जनपद

किसी भी राजनीतिक दल के एजेंडे में भोजपुरी क्षेत्र नहीं-प्रो. सदानंद शाही

रामकोला (कुशीनगर) 13 फरवरी। जन भोजपुरी मंच के संयोजक प्रोफेसर सदानंद शाही ने  उप्र के चुनावों को ध्यान में रखते हुए भोजपुरी अंचल के सर्वांगीण उन्नति के सवाल पर विचार करने की अपील की ।

प्रो शाही ने यहाँ प्रेस वार्ता में कहा कि भोजपुरी क्षेत्र के विकास का सवाल भोजपुरी भाषा के विकास के साथ जुडा हुआ है। सभी राजनीतिक दलों को भोजपुरी के बारे में अपनी नीति स्पष्ट करनी चाहिए। प्रो शाही ने कहा कि भोजपुरी को आठवीं अनुसूची में शामिल करने के सवाल पर राजनीतिक दलों की मंशा साफ नहीं है ।कुछ लोग यह भ्रम फैलाने की कोशिश करते हैं कि भोजपुरी के विकसित होने से हिन्दी की क्षति होगी। प्रो शाही ने कहा कि ऐसे लोग हिन्दी और भोजपुरी दोनो का नुकसान करते हैं। उन्हें न तो हिन्दी की ताकत का एहसास है न भोजपुरी की सामर्थ्य का। हिन्दी की असली ताकत समूचे देश की सवा सौ करोड आबादी की सम्पर्क और अन्तरदेशीय व्यवहार की भाषा होने में है। इस रूप में हिन्दी निरन्तर विकसित हो रही है।  ऐसे लोग हिन्दी को महज उत्तर भारत की भाषा बताकर शेष भारतीयों के मन में हिन्दी के लिए पूर्वाग्रह पैदा करते हैं और अपनी गुलाम मानसिकता के नाते भोजपुरी को गंवार और पिछडा बताकर उसे नष्ट होने के लिए छोड देना चाहते हैं। यह बात ध्यान में रखनी चाहिए कि संयुक्त राष्ट्र में हिन्दी या वैश्विक हिन्दी का दावा प्रादेशिक भाषाओं के साथ उसकी साझेदारी और परस्परता में है,अधीन बनाकर उपनिवेशित करने में नहीं। प्रो शाही ने जोर देकर कहा कि राष्ट्रभाषा और विश्व भाषा के रूप में हिन्दी को विकसित करने का रास्ता प्रादेशिक भाषाओं से संवाद में है। प्रो शाही ने कहा कि समय आ गया है कि भोजपुरी क्षेत्र और भोजपुरी भाषा के विकास के लिए यहाँ की ठोस परिस्थितियों के अनुरूप विकास का खाका तैयार किया जाए।

प्रोफेसर  शाही ने कहा कि भोजपुरी क्षेत्र के पिछड़ेपन के मूल में भोजपुरी भाषा की उपेक्षा और उससे उपजा हीनता-बोध है। शिक्षा की दयनीय स्थिति  भी इसके लिए जिम्मेदार है । प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा तक का ढ़ांचा चरमराया हुआ है। भोजपुरी क्षेत्र में प्राथमिक शिक्षा को मजबूत एवं प्रभावी ढ़ंग से लागू करने की जरूरत है। भोजपुरी क्षेत्र में आधारभूत ढ़ाँचे चिकित्सा, शिक्षा, सड़क, यातायात का घोर अभाव है। क्षेत्र की भौगोलिक विशेषताओं और प्राकृतिक आपदाओं को  ध्यान में रखकर कृषि नीति तैयार करने की जरूरत है। स्वरोजगार विकसित करने के लिए इस क्षेत्र के लघु और कुटीर उद्योगों का संरक्षण और संवर्धन बेहद जरूरी  है।  भोजपुरी क्षेत्र में पर्यटन की पर्याप्त संभावनाएं है। उसका  पर्यावरण के अनुकूल प्रबंधन और विकास किया जाना चाहिए।

प्रोफेसर शाही ने कहा कि  भोजपुरी भाषा, साहित्य, संस्कृति, लोककलाएँ,देशज ज्ञान और समाज के विकासात्मक अध्ययन के लिए स्वतंत्र विश्वविद्यालय तथा शोध केंद्रों की स्थापना की जानी चाहिए ताकि इस क्षेत्र की ज़रूरतों के हिसाब से विकास का खाका तैयार किया जा सके। किसी भी राजनीतिक दल के एजेंडे में भोजपुरी क्षेत्र नहीं है। इस क्षेत्र के पिछड़ेपन का फायदा उठाकर जाति , धर्म तथा विकास के अमूर्त मॉडल पर भोजपुरी क्षेत्र को गुमराह किया जाता रहा है। इसी को ध्यान में रखकर जन भोजपुरी मंच ने विधानसभा के सभी प्रत्याशियों और मतदाताओं से विचार करने के लिए दस सूत्रीय अपील जारी की है।

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