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 गोरखपुर में है मिस्र में बना 176 साल पुराना गिलाफ-ए-काबा

सैयद फरहान अहमद
कदम-ए-रसूल व गौसे पाक के मजार का पत्थर भी मौजूद
गोरखपुर, 5 जुलाई। शहर में इस्लाम से सबंधित तमाम पवित्र वस्तुएं (तबरूकात) मौजूद है। जिनके बारे में लोगों को बहुत जानकारी नहीं है। उन्हें मेें से एक अजीम तबरूकात है मिस्र की कुंवारी लड़कियों के हाथों से बना 176 साल पुराना गिलाफ-ए-काबा। इसी के साथ है मदीना से लाया गया कदम-ए-रसूल व बगदाद से लाया गया हजरत गौसे पाक के मजार का पवित्र पत्थर।  यह सब मौजूद है एक छत के नीचे जाफरा बाजार स्थित सैयद नौशाद अली सब्जपोश के घर में। ईद-उल-फित्र व ईद-उल-अज्हा के मौके पर हर खासो आम के लिए जियारत आम मस्जिद सब्जपोश हाउस जाफराबाजार में होती है।
सब्जपोश खानदान के सैयद दानिश अली सब्जपोश ने बताया कि इन पवित्र वस्तुओं को सन् 1840 में मीर अब्दुल्लाह पवित्र हज यात्रा के दौरान वापसी में लेकर आये थे।

 

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उन्होंने बताया कि सन् 1840 में मीर अब्दुल्लाह के नेतृत्व में घोड़ों से हज करने के लिए एक काफिला तैयार हुआ। जब ये इराक स्थित बगदाद शरीफ पहुंचे तो उस वक्त हजरत गौसे पाक की मजार की दोबारा तामीर हो रही थी। उन्होंने मजार से निकले पत्थर को मजार के खादिम से तबरूक के तौर पर मांग लिया।
इसके बाद हज करने अरब पहुंचे तो काबा शरीफ का गिलाफ उतारा जा रहा था। गिलाफ को हदिया के रूप में खास लोगों को काबा शरीफ का गिलाफ देने की परंपरा थी। मीर अब्दुल्लाह भी रूउसों में शुमार थे। उन्हें भी दस्तयाब किया गया। वहीं मदीना शरीफ से उन्हें कदमें रसूल भी मिला। फिर वह लेकर गोरखपुर चले आये।
तब से लेकर इन पवित्र वस्तुओं की जियारत बादशाह शाहजहां के जमाने की बनी मस्जिद में करायी जाती है।

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सब्जपोश परिवार

मस्जिद के खतीब व इमाम इदैन हाजी जाकिर हुसैन ने बताया कि काबा शरीफ का जो गिलाफ हैं, वह मिस्र की कुंवारी लड़कियों द्वारा रेशम के घागे से तैयार किया जाता था। तारीखे गिलाफे काबा किताब  में लिखा गया है कि उस जमाने में बादशाह के हुकूम से काबा शरीफ का गिलाफ मिस्र की कुंवारी लड़कियां तैयार करती  थी। काले गिलाफ पर रेशम से कुरआन की आयतें लिखी जाती है। हर साल काबा का गिलाफ बदला जाता था और जो नामी लोग होते थे उन्हें देने की परंपरा थी। इसी परम्परा के अधीन मीर अब्दुल्लाह को भी गिलाफ मिला।
उन्होंने बताया कि जो लोग काबा शरीफ नहीं जा पाते वह इस पवित्र गिलाफ, कदम-ए-रसूल व हजरत गौसे पाक के मजार का पत्थर जियारत कर सकता है।

शाहजहां के जमाने की मस्जिद
सैयद दानिश अली सब्जपोश ने बताया कि उनके वंशज मीर शाह क्यामुद्दीन शाहजहां के शासन काल में गोरखपुर तशरीफ लायें और यहीं छोटा सा रौजा व मस्जिद तामीर की। तब से यह मस्जिद कायम है। 15 वर्ष पहले इसमें कुछ तामीरी काम कराया गया है। ।
यहीं पर मीर शाह क्यामुद्दीन के पोते मीर सैयद गुलाम रसूल का रौजा है। लोगों का कहना है कि रौजे के गुबंद में उस जमाने की कुरआन शरीफ हजरत अली के तबरूकात मौजूद है। वहीं गैंडे की खाल की ढाल डा. ताहिर अली सब्जपोश के यहां मौजूद है।
सैयद दानिश ने बताया कि जौनुपर से मीर शाह क्यामुद्दीन गोरखपुर तशरीफ लायें। इनके दो साहबजादे मीर अहमदुल्लाह व मीर फजलुल्लाह थे। मीर फजलुल्लाह अवध के फौज में जनरल थे। उन्होने बक्सर के युद्ध में शहादत पायी। इनकी कोई औलाद नहीं थी। लिहाजा उस दौर के बादशाह ने मीर सैयद गुलाम रसूल को माफी नामा, रकम व गांव मिले। यहीं पर सैयद गुलाम रसूल का मकबरा है और यहीं पर गुम्बद में रखा है हजरत अली की तलवार, पुराना कुरआन व अन्य पवित्र वस्तुएं।