैं लेकिन उनकी मरम्मत में कई-कई दिन लग जाते हैं जिसका सीधा खामियाजा मरीजों को उठाना पड़ता है।
28 अगस्त को केन्द्रीय स्वास्थ्य राज्य मंत्री अनुप्रिया पटेल ने मेडिकल कालेज का दौरा किया तो कई मरीजों ने उनसे शिकायत की कि दवाइयां बाहर से खरीदनी पड़ रही हैं। इसका कारण यह था कि मेडिकल कालेज को दवाइयों के सम्बन्ध में जितना धन चाहिए था, उतना मिला नहीं।

बीआरडी मेडिकल कालेज का इंसेफेलाईटिस वार्ड (फ़ाइल फोटो )
बीआरडी मेडिकल कालेज का इंसेफेलाईटिस वार्ड (फ़ाइल फोटो )

दवाइयों, उपकरणों की खरीद व उसकी मरम्मत तथा चिकित्सकों व कर्मचारियों के वेतन मद में मेडिकल कालेज को धन किश्तों में मिलता है जिसका नतीजा यह होता है कि चिकित्सकों व कर्मचारियों को समय से वेतन भुगतान नहीं हो पाता है। यह शिकायत आम है कि चिकित्सकों व कर्मचारियों को कभी दो महीने तो कभी तीन-तीन महीने पर वेतन मिलता है। पीएमआर विभाग के चिकित्सकों व कर्मियों का वेतन तो 18 महीने तक रूका रहा था।
तीन वार्डों में भर्ती होते हैं इंसेफेलाइटिस मरीज
बीआरडी मेडिकल कालेज के नेहरू चिकित्सालय में इंसेफेलाइटिस मरीजों के इलाज के लिए तीन विशेष वार्ड हैं। वर्ष 2009 में शुरू हुए वार्ड संख्या 12 और 2008 में शुरू हुए वार्ड संख्या 14 की क्षमता 54-54 मरीजों की हैै तो वर्ष 2014 में शुरू हुए वार्ड की क्षमता 100 बेड की है। वार्ड संख्या 14 में इंसेफेलाटिस के वयस्क मरीज भर्ती किए जाते हैं जबकि 12 और 100 बेड वाले वार्ड में इंसेफेलाइटिस की चपेट में आए बच्चे भर्ती किए जाते हैं। वार्ड संख्या 14 में मरीज मेडिसिन विभाग के अन्तर्गत भर्ती होते हैं तो 12 और 100 बेड वाले इंसेफेलाइटिस वार्ड में बाल रोग विभाग के अन्तर्गत मरीज भर्ती होते हैं।
37.99 करोड़ के बजट को वार्षिक कार्ययोजना में शामिल करने पर चुप है सरकार
इस वर्ष 14 फरवरी को मेडिकल कालेज के प्राचार्य द्वारा महानिदेशक चिकित्सां एवं स्वास्थ सेवाएं को इंसेफेलाइटिस के इलाज के मद में 37.99 करोड़ मांगे थे। महानिदेशक ने इस पत्र को राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के निदेशक को भेज कर इस बजट को बजट को एनएचएम की राज्य की वार्षिक कार्ययोजना में शामिल करने का अनुरोध किया था लेकिन यह आज तक नहीं हो पाया। इस बजट में 100 बेड वाले इंसेफेलाइटिस वार्ड में स्थित पीआईसीयू को लेवल 3 आईसीयू में अपग्रेड करने और उसके लिए 149 मानव संसाधान के लिए भी 10 करोड़ का बजट सम्मिलित था। इस बजट को न दिए जाने के कारण ही इंसेफेलाइटिस मरीजों के इलाज में दिक्कतें बरकरार हैं।
यह बजट छह मदों में मांगी गई थी-
1.दवाइयां और सर्जिकल सामग्री कन्ज्यूमेबुल्स                 5,86,50,000
2. उपकरणों की मरम्मत सीएमसी के लिए                         1,07,72,817
3.वार्ड 12 मे कार्यरत 144 मानव संसाधन के लिए                6,20,40,672
4. 100 बेड वाले इंसेफेलाइटिस वार्ड
में कार्यरत 214 मानव संसाधन के लिए                                 6,56,76,580
5. 100 बेड वाले इंसेफेलाइटिस वार्ड के                                   7,00,00,000
नैदानिक प्रयोगशाला व एईएस ट्रेनिंग सेंटर के
लिए
6.चिकित्सकों, स्टाफ नर्स, पैरामेडिकल स्टाफ के प्रशिक्षण              15 लाख
व रिसर्च से सम्बन्धित कार्य के लिए
7. एईएस जेई वार्ड के पीआईसीयू को लेवल 3 आईसीयू में             7,12,45,000
अपग्रेड करने के लिए उपकरणों की खरीद के लिए
8. 100 बेड वाले वार्ड के पीआईसीयू को अपग्रेड करने के लिए         3, 33,25,152
149 मानव संसाधन के पद को सृजित करने के लिए

इसमें इंसेफेलाइटिस इलाज से सम्बन्धित वार्ड संख्या 14 और पीएमआर विभाग के चिकित्सकों व कर्मियों का वेतन शामिल नहीं हैं। मेडिकल कालेज द्वारा पूर्व में भेजे गए प्रस्तावों के अनुसार वार्ड संख्या 14 में कार्यरत 56 चिकित्सकों व कर्मियों के लिए 1.19 करोड़ तथा पीएमआर विभाग के लिए चिकित्सकों व कर्मियों के लिए 1.48 करोड़ रूपया वेतन मद में चाहिए। यह दोनों खर्चे जोड़ दिए जाएं तो बजट 40 करोड़ से अधिक होता है।
बजट की कमी से 152 पद नहीं भरे जा सके हैं
यहां ध्यान देने की बात है कि तीनों वार्डों में जरूरत के हिसाब से चिकित्सकों के 38, समूह ग के 108 और समूह घ के 6 पद भरे ही नहीं गए हैं। वार्ड संख्या 12 में 164, 14 में 62, वार्ड संख्या 100 में 214 पद स्वीकृत हैं लेकिन इनमें से 152 पद बजट की कमी के कारण भरे नहीं जा सके हैं। 100 बेड वाले इंसेफेलाइटिस वार्ड के समूह घ के 108 कर्मियों का पद भी इस महीने समाप्त कर दिया गया जिसके कारण इस वार्ड में मरीजों के इलाज की व्यवस्था में भरी दिक्कत हो रही है।
यही यह सभी चिकित्सक, कर्मचारी संविदा पर हैं और नियमित कर्मियों के मुकाबले वेतन कम हैं। इन्हें नियमित किए जाने और वेतन बढ़ाने की मांग भी निरन्तर होती रहती है। वेतन कम होने से खासकर चिकित्सक इन वार्डाें में ज्वाइन करने के लिए ज्यादा उत्साहित नहीं रहते और वेहतर अवसर मिलते ही नौकरी छोड़ देते हैं। इस कारण भी स्वीकृत पदों के मुकाबले चिकित्सकों व अन्य पद रिक्त रहते हैं जिससे इलाज में दिक्कत आती है।

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ऐसा नहीं है कि यह पत्र पहली बार लिखा गया है। वर्ष 2010 से ऐसे पत्रों की संख्या सैकड़ा तक पहुंच गई है। पूर्व प्राचार्य प्रो केपी कुशवाहा, आरके सिंह, आरपी शर्मा के कार्यकाल में तमाम ऐसे प्रस्ताव भेजे गए लेकिन अमल नहीं हुआ। प्रो केपी कुशवाहा अपने कार्यकाल में चिकित्सकों व कर्मियों का वेतन बढ़वाने में जरूर कामयाब हुए लेकिन इसके लिए उन्हें काफी मशक्कत करनी पड़ी। उन्हें 100 बेड के इंसेफेलाइटिस वार्ड के लिए 239 मानव संसाधन की स्वीकृति के लिए बहुत भाग दौड़ करनी पडी और आखिरकार पदों पर कटौती करते हुए 214 पदों पर ही नियुक्ति की स्वीकृति दी गई।
ये हालात बताते हैं कि मंत्रियों-अफसरों के दावों और उन्हें अमली जामा पहनाने में कितना फर्क हैं।

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