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मैत्रेय बुद्ध की प्रतिमा नहीं लगी फिर भी 12 वर्ष से उद्योग लगाने को नहीं दे रहे मंजूरी

मैत्रेय परियोजना के लिए वर्ष 2014 में 50 किमी दायरे में वायू प्रदूषणकारी उद्योग नहीं लगाने का हुआ था आदेश
वर्ष 2014 के शासनादेश के कारण कुशीनगर, देवरिया, गोरखपुर में उद्योग लगाने को नहीं मिल रही मंजूरी
45र्0 इंट भट्ठों को भी नहीं मिली एनओसी
50 किलोमीटर के दायरे को घटाकर 20 किमी करने के प्रस्ताव पर भी निर्णय नहीं लिया सरकार ने
मनोज कुमार सिंह
गोरखपुर, 4 अगस्त। कुशीनगर के मैत्रेय परियोजना की देश भर में चर्चा होती रही है। एक दशक से अधिक समय के बाद भी इस परियोजना के लिए एक ईंट तक नहीं रखी जा सकी है हालांकि 13 दिसम्बर 2013 को एक भव्य समारोह में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव इसका शिलान्यास कर चुके हैं।
लेकिन इस परियोजना और बुद्ध की प्रतिमा को प्रदूषण से सुरक्षित रखने के लिए वर्ष 2004 में जारी एक शासनादेश की कोई चर्चा नहीं होती है जिसका खामियाजा चार जिलों के उद्योगों पर पड़ रहा है। यह शासनादेश है कि मैत्रेय प्रोजेक्ट के तहत लगने वाली 500 फीट उंची बुद्ध प्रतिमा के लिए 50 किलोमीटर के एरियल दायरे में कोई वायू प्रदूषणकारी उद्योग नहीं लग सकता। यह एक अजूबा किस्सा है कि मैत्रेय परियोजना अभी तक जमीन पर उतरी ही नहीं लेकिन उसके प्रदूषण से बचाने के लिए यह शासनादेश 12 वर्ष से लागू है और इस कारण इस क्षेत्र में उद्योगों को लगने की मंजूरी नहीं दी जा रही है।
मैत्रेय प्रोजेक्ट कुशीनगर में 750 एकड़ में स्थापित होना था लेकिन किसान भूमि अधिग्रहण के खिलाफ लम्बा और प्रभावकारी आंदोलन चलाने में सफल रहे जिसके कारण परियोजना जमीन पर नहीं उतर सकी। वर्ष 2012 में इस परियोजना का आकार करीब 250 एकड़ तक सीमित कर दिया गया। परियोजना में बुद्ध की प्रतिमा की उंचाई भी 500 फीट से घटाकर 200 फीट कर दी गई। इसके बाद भी चार वर्ष हो गए लेकिन परियोजना का शुभारम्भ नहीं हो सका है।
जब 2003 में तत्कालीन मुलायम सरकार के समय इस परियोजना के लिए मैत्रेय प्राजेक्ट टस्ट से सरकार के बीच मेमोरंेडम आफ अंडरस्टैडिंग एमओयू पर दस्तखत हुए थे। इसके बाद टस्ट ने 500 फीट उंची प्रतिमा की प्रदूषण सुरक्षा पर अपने सवाल सरकार के समक्ष रखे जिस पर सरकार ने एक शासनादेश जारी किया कि परियोजना स्थल से 50 किलोमीटर के एरियल डिस्टेंस में कोई वायू प्रदूषणकारी उद्योग नहीं लग सकेंगे।
इस शासनादेश का प्रभाव क्षेत्र देवरिया के औद्योगिक क्षेत्र उसरा तक, पूरा कुशीनगर जिला, महराजगंज में सिसवा तक का क्षेत्र और गोरखपुर में कुसुम्ही जंगल और भटहट तक है। इस शासनादेश के चलते इस क्षेत्र में कोई भी उद्योग लगने के लिए प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की एनओसी की जरूरत अनिवार्य है। इस अनिवार्यता के चलते चैरीचैरा क्षेत्र में एक पेपर मिल और देवरिया के उसरा क्षेत्र में साल्वेंट फैक्टी नहीं लग पायी है। उद्यमी इसके लिए गोरखपुर से लखनउ तक दौड़ लगा रहे हैं।
यही नहीं इन जिलों के करीब 450 ईंट भट्ठों को भी इस शासनादेश के कारण संचालित करने की अनुमति नहीं दी गई है। यह अलग बात है कि वे बिना एनओसी लिए चल रहे हैं। कई उद्यमी इस शासनादेश के कारण इस क्षेत्र में उद्योग लगाने का विचार ही छोड़ चुके हैं।

शासनादेश लागू होने के बाद इस इलाके में सिर्फ एक बड़ा उद्योग चीनी मिल के रूप में लगा है। कुशीनगर जिले के हाटा के पास ढाढा में न्यू सुगर मिल नाम से चीनी मिल स्थापित हुई है। इसको इस शासनादेश से छूट देने के लिए प्रदेश की कैबिनेट मीटिंग हुई थी लेकिन अन्य उद्योगपति इतने प्रभावशाली नहीं निकले जो अपने उद्योगों के लिए सरकार से छूट करा सकें। एक उद्योगपति ने बताया कि यदि यह शासनादेश नहीं होता तो छोटे-बड़े एक दर्जन उद्योग तो स्थापित हो ही गए होते।
अब 50 के बजाय 20 किमी के दायरे में प्रदूषणकारी उद्योग न लगाने की सिफारिश
वर्ष 2004 के शासनादेश से प्रभावित उद्यमियों ने जब इस बारे में सरकार में दबाव बढ़ाया तो सात माह पहले क्षेत्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, गोरखपुर से रिपोर्ट मांगी गई। बोर्ड ने अपनी रिपोर्ट संस्कृति मंत्रालय को भेज दी है। क्षेत्रीय प्रदूषण नियंत्रण अधिकारी ने बताया कि अब चंूकि बुद्ध की प्रतिमा की उंचाई 200 फीट से अधिक नहीं होनी है, इसलिए हमने 50 के बजाय 20 किलोमीटर के दायरे में वायू प्रदूषणकारी उद्योग न लगाए जाने का प्रस्ताव किया है लेकिन अभी इस प्रस्ताव पर कोई निर्णय नहीं लिया गया है।

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