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खेग्रामस का नोटबंदी के खिलाफ देशव्यापी अभियान का निर्णय, 15 जनवरी को जिला मुख्यालयों पर प्रदर्शन

पटना में हुई खेग्रामस की दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक

‘ नोटबंदी के कारण शहर से गांव की ओर उलटा पलायन, मजदूरी दर में आई भारी गिरावट ‘
‘ मजदूर-किसानों के सभी प्रकार के कर्जे माफ हों, केवल बात बनाने की बजाए बेनामी संपत्ति जब्त करे सरकार ‘
शहरी क्षेत्र में भी जमीन-जायदाद पर सीलिंग कानून लागू करने की मांग 
पटना 26 दिसंबर। अखिल भारतीय खेत व ग्रामीण मजदूर सभा (खेग्रामस) ने कहा है कि नोटबंदी ने मजदूर व मेहनतकश वर्ग और देश की अर्थव्यस्था पर बेहद नकारात्क असर डाला है। आज पूरे देश में शहर से गांव की ओर उल्टा पलायन हो रहा है। खेग्रामस ने नोटबंदी के खिलाफ देशव्यापी अभियान का निर्णय लेते हुए 15 जनवरी को जिला मुख्यालयों पर प्रदर्शन करने का एलन किया और सरकार से मांग की कि  मजदूर-किसानों के सभी प्रकार के कर्जा माफ किया जाय और शहरी क्षेत्र में भी जमीन-जायदाद पर सीलिंग कानून लागू किया जाय।
संगठन की पटना में दो दिवसीय बैठक 25 और 26 दिसम्बर को हुई। बैठक में 10 से अधिक राज्यों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया. मुख्य रूप से खेग्रामस के राष्ट्रीय महासचिव धीरेन्द्र झा, पूर्व सांसद व संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामेश्वर प्रसाद, भाकपा-माले के वरिष्ठतम नेता स्वदेश भट्टाचार्य, तमिलनाडु से बालासुंदरम, आंध्रप्रदेश से बंगा राव, यूपी से राजेश सहनी, पश्चिम बंगाल से सजल अधिकारी, असम से अरूप मोहंती, झारखंड से परमेश्वर महतो, दिल्ली से राधिका मेनन, बिहार से वीरेन्द्र प्रसाद गुप्ता व गोपाल रविदास तथा उड़ीसा आदि प्रदेशों के नेताओं की भागीदारी रही।

बैठक के बाद संवाददता सम्मेलन को संबोधित करते हुए खेग्रामस नेताओं ने कहा कि नोटबंदी ने मजदूर व मेहनतकश वर्ग और देश की अर्थव्यस्था पर बेहद नकारात्क असर डाला है। आज पूरे देश में शहर से गांव की ओर उल्टा पलायन हो रहा है. रोजगार छीन जाने की वजह से बाहर के प्रदेशों में काम करने वाले मजदूर बड़ी संख्या में बिहार वापस लौट रहे हैं। उनके परिवार के सामने जीवन-मरण का संकट उपस्थित हो गया है. इसकी वजह से मजदूरी दर में भी भारी गिरावट आयी है। न्यूनतम मजदूरी कानून मजाक बन गया है. उधार में काम और काम के अभाव में कम मजदूरी पर काम और यहां तक कि कैश की जगह वस्तु की मजदूरी नई परिघटना बन गयी है। ऐसी विकट परिस्थति उत्पन्न करने के लिए पूरी तरह से मोदी सरकार की सनक भरी नीतियां जिम्मेवार हैं. नोटबंदी के जरिए गरीबों पर जहां एक तरफ हमला किया गया है, वहीं दूसरी ओर पूंजीपतियों के लिए सरकार पैसा जुटाने में लगी है।

खेग्रामस की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में विभिन्न राज्यों से आये प्रतिनिधि उपरोक्त अनुभव को साझा किया। तमिलनाडू, आंध्र, कर्नाटक, ओडिशा, बंगाल, असम, दिल्ली, उत्तरप्रदेश, झारखण्ड आदि से आये खेग्रामस नेताओं ने बताया कि खेती बाड़ी चैपट हुई है और रोजी रोटी का बड़ा संकट उपस्थित हो गया है।

खेग्रामस की राष्ट्रीय बैठक ने प्रस्ताव पारित कर नोटबंदी से प्रभावित गरीबों को तत्काल 1 लाख मुआबजा को लेकर राष्ट्रीय स्तर पर आंदोलन तेज करने का निर्णय लिया है। जनधन खाता को बदनाम करने के खिलाफ आक्रोश जाहिर करते हुए नेताओं ने कहा कि स्विस बैंक और कॉरपोरेट्स खाता खंगालने के बदले जनधन खाता खंगाला जा रहा है। बेनामी सम्पति पर मन की बात तो हो रही है लेकिन उसे जब्त करने से परहेज किया जा रहा है। शहरी जमीन जायदाद को लेकर सीलिंग बनाने से भी सरकार भाग रही है.

नेताओं ने कहा कि हमारे संगठन ने तय किया है कि कालाधन-काली संपत्ति कब्जा करने की मुहिम चलाई जायेगी। लाखों-करोड़ रूपये बैंक का डुबाने पचाने वाले कॉर्पोरेट घराने को और भी बड़े लोन देने की तैयारी पर रोक लगनी चाहिए और गरीबों मजदूरों का लोन में हिस्सेदारी बढ़ाई जानी चाहिए। मजदूर-किसानों के सभी तरह के कर्ज माफ किये जाने चाहिए। मनरेगा के काम में तेजी लायी जानी चाहिए. वास-आवास को मौलिक अधिकार बनाने और दलितों-आदिवासियों गरीबों के भूमि अधिकार की गारंटी करने को लेकर खेग्रामस राष्ट्रव्यापी अभियान चलाएगा।

खेग्रामस ने बैठक से दलितों-अल्पसंख्यकों पर बढ़ते हमले के खिलाफ आक्रोश जाहिर किया गया. संगठन ने नीतिश सरकार की मोदीपरस्ती की आलोचना की है और विकास के मौलिक प्रश्न से भागने का आरोप लगाया है. उन्होंने कहा कि नीतीश कुमार पहले कभी-कभार भूमि सुधार जैसे मौलिक प्रश्नों की चर्चा भी करते थे, लेकिन अब उससे पूरी तरह भाग खड़े हुए हैं. बिहार के विकास के मौलिक प्रश्नों पर काम करने बजाए सरकार 7 निश्चय की लफ्फाजी कर रही है.

आज बिहार समेत पूरे देश में ग्रामीण गरीबों को जमीन से बेदखल किया जा रहा है. जिस जमीन पर वे बरसो से बसे हैं, वहां से भी उन्हें उजाड़ा जा रहा है. हाल ही में, भागलपुर से लेकर पटना तक दलित-गरीबों के ऊपर बर्बर जुल्म ढाये गये हैं. भागलपुर में वास-आवास की जमीन की मांग कर रहे दलितों-गरीबों के दमन, चंपारण में बेनामी जमीन पर बसे गरीबों को उजाड़ने के खिलाफ आंदोलनरत माले नेताओं की गिरफ्तारी, राजधानी पटना में मांझी जाति के बेदखल गरीबों पर बर्बर पुलिसिया दमन तथा दरभंगा के कटैया मुशहरी में दमन की लगातार बढ़ती घटनायें नीतीश सरकार के ‘सामाजिक न्याय’ के दावे की पोल खोल रही हैं।