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एम्स से इंसेफेलाइटिस का इलाज व शोध तो होगा उन्मूलन नहीं: डा. आरएन सिंह

इंसेफेलाइटिस के उन्मूलन के लिए राष्ट्रीय इंसेफेलाइटिस उन्मूलन कार्यक्रम लागू करना जरूरी
माओं की आँखों की लाली कम करना ठीक लेकिन उनके लालों को बचाना उससे ज्यादा जरूरी
गोरखपुर, 1 जून। देश में इंसेफेलाइटिस उन्मूलन के लिए राष्ट्रीय इंसेफेलाइटिस उन्मूलन कार्यक्रम (नीप) बनाने और उसे लागू करने की मांग को लेकर अभियान चला रहे चिकित्सक डा. आरएन सिंह ने कहा है कि गोरखपुर में एम्स बनने से इंसेफेलाइटिस के शोध व इलाज की सुविधा तो मिलेगी लेकिन इसका उन्मूलन तभी संभव होगा जब इसके रोकथाम की समुचित योजना बने। इसलिए इंसेफेलाइटिस के लिए राष्टीय कार्यक्रम बना कर इसे शीघ्र लागू किया जाना चाहिए।

photo Dr.R.N.Singh
डॉ आर एन सिंह

डा. सिंह ने एक बयान में कहा कि सरकार इस बात से पूरी तरह अवगत है कि इंसेेफेलाइटिस से सैकड़ों मासूमों की जान हर वर्ष जा रही है। देश के 19 राज्यों में यह बीमारी है। इस बीमारी का कोई सटीक इलाज नहीं है। रोकथाम का उपाय भी सबसे जरूरी चीज है। फिर भी सरकारें मूलतः केवल इलाज पर ही ध्यान केंद्रित करतीं हैं, वह भी मौत के सीजन में।इस महामारी में 30 फीसदी मृत्यु दर और 15 से 20 फीसदी विकलांगता होती ही है, चाहे किसी भी स्तर का इलाज क्यों न प्रदान किया जाय। सरकार की सोच है कि एम्स बन जाने पर इंसेफलाइटिस पर लगाम लग जाएगी, 100 फीसदी निराधार और मिथ्या है क्योंकि एम्स तो केवल शोध और इलाज तक ही सीमित रहेगा। बीमारी के रोकथाम में उसकी कोई भूमिका नहीं होगी। डा. सिंह ने कहा कि आठ वर्ष के सतत संघर्ष के बाद इंसेफलाइटिस के लिए प्रिवेंशन और नियंत्रण का नेशनल प्रोग्राम (नीप) 2012 और फिर 2014 में बना लेकिन लागू आज तक नहीं हुआ। इसके लिए 2012 से ही आवाज उठायी जा रही है। लोगों ने खून से हजारों पोस्टकार्ड लिखे लेकिन केन्द्र सरकार की ओर से अभी तक एक शब्द का बयान का तक जारी नहीं किया इंसेफेलाइटिस पर कार्यक्रम तो दूर की बात है।

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इंसेफेलाइटिस उन्मूलन अभियन ने 20 फरवरी 2015 को केंद्रीय स्वास्थ्य स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा से मिलकर भी राष्ट्रीय इंसेफेलाइटिस उन्मूलन कार्यक्रम को तत्काल लागू करने की सिफारिश भी की लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला। पूर्व स्वास्थ्य मंत्री श्री हर्षवर्धन से भी मिलकर वर्ष 2014 में अभियान का घोषणा पत्र भी सौंपा लेकिन अभी तक नतीजा सिफर ही रहा।
उन्होंने कहा कि यह .समझ से परे है कि माओं की आँखों की लाली कम करने के लिए सरकार उज्ज्वला योजना लागू कर रही है लेकिन माओं के लालों को बचाने के लिए नेशनल प्रोग्राम क्यों नहीं लागू कर देती, जो चार साल पहले ही बना हुआ तैयार है। चूल्हे तो आँख की लाली जरूर कम करेंगे और एक बहुत अच्छा कदम है लेकिन इंसेफलाइटिस के कारण हजारों माओं की ऑंखें गीली हो रहीं है,गोद सूनी हो रही है , बुढ़ापे की लाठी टूट रही है, उसका क्या ?

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