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हवा हवाई है इंसेफेलाइटिस से जंग, सबसे अधिक प्रभावित 5 गांवों में 130 में से 51 हैण्डपम्प खराब

गोरखपुर, 5 जुलाई। इंसेफेलाइटिस खास कर जल जनित इंसेफेलाइटिस की रोकथाम में शुद्ध पेयजल बहुत जरूरी है और गांवों में शुद्ध पेयजल का सबसे भरोसेमंद स्रोत इंडिया टू मार्का हैंडपम्प होता है लेकिन आम तौर पर शिकायत रहती है कि ये हैण्डपम्प खराब रहते हैं और जितनी संख्या में इसकी जरूरत है, उतने उपलब्ध नहीं है।
इंसेफेलाइटिस की रोकथाम के लिए गांवों में प्रत्येक 50 घरों पर एक इंडिया मार्का हैण्डपम्प देने की व्यवस्था की गई है और सरकारी दावा है कि यह लक्ष्य पूरा भी कर लिया गया है।
लेकिन जमीनी हकीकत क्या है यह आज एक स्वंयसेवी संस्था द्वारा इंसेफेलाइटिस पर आयोजित कार्यशाला में दिख गया। कार्यशाला में जब संस्था के कार्यकर्ताओं ने यह जानकारी दी कि खोराबार ब्लाक के पांच गांवों में स्थापित 130 हैण्डपम्पों में से 51 खराब हैं, तो सब हैरान रह गए।
मानव सेवा संस्थान नाम की इस संस्था ने आज गोरखपुर जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन में जेई/एईएस से बचाव व रोकथाम विषय पर कार्यशाला का आयोजन किया था। संस्था ने कुछ समय पहले गोरखपुर जिले के खोराबार ब्लाक के पांच गांवों- जंगल अयोध्या प्रसाद, मिर्जापुर , सनहा , जंगल सिकरी और जंगल रामगढ़ उर्फ चंवरी में इंसेफेलाइटिस की रोकथाम के लिए कार्य शुरू किया है।
कार्यशाला के मौके पर संस्थान ने पांच गांवों में कार्य करने के अनुभव शेयर किए। बताया गया कि संस्था ने जो पांच गांव काम करने के लिए चुना है, वह हाई रिस्क वाले गांव हैं यानि यहां इंसेफेलाइटिस के सबसे अधिक केस रिपोर्ट किए गए हैं। संस्था के लोगों ने जब पांचों गांवों का रैपिड सर्वे किया तो सबसे अधिक चौंकाने वाली बात इंडिया मार्का हैण्डपम्पों की खराबी के आए। पता चला कि इन पांच गांवों में 130 में से 51 हैण्डपम्प खराब हैं। जंगल अयोध्या प्रसाद में 12, मिर्जापुर में 8, सनहा में  12 , जंगल सिकरी में 6 और जंगल रामगढ़ उर्फ चंवरी में 13 इंडिया मार्का टू हैण्डपम्प खराब हैं।
इतनी बड़ी संख्या में इंडिया मार्का टू हैण्डपम्पों की खराबी बताती है कि इन गांवों के लोग पेयजल के लिए देशी हैण्डपम्पों पर निर्भर है जो काफी कम गहराई पर बोर होते हैं। कम गहराई पर बोर होने के कारण इनके द्वारा दिए जा रहे पानी में जल जनित इंसेफेलाइटिस के विषाणु होते हैं और लोग इससे संक्रमित होते हैं।
सर्वे में सनहा गांव में दो सुअरबाड़े भी पाए गए। इन सुअरपालकों को इंसेफेलाइटिस के बारे में कोई जानकारी नहीं थी और इनके सुअरबाड़े खुले में थे। सुअर पूरे गांव में घूमते रहते हैं। सनद रहे कि सुअर जापानी इंसेफेलाइटिस के विषाणुओं के एम्पलीफायर होस्ट होते हैं। इसलिए जापानी इंसेफेलाइटिस की रोकथाम के लिए सुअरबाड़ों के प्रबंधन पर जोर दिया जाता है। इसके लिए सुअर पालकों को प्रशिक्षण देने, सुअरों की समय-समय पर जांच करने और उनके टीकाकरण की योजना है लेकिन देखा जाता है कि यह योजना कागजों पर ही रहती है। इस गांव में भी सुअरबाड़ों के प्रबन्धन के लिए कोई कार्य नहीं किया गया है।
ये दोनों स्थितियां बताती हैं कि इंसेफेलाइटिस के रोकथाम की सरकारी प्रयास कितने हवा हवाई हैं। यही कारण है कि सूबे में निजाम बदल जाने और बदले निजाम द्वारा इंसेफेलाइटिस के लिए बड़ी-बड़ी घोषणाएं करने के बावजूद इस वर्ष के छह महीनों में इंसेफेलाइटिस का हमला विगत वर्षों की तरह ही है और इंसेफेलाइटिस के केस और उससे होने वाली मौतों में कोई कमी नहीं है।

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