समाचार

सैकड़ों सालों से बन रही गोरखपुर की गेहूं की ताजिया

-चौथी मुहर्रम से शुरू होता  निमार्ण, नौवीं को दर्शन के लिए होता है आम

-मिट्टी का प्रयोग नहीं होता, ताजिया की शोहरत दूर-दूर तक

सैयद फरहान अहमद

गोरखपुर,9 अक्तूबर। गोरखपुर में  मियां साहब इमामबाड़े में रखे सोने-चांदी, लकड़ी की ताजिया  की तरह दूर तलक इस गेहूं की ताजिया की भी शोहरत है। यह ताजिया तैयार होती है पूर्वांचल की बड़ी व्यापारिक मंडी साहबगंज में। गेहूं की ताजियां उम्दा कारीगरी और विज्ञान का उम्दा नमूना है।

साहबगंज में स्थित इमामचौक पर गेहूं  की ताजिया अपने आप में अनोखी और प्राकृतिक जुड़ाव अपने अंदर समेटे हुये है। सैकड़ों सालों से इस गेहूं की ताजिया का निमार्ण प्रत्येक मुहर्रम में किया जाता है। आठ फीट ऊंची गेहूं की ताजिया के निमार्ण में करीब 25 किलो गेहूं के उत्तम किस्म के दानों का प्रयोग किया जाता है। इस ताजिया निमार्ण में अहम भूमिका निभाने वाले साजिद अली ने बताया कि इसके निमार्ण में आठ से नौ हजार रूपये की लागत आती है। बांस का एक ढांचा तैयार किया जाता है। फिर बांस पर कपड़ा चढ़ाया जाता है। उसके बाद गेहूं के दानों को एक खास पदार्थ से सेट किया जाता है। तत्पश्चात् फिर हरे रंग का कपड़ा चढाया जाता है।

उन्होंने बताया कि जो पदार्थ इसमें प्रयोग किया जाता है उसकी जानकारी इस ताजिया का निमार्ण करने वाले एवं इसके मुतवल्लियों के अलावा किसी को नहीं है। गेहूं के दानों को सेट करने में यह पदार्थ अहम भूमिका निभाता है। पदार्थ कितनी मात्रा व कितने वजन का होगा यह भी रहस्य है। उन्होंने आगे बताया कि हर दो घण्टे में इस ताजियां को पानी व लोहबान का धुंआ दिया जाता है। हर दो घण्टे बाद आप इस गेहूं की ताजिया को देखेगें तो परिवर्तित पायेेेंगे।  जहां अन्य ताजियों को बनाने में काफी समय लगता है वहीं यह ताजिया महज पांच दिनों में जनता दर्शन के लिए मुकम्मल हो जाती है। एक बात और काबिले गौर है कि इसमें मिट्टी का प्रयोग नहीं किया जाता हैं।

इमाम चौक के वर्तमान मुतवल्ली हाजी जान मोहम्मद ने बताया कि उनके वंशजों ने इस ताजिया का निमार्ण सैकड़ों वर्षों पूर्व से शुरू किया जो आज भी जारी है। इस ताजियें की शोहरत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इस ताजिया के निमार्ण अपने इलाके में करने के लिए अकीदतमंद अच्छी खासी रकम भी देने को तैयार है। मुतवल्ली हाजी जान का कहना है कि मुबंई, दिल्ली, हैदराबाद, लखनऊ से काफी लोगों ने उनसे सम्पर्क किया और बड़ी रकम देने की पेशकश की पर उन्होंने इस ठुकरा दिया।

उन्होंने बताया कि इमाम हुसैन का करम है कि अन्य दिनों में यह प्रयोग किया जाये तो सफल नहीं होता है। लेकिन मुहर्रम के पांच दिनों के अंदर ताजिया मुकम्मल तैयार हो जाती है। इस ताजियां का दीदार करने के बाद आप इसे देखते रह जायेंगे। मुहर्रम में यह ताजिया हिंदू मुस्लिम एकता का केंद्र बन जाती है। इस इमाम चैक के किरायेदार केसरीचंद मुहर्रम शुरू होते ही अपना कारोबार समेट इसमें सहयोग करते है। वर्तमान मुतवल्ली ने बताया कि वर्षों पहले विदेशीयों का एक ग्रुप भारत भ्रमण के दौरान जनपद आया था उसने इस ताजियों को देख आश्चर्यता प्रकट करते हुए तारीफ की थी।  चौथी मुहर्रम से इसको बनाने का कार्य शुरू होता है। नौवीं मोहर्रम का आमजन के लिए खोल दिया जाता है। यहां प्रत्येक धर्म के लोग आते है और मन्नतें मानते है। मन्नतें पूरी होने पर चांदी का पंजा, आंख, व छोटी ताजिया चढाते है। यहां बराबर इमाम हुसैन उनके जानिंसारों के इसाले सवाब के लिए फातिहा ख्वानी होती रहती है। मुहर्रम की दसवीं तारीख को राप्ती में प्रवाहित कर दिया जाता है। आज से 26 वर्ष पूर्व 12 फीट की ताजिया का निमार्ण होता था। जिसमें चालीस किलो गेहूं के दानों का उपयोग किया जाता था। बाद में ताजिया की ऊंचाई 8 फीट कर दी। उन्होंने बताया कि वैज्ञानिक आश्चर्य करते है कि गेहूं के दाने को बांस पर फीट कैसे करते है। ⁠⁠⁠⁠

Related posts