साहित्य - संस्कृति

कहानी पाठ और कहानियों पर आधारित नाटक का मंचन कर याद किया प्रेमचंद को

प्रेमचंद जयंती पर प्रेमचंद पार्क में प्रेमचंद साहित्य संस्थान ने किया आयोजन
गोरखपुर, 31 जुलाई। प्रेमचंद जयंती पर आज प्रेमचन्द साहित्य संस्थान ने प्रेमचंद पार्क में कथाकार रवि राय की कहानी ‘ ग्रीशा ’ का पाठ और प्रेमचंद के दो कहानियों-‘ सौत ’ और ‘ पूस की रात ’ पर आधारित नाटक के मंचन का कार्यक्रम किया।
कार्यक्रम का प्रारम्भ साहित्यकार मदन मोहन, देवेन्द्र आर्य, कपिलदेव, प्रमोद कुमार, रवि राय, राजाराम चैधरी, मनोज कुमार सिंह, लाल बहादुर, डा. मुमताज खान आदि द्वारा प्रेमचन्द की प्रतिमा के माल्यार्पण से हुआ। इसके बाद कहानीकार रवि राय ने अपनी कहानी ‘ ग्रीशा ’ का पाठ किया।
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यह कहानी एक ऐसे परिवार की कहानी है जिसमें घर के बच्चे परिवार के मुखिया शर्मा जी की नाराजगी के बावजूद एक कुतिया ‘ ग्रीशा ’ को घर लाते हैं और घर के एक सदस्य की भांति प्यार से उसका पालन-पोषण करते हैं। शर्मा जी का व्यवहार ग्रीशा के प्रति हमेशा खराब रहता है लेकिन बच्चों की जिद के आगे उनकी एक नहीं चलती। एक बार नवरात्रि में शर्मा जी के पूजा घर में ग्रीशा उनके पूजा के सामानों को उलट-पुलट देती है जिससे क्रोधित कर उसे घर से बाहर फेंक देते हैं। शर्मा जी के इस व्यवहार के खिलाफ बच्चे और महिलाएं विद्रोह कर देते हैं जिसके कारण खुद शर्मा जी को ग्रीशा को घर लाना पड़ता है।
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कहानी पर चर्चा करते हुए वरिष्ठ कथाकार मदन मोहन ने कहा कि इस कहानी में रवि राय की भाषा और कहने के तरीके में खास तरह की परिपक्तवा दिखायी देती है। उन्होंने कहा कि आज ऐसा समय है जिसमें इंसान का जीवन जानवरों से भी बदतर होता जा रहा है जिसकी चिंता न तो हमारी राजनीति को है न शासन व्यवस्था को है। ऐसे में साहित्य से उम्मीद बनती है कि वह इसकी चिंता करें।
वरिष्ठ कवि देवेन्द्र आर्य ने कहा कि ये कहानी मनोवैज्ञानिक है और कहानी को ग्रीशा की मनोविज्ञान से भी समझने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि जानवरों को लेकर कम लेखन हुआ है। रवि राय ने आसानी से कहने वाली अच्छी कहानी रची है। आलोचक कपिलदेव ने कहा कि कभी साहित्य के केन्द्र में कहानी थी जो वैचारिक बहस को निर्मित करती थी लेकिन वह वातावरण लुप्त हो गया है जो कि ठीक ही है। इन कहानियों में पाठक जीवन की तलाश नहीं कर पाते थे और ये कहानियां आलोचक केन्द्रित थीं। रवि राय की कहानी विमर्श मूलक दृष्टिकोण से इतर कहानी को यथार्थ, वास्तिवकता और सहज अनुभव पर है। उन्होंने कहा कि रवि राय की कहानी पोलिटिकल रीडिंग की कोई गुंजाइश नहीं छोड़ती है। कभी-कभी रचना का मीनिंगलेस होना भी पाठक को साहित्यिक आस्वाद से भर देता है। यह कहानी तो हमें अतिरिक्त भी दे रही है।
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इसके पहल कहानी पर चर्चा शुरू करते हुए फिल्मकार प्रदीप सुविज्ञ ने कहा कि कहानी का सुनते हुए आज के दौर में असहिष्णुता और जानवरों को लेकर हो रही राजनीति याद आ रही है। पंकज मिश्र ने कहा कि इस कहानी में शर्मा जी परिवर्तित नहीं हुए हैं बल्कि पराजित हुए हैं। उन्होंने कहानी में खालीपन को चिन्हित किया और कहा कि यदि यह और आगे बढ़ती तो बड़ी कहानी बन सकती थी। प्रो अशोक सक्सेना ने कहा कि पितृ सत्ता को संवेदना से परास्त करने की बात कहानी बखूबी कहती है। उन्होंने कहानी में सपाट बयानी को जरूरत बताया लेकिन कवि प्रमोद कुमार ने उनसे असहमति जताते हुए कहा कि सपाट बयानी मांग ठीक नहीं है। कहानी में गहराई से उतरने की जरूरत है। कहानी चर्चा में अशोक चैधरी, आनन्द पांडेय, जगदीश लाल श्रीवास्तव ने भी हिस्सा लेते हुए बात रखी। संचालन प्रेमचन्द साहित्य संस्थान के सचिव मनोज कुमार सिंह ने किया।
प्रेमचंद की कहानी पर आधारित नाटक ‘ सौत ’ और ‘ पूस की रात ’ का मंचन
कहानी पाठ के बाद इप्टा की गोरखपुर इकाई ने प्रेमचंद की कहानी पर आधारित नाटक सौत का मंचन किया। यह कहानी में रामू द्वारा अपनी पत्नी रजिया को त्याग कर एक दूसरी स्त्री दसिया को घर ले आता है। रजिया कड़ी मेहनत कर खेती-किसानी से अपनी आर्थिक स्थिति बेहतर कर लेती है लेकिन कोई काम न करने के कारण रामू के हालात विपरीत हो जाते हैं और बीमारी के कारण विस्तर पर पड़ जाता है। अपने किए पर पछतावा करते हुए मर जाता है तो रजिया ही उसके बच्चे व दसिया को संभालती है। नाट्य रूपान्तर व निर्देशन डा. मुमताज खान ने किया। मंच परिकल्पना व परिधान सीमा मुमताज का था। नाटक में रीना श्रीवास्तव, सोनी निगम, प्रियंका अग्रहरी, एस रफत हुसैन, धर्मेन्द्र दुबे, विनोद चन्द्रेश, आसिफ सईद, संजय सत्यम, तनवीर आजाद, नीलाभ पांडेय, मृत्युंजय शंकर सिन्हा, महेश तिवारी, शैलेन्द्र निगम और कुशग्र अग्रहरि ने अभिनय किया।
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इस नाटक के बाद अलख कला समूह ने प्रेमचंद की प्रसिद्ध कहानी ‘ पूस की रात ‘ का मंचन किया। इसमें नीरज विश्वकर्मा ने एकल अभिनय का इस कहानी का मंच पर जीवित किया। प्रस्तुति में गुड्डू यादव, राधा  और जंजीर सिंह ने सहयोग दिया। नाट्य रूपान्तरण व निर्देशन बैजनाथ मिश्र ने किया।
कहानी सुनने और नाट्य प्रस्तुति देखने सैकड़ों दर्शक जमा हुए थे।

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