साहित्य - संस्कृति

‘ गोमती को बचाना अपने पानी को बचाना है ‘

लखनऊ में मुक्तिबोध और त्रिलोचन स्मृति काव्य पाठ

लखनऊ , 19 सितम्बर. मोती महल वाटिका में चल रहे 15 वें राष्ट्रीय पुस्तक मेले में जन संस्कृति मंच की ओर से हिंदी दिवस के अवसर पर “मुक्तिबोध और त्रिलोचन स्मृति काव्य संध्या” का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की शुरुआत संदीप कुमार सिंह के स्वागत वक्तव्य से हुई उन्होंने मुक्तिबोध और त्रिलोचन के हवाले से हिंदी कविता के वर्तमान परिदृश्य पर प्रकाश डाला तथा कवि त्रिलोचन की दो कविताओं का पाठ भी किया।

कवि कथाकार वीरेंद्र सारंग की अध्यक्षता में कुछ युवा और नवोदित युवा कवियों के साथ वरिष्ठ कवि और रचनाकारों ने भी अपनी कविताएं सुनाई । कवि कौशल किशोर,पत्रकार एवं कवि सुभाष राय, भगवान स्वरूप कटियार, मेहंदी अब्बास रिजवी ,विमल किशोर, धनंजय शुक्ला ,श्रद्धा वाजपेई और संदीप कुमार सिंह अपनी कविताएं पढ़ी ।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे वीरेंद्र सारंग ने त्रिलोचन और मुक्तिबोध के हवाले से दो बातें कही -“कविता कैसे लिखी जाती हैं और आपके ऊपर कुछ कैसे लदा है ।”इसी के साथ उन्होंने लोक बोली की छोटी-छोटी कई कविताएं भी सुनाई–” हम घूमी बजारे बजारे हमारे कोई का करिहैं /हमारे दोस्त हैं यारे हजारे हमार कोई का करिहैं । तथा ” निर्मोही निर्मोही निरमोहिया ए भाई जी ।”इसी के साथ आज का समूचा राजनीतिक परिदृश्य सारंग जी की चिंता का विषय रहा । वे अपने साहित्यिक एवं सांस्कृतिक स्मृतियों की विरासत को मिटाए जाते हुए देखकर काफी चिंतित दिखे । इसी के साथ उनका एक नया लोकधर्मी और बिम्बधर्मी कवि रूप भी हमारे सामने आया जो युवाओं के लिए काफी आकर्षण का विषय रहा ।
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कवि,पत्रकार सुभाष राय ने ‘आ गया दालान तक पानी’गीत से वर्षा ऋतु का बिम्ब खींचा तो वहीं अपने दूसरे गीत ‘बाजा तो बजना है’ के द्वारा बड़बोले और ड्रामेबाज राजनेताओं पर गहरी चुटकी ली ।अपनी तीसरी कविता ‘झूठा सौदा’ समसामयिकता को समेटे हुए है इसमें वे सच्चे डेरे के प्रमुख राम रहीम सरीखे गुंडे बाबाओं की काली करतूतों एवं उनके मठों में व्याप्त दुराचार एवं अनाचार को उजागर किया ।

जसम उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष एवं कवि कौशल किशोर ने अपनी ‘लखनऊ’ शीर्षक कविता द्वारा विकास के समानांतर विस्थापित होते परिवारों की दुरावस्था की ओर सबका ध्यान खींचा ।जल,जंगल और जमीन उनकी चिंता के मुख्य विषय रहे । उन्होंने कहा कि गोमती को बचाना अपने पानी को बचाना है । युवा पीढ़ी के क्रांति चेतना को व्याख्यायित करते हुए कवि भगवान स्वरूप कटियार ने अपनी दो कवितायेँ ‘जिंदा कौमों का दस्तावेज’ तथा ‘चीख’ सुनाई ।इन कविताओं के माध्यम से वे युवाओं का आवाह्न करते हैं वे चाहते हैं कि युवा क्रान्ति को प्रेयसी की तरह वरण करें । कुल मिलाकर वे एक क्रान्तिधर्मी पुरुष का बिम्ब खींचते हैं।

कवयित्री विमल किशोर ने हाल ही में गोरखपुर में घटी घटना को केंद्र में रखकर ‘अगस्त में बच्चे मरते ही हैं’ शीर्षक कविता सुनाई जो पूरी चिकित्सा व्यवस्था को सवालो के घेरे में खड़ा करती है ।’बारिश की मार’ कविता द्वारा वे जहाँ सामान्य जन जीवन की पीड़ा को रेखांकित करती हैं वहीं ‘तीन तलाक’ द्वारा स्त्री मन के गहरे द्वन्द्व पर भी अपना आक्रोश जाहिर करती हैं । युवा कवयित्री श्रद्धा वाजपेयी ने ‘बलात्कार’ और ‘षड्यंत्र’ कविता के माध्यम से स्त्री अस्मिता को रेखांकित करते हुए उसकी दुरवस्था पर प्रकाश डाला तथा इस बात को लेकर अपनी चिंता प्रकट की कि स्त्रियों से सम्बंधित मामलों में न्याय उन्हें देर से क्यों मिलता है ?
गजलकार और शायर मेहँदी अब्बास रिज़वी ने अपनी एक ग़ज़ल ‘आ मिल करके जरा सोचें कहाँ हैं हम लोग/ये कोइ बस्ती जंगल है जहाँ बैठे हैं हम लोग” सुनाई । युवा कवि धनंजय शुक्ल ने ‘इतिहास के कलपुर्जे’ तथा ‘सच का वकील’ शीर्षक अपनी दो कविताएँ सुनाई ।युवा मन का आक्रोश उनकी कविताओं में छाया रहा ।
अंत में कार्यक्रम का संचालन कर रहे संदीप कुमार सिंह ने अपनी दो कवितायेँ सुनाई । “सरताज़ मेरी ज़िन्दगी के दीप हो तुम” शीर्षक गीत द्वारा उन्होंने अपनी सांस्कृतिक विरासत को सहेजने वाले कवियों का स्मरण किया तथा “एक स्वप्न पुरुष की तीर्थ यात्रा” कविता द्वारा पौराणिक मान्यताओं,रूढ़ियों और मिथकों को संदर्भित करते हुए अंध आष्था और ढोंग पर गहरी चोट की । इस अवसर पर रवीन्द्र कुमार सिन्हा, मनोज सिंह सहित अन्य तमाम श्रोतागण मौजूद रहे ।