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मठिया माफी गांव के मुसहरों को दस वर्ष से मनरेगा में काम नहीं मिला

सुरेश और गंभा की मौत के बाद दो महीने से रोका गया राशन बांटा गया
नगीना मुसहर की मौत के एक दशक बाद भी कुशीनगर के मुसहरों के हालात में ज्यादा बदलाव नहीं
सामाजिक कार्यकर्ता राजेश मणि और मनोज कुमार सिंह ने जारी की फैक्ट फाइडिंग रिपोर्ट

गोरखपुर, 15 जनवरी। कुशीनगर जिले के दुदही ब्लाक के मठिया माफी गांव में 28 दिसम्बर की रात दो मुसहर भाइयों सुरेश और गंभा की भूख व बीमारी से मौत के बाद दो सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा की गई फैक्ट फाइडिंग रिपोर्ट में चौंकने वाली बातें प्रकाश में आई हैं। इस रिपोर्ट से पता चलता है कि मठिया माफी के मुसहरों को दस वर्ष से मनरेगा में काम नहीं मिला है। उनके गांव में दो माह से राशन नहीं बंटा था और जब सुरेश व गंभा की भूख व बीमारी से मौत हो गई तब वहां राशन बांटा गया।

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मानव सेवा संस्थान के निदेशक राजेश मणि त्रिपाठी और पीपुल्स यूनियन फार ह्यूमन राईट्स के सचिव मनोज कुमार सिंह ने चार जनवरी को मठिया माफी गांव का दौरा किया था। दोनों ने सुरेश की पत्नी चना और गंभा की पत्नी पासमती के अलावा गांव के मुसहरों से विस्तार से बातचीत की। बातचीत से पता चल कि मठिया माफी गांव की मुसहर बस्ती में कल्याणकारी योजनाएं बुरी तरह फेल हैं और सर्वाधिक जरूरतमंद लोगों को इन योजनाओं का कोई लाभ नहीं मिल रहा है।
फैक्ट फाइडिंग रिपोर्ट मीडिया को जारी करते हुए दोनों सामाजिक कार्यकर्ताओं ने कहा कि इस प्रकरण को पहले ही राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग से अवगत करा दिया गया है। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग से मांग की गई है कि वह एक जांच समिति भेजे और पूरे मामले की जांच कर दोषियों के खिलाफ कार्यवाही करे। दोनों ने कहा कि कुशीनगर जिले में मुसहर समुदाय के हालात में एक दशक बाद भी ज्यादा बदलाव नहीं आया है। कुशीनगर जिले के ही दोघरा गांव में नगीना मुसहर की मौत जिन परिस्थितियों में हुई थी और उनकी मौत के बाद मुसहर समुदाय के जो हालात सार्वजनिक हुए थे, ठीक वही स्थिति एक दशक बाद भी मठिया माफी गांव में देखा जाना कत्तई स्वीकार्य नहीं है। मानवाधिकार और सामाजिक कार्यकर्ता सुरेश और गंभा की मौत के लिए जिम्मेदार लोगों को दंडित कराने और मुसहर समुदाय को बदहाली से उबारने के लिए कोई कोर कसर नहीं छोडेंगे।

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सुरेश की पत्नी चना बच्चों के साथ

फैक्ट फाइडिंग रिपोर्ट

1. मठिया माफी चार टोलों में विभाजित है। यहां करीब 5500 की आबादी हैं। मुसहर टोले में 100 घर हैं।

2. मठिया माफी के मुसहर टोले के आखिर में सुरेश ( 40) और गंभा ( 35) का घर है। सुरेश तीन भाई थे। सबसे बड़ा सुरेश, उसके बाद गंभा और सबसे छोटा भाई। सुरेश के पिता शिवमंगल और पानकली का पहले ही निधन हो चुका है। सुरेश के पांच संतान हैं जिनमें तीन लड़कियां हैं। सबसे बड़ी लड़की है जिसकी उम्र 18 वर्ष है। गंभा के दो पुत्र और एक बेटी हैं।

3. सुरेश और गंभा का करीब तीन माह से बीमार थे। उन्हें अक्सर बुखार रहता था और सांस फूलती थी। सुरेश की पत्नी चना उसे दिखाने दुदही स्थित सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र ले गई। उसके अनुसार वहां उसे जो दवाइयां दी गईं, उससे कोई फायदा नहीं हुआ। वहां ठीक से देखा नहीं गया और जो दवाइयां दी गईं, उस पर उसे विश्वास नहीं हुआ। वह अपने पति को पडरौना में किसी डा. द्वारिका को दिखाने भी ले गई थी। पैसा न होने के कारण वे दवाइयां खरीद नहीं सकी। गांव के बाहर चैराहे पर स्थित मेडिकल स्टोर्स से दोनों ने कभी-कभार दवा ली थी लेकिन उनकी स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ। 28 दिसम्बर की शाम पहले सुरेश और बाद में गंभा की मौत हो गई। दोनों का अंतिम संस्कार 29 दिसम्बर को एक ही साथ हुआ।

गंभा की पत्नी पासमती

गंभा की पत्नी पासमती

4-गंभा की पत्नी पासमती का कहना था कि सरकार अस्पताल में मरीजों को ठीक से देखा नहीं जाता। अस्पताल जाने के लिए उनके पास पैसे नहीं रहते थे।

5-लक्षणों के मुताबिक सुरेश और गंभा को लम्बे समय से कुपोषण के कारण तपेदिन होने की संभावना लग रही है। कुशीनगर जिले में तपेदिक नियंत्रण योजना लागू है फिर भी दोनों को उसका लाभ न मिल पाना बड़ा सवाल है।

6-इस कड़ाके की ठंड में उनके पास कम्बल और गर्म कपड़े तक नहीं थे।

7- दोनों परिवारों के पास खेती के लिए कोई जमीन नहीं है।

मठिया माफी गाँव की मुसहर महिलाएं जाब कार्ड दिखाती हुईं

मठिया माफी गाँव की मुसहर महिलाएं जाब कार्ड दिखाती हुईं

8- सुरेश का अन्त्योदय राशन कार्ड गांव के कोेटेदार के पास था। उसकी पत्नी पासमती ने कहा कि कोटेदार के पास सूची में उसका नाम है। उसके पास राशन कार्ड मौजूद नहीं था। उसका कहना था कि 35 किलो राशन उसके पांच बच्चों वाले परिवार के लिए पर्याप्त नहीं है। उसे अक्सर 19 रूपए किलो चावल व आटा बाजार से खरीदना पड़ता था। जब पैसे समाप्त हो जाते थे, तब वे भूखे पेट सोते हैं। सुरेश की मौत के पूर्व दो दिन से घर में अनाज और पैसे खत्म हो गए है। इसलिए फाकाकशी हो रही थी।

9- गंभा की पत्नी ने कहा कि उसके पास अन्त्योदय राशनकार्ड है जिस पर 35 किलो राशन मिल जाता है लेकिन यह राशन उसके परिवार के लिए बहुत कम है।

10-मुसहरों ने बताया कि गांव में राशन का वितरण नियम से नहीं होता है। नवम्बर और दिसम्बर माह का राशन नहीं बंटा था। सुरेश और गंभा की मौत के बाद 30 दिसम्बर की रात आनन-फानन में मुसहर बस्ती में राशन बांटा गया। राशन बंटवाने कोटेदार के साथ-साथ आपूर्ति विभाग का एक अधिकारी भी आया था। इन लोगों द्वारा मुसहरों को कुछ नगद रूपए भी दिए जाने की बात सामने आई। इन लोगों ने मुसहरों को निर्देश दिया कि वे दो माह से राशन न बांटे जाने की बात किसी से नहीं कहें। गांव में कोई आए तो यही कहना है कि हर महीने नियम से राशन मिल जाता है।

11-सुरेश की पत्नी चना और गंभा की पत्नी पासमती को 30 दिसम्बर को 50-50 किलो चावल व गेहूं कोटेदार द्वारा दिया गया। ग्र्राम प्रधान द्वारा एक-एक हजार रूपया दिया गया।

12-गंभा का मनरेगा के तहत जाब कार्ड नहीं बना था।

13-सुरेश का मनरेगा का जाब कार्ड बना था लेकिन गांव के अन्य मुसहरों की तरह उसे काम नहीं मिल रहा था। उसका जाब कार्ड 17.01.2011 में बना है जिस पर उसका और उसकी मां का नाम दर्ज था। इस जाब कार्ड में दोनों के द्वारा एक दिन भी मजदूरी किया जाना दर्ज नहीं है।

14-इस गांव में खेतिहर मजदूरों के पास कटनी और रोपनी के अलावा काम नहीं है। मनरेगा के जाब कार्ड बने हैं लेकिन एक-दो नहीं 10-10 वर्ष से तमाम मुसहरों को काम नहीं मिला है। अधिकतर जाब कार्ड के पन्ने सादे हैं। दीनानाथ के जाब कार्ड पर नवम्बर व दिसम्बर 2006 में 33 दिन, प्रभू के जाब कार्ड पर जनवरी 2009 में 15 दिन, बदरी के जाब कार्ड पर दिसम्बर 2007 में 20 दिन और कपिलदेव के जाब कार्ड पर नवम्बर 2011 में 14 दिन की मजदूरी दर्ज है। इसके बाद से इन्हें काम मिलना दर्ज नहीं है।

मठिया माफी गाँव

मठिया माफी गाँव

15-महिलाओं को मनरेगा के तहत काम नहीं दिया जाता और कहा जाता है कि वह कुदाल नहीं चला पाएंगीं।

16-काम के अभाव में कुछ महिलाएं धान और गेहूं की कटाई के लिए समूह में महराजगंज जिले के परतवाल चली जाती हैं। वहां भी उन्हें एक -डेढ़ महीने से अधिक काम नहीं मिलता।

17-चना और पासमती ने बताया कि सुरेश व गंभा खेतों में मजदूरी कर रोटी के लिए पैसा जुटाते थे। खेतों में उन्हें पूरे वर्ष 25-30 दिन से ज्यादा मजदूरी नहीं मिल पाती। वे दोनों भी सोहनी, रोपनी व कटनी का काम करती थीं लेकिन खेती के काम से उन्हें बहुत कम दि ही काम मिल पाता था। महिलाओं को सोहनी-रोपनी, कटनी के लिए 70 रूपए मजदूरी मिलती है तो पुरूषों को 100 से 200 तक।

18-सुरेश, गंभा को 15 वर्ष पहले इंदिरा आवास मिला था। उन्हों इंदिरा आवास योजना के पूरे 25 हजार रूपए के बजाय 18 हजार रूपए ही मिले थे। सात हजार रूपए कमीशन के तौर पर काट लिए गए। सुरेश और गंभा इस पैसे से सिर्फ दीवार ही खड़ा कर सके और छत नहीं डाली जा सकी। सुरेश के घर पर टिन शेड है तो सुरेश के घर की दीवार भी ढह गई है। पूरा कुनबा झोपड़ी में रहता है।

19-मठिया माफी के नौजवान काम की तलाश में भटक रहे हैं। लक्ष्मीना के तीनों बेटे कमाने के लिए उत्तराखंड चले गए हैं। इसी तरह कुछ अन्य मुसहर नौजवान दूसरे राज्यों में आजीविका के लिए पलायन कर गए हैं। कुछ युवक बिहार में काम करने के लिए जाते हैं।

20-प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के तहत दो दर्जन महिलाओं से चार माह पहले आवेदन पत्र लिए गए हैं लेकिन किसी को रसोई गैस का कनेक्शन नहीं मिला है। लक्ष्मीना के तीनों बहुओं, जो कि अलग-अलग रहते हैं, से उज्ज्वला योजना का आवेदन लिया गया है लेकिन उन्हें अभी तक रसोई गैस का कनेक्शन नहीं मिला है।

21-मुसहर महिलाओं का अधिकतर समय जलौनी लकडि़यों का जुगाड़ करने में बीतता है।

22-करीब 100 परिवार वाले इस मुसहर बस्ती में बिजली नहीं है। राशन कार्ड पर सिर्फ एक लीटर किरासन तेल मिलता है जो गरीब मुसहर परिवारों के लिए अपर्याप्त है।

23-सुरेश और गंभा की मौत के बाद स्वास्थ्य विभाग की टीम गांव में आई। स्वास्थ्य विभाग द्वारा कैम्प आयोजित कर मुसहरों के खून के और बलगम के नमूने लिए गए। इसके पूर्व मुसहर बस्ती में कभी स्वास्थ्य कैम्प का आयोजन नहीं हुआ।

24-सुरेश और गंभा की मौत के बाद एसडीएम के अलावा कोई अन्य अधिकारी गांव नहीं आया।

25-सरकार का निर्देश है कि यदि किसी भी गरीब की अन्न के अभाव से मृत्यु होती है तो ग्राम प्रधान, बीडीओ, एसडीएम, डीएम के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी, लेकिन अभी तक सुरेश और गंभा जो कि अत्यन्त गरीब थे, उन तक सरकारी योजनाएं नहीं पहुंचाए जाने और भुखमरी से मौत हो जाने के मामले में किसी भी अधिकारी के खिलाफ कार्यवाही नहीं हुई है।

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