साहित्य - संस्कृति

भारतीय ज्ञान मीमांसा और सौन्दर्य के प्रतिमान को बदलने वाले कवि हैं मुक्तिबोध-प्रो मैनेजर पांडेय

‘ चार भाषाओं की संस्कृति के सुमेल के कवि हैं त्रिलोचन ’
जन संस्कृति मंच द्वारा कवि त्रिलोचन और मुक्तिबोध की जन्मशती कार्यक्रम का आयोजन
वाराणसी, 16 अक्टूबर। प्रख्यात आलोचक प्रो मैनेजर पांडेय ने कहा कि मुक्तिबोध भारतीय ज्ञान मीमांसा और सौन्दर्य के प्रतिमान को बदलने वाले कवि हैं। उन्होंने कहा कि मुक्तिबोध गहन विचारशीलता के कवि हैं और वे अकेले कवि हैं जिन्होंने कविता के चरित्र को बदला। वह अपने समय से आगे के कवि हैं। वह अपने समय में जिस अंधेरे की चिंता कर रहे थे और जिस अंधकार और प्रकाश के द्वंद्व की कविता रच रहे थे, आज वह वास्तवकि रूप में हमारे सामने है।

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प्रो पांडेय 16 अक्टूबर को जन संस्कृति मंच द्वारा डीएवी पीजी कालेज, वाराणसी के सभागार में कवि त्रिलोचन और मुक्तिबोध के जन्मशती वर्ष के अवसर पर आयोजित ‘ स्मरण: कवि त्रिलोचन एवं मुक्तिबोध ’ कार्यक्रम में बोल रहे थे। उन्होंने कवि त्रिलोचन से जुड़े आत्मीय संस्मरण सुनाते हुए कहा कि त्रिलोचन,नार्गाजुन और केदारनाथ अग्रवाल बुनियादी तौर पर जनपदीय कवि हैं और ये तीनों अपनी-अपनी मातृभाषाओं के भी कवि हैं। त्रिलोचन जी चार भाषाओं की संस्कृति के सुमेल की कविता लिखते थे और उन्होंने सानेट को हिंदी में स्थापित करने का महत्वपूर्ण कार्य किया है।

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कार्यक्रम में वरिष्ठ कवि ज्ञानेन्द्रपति ने मुक्तिबोध की कविताओं की चर्चा करते हुए कहा कि वह प्रगतिशील काव्यधारा में पहली बार आत्मसंशय का प्रवेश करते हैं। अपने पर संशय करते हैं। मुक्तिबोध के साथ ही हिंदी कविता महानगरों में प्रवेश करती है और औद्योगिक जीवन को समझने की ओर अग्रसर होती है। ज्ञानेन्द्रपति नेे त्रिलोचन की चर्चा करते हुए कहा कि उनके चलते ही उन्होंने बनारस को अपना कर्मक्षेत्र बनाया।
मुक्तिबोध के पुत्र रमेश मुक्तिबोध ने अपने पिता से सम्बन्धित संस्मरणों के उस हिस्से को विशेष रूप से सुनााया जिसमें बनारस है। उन्होंने कहा कि बीमारी के वक्त आधी रात एक बार उन्होंने उनसे चाय बनाने को कहा। चाय पीते हुए उन्होंने कहा कि मुझे जीवन के पांच वर्ष और चाहिए। यह सुनकर मै उनसे लिपट गया और हम दोनों एक दूसरे से रात के सन्नाटे में लिपटे रहे।

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वरिष्ठ कवि नरेश सक्सेना ने मुक्तिबोध की कविता को विज्ञान और संगीत के तुकतालों से जोड़ कर समझने की जरूरत को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि ‘ अंधेरे में कविता ’ का पाठ मुक्तिबोध ने अपनी जांघों पर ताल देते हुए हरिशंकर परसाई के घर पर किया था जिसको सुनने का अवसर उन्हें मिला था।
प्रो चैथीराम यादव ने कहा कि त्रिलोचन और मुक्तिबोध को जनसरोकारों के कवि के रूप मंे चिन्हित करते हुए कहा कि जन, जनपद और धरती त्रिलोचन की कविता की विशेषता है और उनकी कविताएं गद्य और पद्य की भाषा को एक करती हैं।
रांची से आए वरिष्ठ आलोचक प्रो रविभूषण ने कहा कि त्रिलोचन और मुक्तिबोध पूंजीवाद के विरोध के कवि हैं। उन्होंने मुक्तिबोध की कविता ‘ पूंजीवादी समाज के प्रति ’ को पूंजीवाद और उपभोक्ता संस्कृति को लेकर लिखी गई पहली और महत्वपूर्ण कविता बताया। उन्होंने कहा कि मुक्तिबोध आत्मसंघर्ष से चलकर जनसंघर्ष की बात करते हैं। दोनों कवि आग और ताप के कवि हैं।
जन संस्कृति मंच के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रो राजेन्द्र कुमार ने कहा कि दोनों कवियों की कविताओं को एक साथ पढ़ने और समझने की जरूरत है। दोनों की चिंताए साझा थीं। त्रिलोचन कविता में ममत्व को शब्द की तरह नहीं जीवन की तरह ले आने के पक्षधर थे। आज के जीवन,समाज और राजनीति को समझने में मुक्तिबोध की कविताएं काफी सहयोगी हैं।
कार्यक्रम के इस सत्र का संचालन प्रो अवधेश प्रधान ने किया और स्वागत वक्तव्य प्रो बलराज पांडेय ने दिया। कार्यक्रम के प्रारम्भ में वाराणसी में भगदड़ में दिवंगत लोगों के प्रति दो मिनट मौन रखकर श्रद्धांजलि दी गई। कार्यक्रम के प्रारम्भ में पटना से आए हिरावल के संतोष झा और उनके साथ डीपी सोनी ने त्रिलोचन की कविता ‘ पथ पर चलते रहो निरन्तर ’ और मुक्तिबोध की कविता ‘ ओ मेरे आदर्शवादी मन ’ की सांगीतिक प्रस्तुति की। इस मौके पर सुचिता वर्मा की पुस्तक ‘ नवरोमानियत और यथार्थ ’ का लोकार्पण भी हुआ।
कार्यक्रम का दूसरा सत्र काव्यपाठ का रहा जिसमें वरिष्ठ कवि नरेश सक्सेना, ज्ञानेन्द्र पति, अष्टभुजा शुक्ल, चन्द्रकला त्रिपाठी, मदन कश्यप, राजेन्द्र कुमार, अजय कुमार, ओम प्रकाश मिश्र, सदानन्द शाही, निलय उपाध्याय, रामाज्ञा शशिधर, पंकज चतुर्वेदी, आशीष त्रिपाठी, व्योमेश शुक्ल,बलभद्र, विहाग वैभव, अरमान आनन्द, घनश्याम त्रिपाठी, प्रदीप गोंडवी, पम्मी राय ने कविताएं पढीं। इस सत्र का संचालन कवि प्रकाश उदय ने किया।

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