साहित्य - संस्कृति

‘ क्रांति के रागिनी हम त गईबे करब ’

आरा में जनकवि रमाकांत द्विवेदी ‘रमता’ जन्मशती कार्यक्रम का आयोजन

आरा (बिहार ), 1 नवम्बर.  हिंदी और भोजपुरी के जनकवि रमाकांत द्विवेदी ‘रमता’ जन्मशती के अवसर पर 29 अक्टूबर को आरा के रेड क्रॉस सोसाइटी के हॉल में रमता-स्मरण का आयोजन हुआ। यह कार्यक्रम जन संस्कृति मंच के जनभाषा समूह की तरफ से आयोजित था।

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कार्यक्रम का आरंभ रमता जी के गीतों से हुआ। हिरावल के राजन और अनिल अंशुमन और निर्मोही ने ‘ क्रांति के रागिनी हम त गईबे करब ‘ गाकर कार्यक्रम का आरंभ किया। युवा नीति के राजू रंजन और उनके साथियों ने ‘ अइसन गांव बना दे ‘ की भव्य प्रस्तुति की।

अध्यक्ष-मंडल के सदस्य के रूप में वरिष्ठ आलोचक रामनिहाल गुंजन, हिंदी-भोजपुरी के कथाकार, नाटकार एवं कवि सुरेश काँटक, जलेस , बिहार के सचिव और कथाकार नीरज सिंह, कवि-आलोचक चंद्रेश्वर, कथाकार और आलोचक अरविंद कुमार,हिंदी-भोजपुरी के कवि-कथाकार जितेंद्र कुमार मंच पर थे। कार्यक्रम का एक पक्ष रमता जी आधारित संस्मरणों पर था और दूसरा उनकी कविताओं के मूल्यांकन पर। सुनील सरीन, राकेश दिवाकर, डॉक्टर विन्देश्वरी, बालमुकुंद चौधरी, निर्मल नयन, दशरथ सिंह ने दिलचस्प संस्मरण सुनाए।

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संतोष सहर ने रमता जी से संबंधित संस्मरणों के साथ-साथ उनके रचनात्मक अवदान के रूपों और स्तरों पर प्रकाश डाला। संतोष ने उनकी 300 के करीब अप्रकाशित रचनाओं को इकट्ठा किया है। उनका कहना है कि रमताजी ने हिंदी और भोजुरी दोनों में क्रांतिकारी गीतों के साथ-साथ प्रेम, प्रकृति, गांव और किसानों पर कई यथार्थपरक कविताएं लिखीं हैं।

माले के विधायक सुदामा प्रसाद ने रमता जी के संघर्षशील व्यक्तित्व पर बात की। सुमन कुमार ने रमता जी के आजादी के संघर्ष की कविताओं के साथ साथ आजादी के बाद की कविताओं की चर्चा करते हुए कहा कि जीवन और समाज और बदलते राजनीतिक हालातों का बड़ा जीवन्त चित्रण है। गांधीजी के विचारों और कार्यक्रमों से प्रभावित रमता जी निरन्तर अपने को बदलते हैं। वे कम्युनिस्ट पार्टी ज्वाइन करते हैं,फिर अपनेको भा क पा -माले तक ले आते हैं और इस पूरे बदलाव को काव्य विषय बनाते हैं।

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अनिल अंशुमन ने रमताजी के महत्व पर प्रकाश डालते हुए उनको और उनकी धारा के कवियों को गंभीरता से लेने की जरूरत पर बल दिया। सुधीर सुमन ने उनको जन-राजनीतिक चेतना का कवि कहा । भाषा के स्तर पर भी सचेत। चंद्रेश्वर ने उनकी कविताओं को त्रिलोचन, नागार्जुन , केदार के साथ देखने की जररूत को रेखांकित किया। जितेंद्र कुमार ने उनको व्यापक संदर्भों में बदलाव को संभव करने की वैचारिकी का कवि कहा। सुरेश काँटक ने रमताजी को जन सरोकारों का राजनीतिक चेतना सम्पन्न कवि कहा। क्रांतिकारी वाम राजनीति का प्रखर प्रवक्ता कवि। अरविंद कुमार ने उनकी रचनाओं के समग्र प्रकाशन के लिए कहा। नीरज सिंह ने विस्तार पूर्वक बात करते हुए उनके विविध रचनात्मक मोड़ों का जिक्र किया और उनको गतिशील एवं बदलाव का प्रतिबद्ध कवि कहा। गुंजन जी ने उनको बड़ी चिंताओं का कवि कहा।

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सभागार में रमताजी की कई कविताओं के साथ साथ कई हिंदी और भोजपुरी के कवियों की कविताओं के पोस्टर लगे थे । पोस्टर संभावना कला मंच के साथियों ने बनाये थे।निहाल कुमार ने पोस्टरों को सजाया। राकेश दिवाकर की पैंटिंग्स भी लगे थे। कार्यक्रम का संचालन डॉ बलभद्र ने किया। हॉल में डॉक्टर सुनीति प्रसाद, कवि अरुण शीतांश, कवि ओमप्रकाश मिश्र, सुनील चौधरी, सुनील श्रीवास्तव , इंदु , अजित कुशवाहा,आशुतोष कुमार पांडेय, अभय कुमार पांडेय, कामरेड जवाहर सहित 100 से अधिक लोगों की उपस्थिति रही।

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