विचार

हमारे लिए तो होली बेरंग है

 

बेचन सिंह पटेल

प्रदेश के शिक्षामित्रों में जहां समायोजन रद्द होने का दुख है वहीं काम के बदले दाम न मिलने का मलाल. 25 जुलाई को समायोजन निरस्त होने के बाद से ही न तो सात महीने से बेसिक के शिक्षामित्रों का मानदेय मिला और न ही सर्व शिक्षा अभियान के शिक्षामित्रों को दो माह से मानदेय मिला. इसके सिवा प्रदेश में हर दिन कोई न कोई शिक्षामित्र अवसाद में अपने प्राण त्याग रहा है. ऐसे में होली का त्योहार कैसे मनाया जा सकता है.

कोई भी त्योहार हंसी और ख़ुशियों का त्योहार होता है लेकिन जो दुख ,पीड़ा, लाचारी , बेबसी में जकड़ा हो वह होली या कोई अन्य त्योहार कैसे मना सकता हैं ?

ऐसा हमने बुजुर्गों से जाना है कि होली के दिन दुश्मन भी गले मिल जाते हैं । क्या शिक्षामित्र दुश्मन से भी ऊपर है ? यह यक्ष प्रश्न है । हमने शुभकामना देकर अपना फ़र्ज़ निभाया है अब आप क्या सोचते हैं आप जाने । इतना ज़रूर है आज शिक्षामित्रों के घर सिवाय दुख ,पीड़ा, बेबसी ,लाचारी , आर्थिक तंगी के अलावां कुछ नहीं है । रंगबिरंगे रंगों के जगह सिर्फ़ आंखों में आंसू है और नौकरी पुन: बहाल होने की ललक । दिवाली आपने ले ली ,घर में दीप नहीं जले , आज होली भी आपने ले ली है । न घर में पुआ पाकवान  ,न चेहरे पर उल्लास और न ही रंग बिरंग गुलाल ।

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