समाचार

सिद्धार्थनगर में जमुआर, राप्ती, घोघी ने 1998 का रिकार्ड तोड़ा, 600 से अधिक गांव और आधा दर्जन कस्बे बाढ़ से प्रभावित

जीएनएल रिपोर्टर

सिद्धार्थनगर, 22 अगस्त। सिद्धार्थनगर जिला एक पखवारे से बाढ़ से जूझ रहा है। गोरखपुर और बस्ती मंडल में बाढ़ से सबसे अधिक प्रभावित यही जिला है। आधिकारिक रूप से जिले के 300 गांवों को बाढ़ से प्रभावित होने की बात कही जा रही है लेकिन लोगों के अनुसार 600 से 700 गांव बाढ़ से प्रभावित हैं। गांव तो गांव जिला मुख्यालय से लेकर बांसी, जोगिया, उस्का सहित कई कस्बे कई दिन से पानी से भरे हुए हैं और सिद्धार्थनगर का पड़ोसी जिलों से सड़क सम्पर्क खत्म हो गया है। आज नदियों के उफान में स्थितरता दिखी है लेकिन बाढ़ से ज्यादा राहत नहीं मिली है।
सिद्धार्थनगर में बाढ़ ने सबसे पहले दस्तक शोहरतगढ़ में दी। बानगंगा, सोतवा, घोरही, चरगहवां नदी नेपाल की पहाड़ियों से आए पानी से उफना गईं और शोहरतगढ से लेकर बढ़नी तक को बाढ़ की चपेट में ले लिया। बाढ़ ने महमूदवा ग्रांट तटबंध को तोड़ दिया। इसके बाद जमुआर नदी ने रौद्र रूप दिखाया जिसका सीधा असर जिला मुख्यालय पर हुआ। शहर के सात-आठ मुहल्लों में पानी भर गया और नौगढ़-बांसी व नौगढ़-गोरखपुर मार्ग पर कई स्थानों पर पानी बहने लगा।

flood_sid 2

बांसी तिराहे से पुराने नौगढ़ तक हर जगह जलभराव हो गया। नौगढ़-सोहांस मार्ग पर तीन फीट तक पानी चढ़ गया। पकड़ी के पास गोरखपुर जाने वाली सड़क पर पानी बहने लगा।
बांसी में भी राप्ती नदी के उफनाने से 25 में से 12 मुहल्ले बाढ़ के शिकार हो गए। प्रदेश के आबकारी मंत्री जय प्रताप सिंह के बांसी स्थित राजमहल तक बाढ़ का पानी पहुंच गया। उस्का और जोगिया कस्बे में चार-चार फीट तक पानी भर गया लिहाजा वहां नाव चलाने की नौबत आ गई।
बाढ़ से जिले में चार तटबंध टूटे हैं और कई सड़के कटी हैं या बुरी तरह क्षतिग्रस्त हुई हैं। जमुआर, नदी ने 1998 का रिकार्ड तोड़ते हुए अपने उच्चतम स्तर पर बह रही है। यही हाल घोघी, राप्ती, बूढ़ी राप्ती का है। नदियों के जलस्तर में मामली कमी आ रही है। जमुआर नदी का जलस्तर 16 घंटे में सिर्फ सात सेमी घटा है।

flood_sid 3

यह पहली बार देखा जा रहा है कि नदियांे का जलस्तर बहुत धीरे-धीरे कम हो रहा है। यही कारण है कि बाढ़ इतने दिन से बनी हुई है। पहले यह होता था कि जितने तेज गति से बाढ़ आती थी, उतनी ही जल्दी वापस जाती थी।
एक तरफ बाढ़ से सैकड़ों गांव व लाखों लोग प्रभावित हैं, दूसरी तरफ प्रशासनिक व्यवस्था इतनी ही लचर है। प्रशासन की गति को देखकर लगता है कि उसने बाढ़ से बचाव की कोई तैयारी ही नहीं की थी। नावें तक कम पड़ गई हैं। बाढ़ के दस दिन बाद वाराणसी से नावें मंगाई गई है।

Related posts