साहित्य - संस्कृति

पुराने प्रतिमानों के घेरे को तोड़कर ही नयी कविता लिखी जा सकती है : प्रो जनार्दन

 कवि हरिशरण गौतम के प्रथम काव्य संग्रह ’मेरी आजादी ?’ का लोकार्पण

 ‘ आजादी के उनहत्तर साल और दलितों की वर्तमान स्थिति ’ विषय पर विचार गोष्ठी भी हुई 

गोरखपुर, 15 अगस्त। ‘ भारत के संदर्भ में कविता, कला, संस्कृति कुछ लोगों की बपौती रही है जिन्होंने दलितों-पिछड़ों के कृत्य को सदैव नकारा। अब हाशिये के लोग भी अपना दर्द बयान करने लगे हैं। हरिशरण गौतम की कवितायें समाज के बदहाल लोगों की दास्तान सुनाती है तथा उनकी पीड़ा एवं दर्द को बताती हैं। शोषित वर्ग के लोगों के जो काव्य प्रतिमान हैं, वो वही नहीं हो सकते हैं जो कि परंपरागत रूप में उच्च वर्ग के रहे हैं। इसीलिये पुराने प्रतिमानों के घेरे को तोड़कर ही नयी कविता लिखी जा सकती है जो कि जनता के मुक्ति का अवगाहन बन सकती है।

यह बातें दी.द.उ.गोरखपुर विश्वविद्यालय गोरखपुर के हिन्दी विभाग की पूर्व अध्यक्ष प्रो जनार्दन ने कही। गोरखपुर जर्नलिस्ट एसोसिएशन सभागार, गोलघर में 14 अगस्त को दलित साहित्य एवं संस्कृति मंच, गोरखपुर के तत्वावधान में कवि हरिशरण गौतम ( पूर्व अपर आयुक्त, वाणिज्य कर) के प्रथम काव्य संग्रह ’मेरी आजादी ?’ के लोकार्पण समारोह तथा  ‘ आजादी के उनहत्तर साल और दलितों की वर्तमान स्थिति ’ विषय पर विचार गोष्ठी में बोल रहे थे।

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प्रो जनार्दन ने हरिशरण गौतम की कविता ’’एक अदद आदमी’’ पढ़कर सुनाया तथा इसे आदमी की तलाश करने वाली मूल्यबोध की रचना बताया। आपने कहा कि अगर दलित कवि कविता के द्वारा उच्चवर्ग के लोगों से सराहना या प्रमाणपत्र चाहते हैं तो उन्हे उन्हीं के स्थापित प्रतिमानों के अनुसार लिखना होगा लेकिन अगर आपको नयी दुनिया बनानी है तो आपको नये प्रतिमान गढ़ने होंगे। सुखद है कि दलित साहित्य नेे अपने नये प्रतिमान विकसित कर लिये हैं।
कार्यक्रम के अध्यक्षता कर रहे  पारस नाथ जिज्ञासु ने कहा कि साहित्य समाज का दर्पण होता है अतः इसमें समाज में हो रहे अन्याय, अत्याचार, शोषण एवं पीड़ा की अभिव्यक्ति होती है। अच्छी कविता वही होती है जो मानवता को आगे बढ़ाये। इन्होंने काव्य संग्रह ’मेरी आजादी?’ को मार्मिक रचनायें बताया और कहा कि आजादी के उनहत्तर साल बाद भी दलितो के हालात अच्छे नहीं हुये हैं। देश की मीडिया को अंधविश्वास व पोगापंथ वाले कार्यक्रमों को बंद कर जन जागृति के कार्यक्रम चलाने चाहिये तभी समाज व राष्ट्र का भला होगा।

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विशिष्ट अतिथि द्रुपद राम ने कहा कि दलितों को केवल आरक्षण के भरोसे नहीं रहना चाहिये बल्कि इससे आगे जाकर हर क्षेत्र में कार्य करने चाहिये। खुद प्रयास करके अपना हिस्सा प्राप्त करना चाहिये।कथाकार पूजा ने कहा कि आज स्त्री सबसे शोषित  है। जब तक उसकी आवाज हर जगह से नहीं उठेगी तब तक उसे न्याय नहीं मिलेगा। उन्होंने हरिशरण गौतम की कविताओं को मानवीय संवेदनाओं से ओतप्रोत बताया तथा कहा कि इनकी भाषा आम आदमी को समझ में आने वाली सरल भाषा है।
इसके पूर्व आधार वक्तव्य प्रस्तुत करते हुये युवा कथाकार अमित कुमार  ने कहा कि हरिशरण गौतम का काव्य संग्रह ’मेरी आजादी?’ पढ़ते हुये ज्ञात होता है कि आज देश  भले ही राजनैतिक तौर पर आजाद है लेकिन समाज का वंचित तबका सामाजिक एवं आर्थिक तौर पर दासता भरा जीवन जी रहा है। कवि का सरोकार इन्ही वंचित समुदाय के प्रति है। देश की बहुसंख्यक आबादी बुनियादी सुविधाओं जैसे शिक्षा , स्वास्थ्य, आवास एवं बेरोजगारी के संकट से जूझ रही है तथा गाय के नाम पर दलितों एवं अल्पसंख्यकों का उत्पीड़न किया जा रहा है। देश को मजबूत करने के लिये असहिश्णुता को रोकना होगा। धर्म एवं जाति के नाम पर उन्माद पैदा करने वालों को रोकना होगा तथा परस्पर भाईचारा, मैत्री, समता एवं स्वतंत्रता पर आधारित समाज बनाना होगा तभी आजादी का सपना पूरा होगा।
कवि एवं पत्रकार अनिल कुमार गौतम ने कहा कि आज मीडिया एवं न्यायपालिका में हमारी भागीदारी बहुत नगण्य है। हमारी स्थिति थोड़ी बदली जरूर है, परन्तु हमें जहां होना चाहिये, हम वहां अभी पहुंचे नहीं हैं। इसके लिये बहुत संघर्ष करना होगा।
कवि बनवारी सिंह आजाद ने कहा कि हरिशरण की कविताओं को आम आदमी के दर्द की कविता बताया। एडवोकेट ध्रुवराम बौद्ध ने कहा कि इस देश में न्याय तब तक नहीं मिल सकता जब तक कि न्यायालय, सेना सहित सभी क्षेत्रों में दलित-पिछड़ों को बराबर प्रतिनिधित्व नहीं होगा। परदेशी बौद्ध ने कहा कि राजनीतिक आजादी से ज्यादा महत्वपूर्ण सामाजिक एवं आर्थिक आजादी होता है।
आनंद पाण्डेय ने कहा कि साहित्य समाज का दस्तावेज होता है। आज दलित साहित्य अपने समाज की पीड़ा की अभिव्यक्ति कर रहा है। बाबा साहब के सपनों को साकार करने के लिये उनके सिद्धांतों को अपनाने और उस पर चलने की जरूरत है न कि बाबा साहब के व्यक्तित्व को पूजा भाव से संकीर्ण करने की। कुछ लोग बाबा साहब का नाम बहुत लेते हैं लेकिन हम देख रहे हैं कि राजनीति के क्षेत्र में वे फासिस्टों की पार्टी में चले गये। यह समाज के लिए घातक है।

 कार्यक्रम का संचालन कवि एवं दलित साहित्य एवं संस्कृति मंच के अध्यक्ष सुरेश  चन्द ने किया।
कार्यक्रम के प्रारंभ में हरिशरण गौतम ने ‘ मेरी आजादी?’ सीरीज की चार तथा ’आजादी का पर्व’ सीरीज की तीन कविताओं का पाठ किया। आभार ज्ञापन संगठन सचिव कवि रामचन्द्र प्रसाद त्यागी ने किया।
कार्यक्रम में प्रमुख तौर पर गीता देवी, इन्दू देवी, विनय कुमार ’अजीज’, डा. संजय आर्य, अमरजीत, यदुनन्दन, सुदामा प्रसाद, डा. दिलीप कुमार, किषोर राम, डा. सतीष राना, सुभाशपाल एडवोकेट, उमेष भास्कर, जगदीष चन्द, रणंजय विष्वकर्मा, राजेश, इमामुद्दीन, राजाराम चैधरी, डा.विवेकानंद, ऋतुराज कुमार, ष्याम मिलन एडवोकेट, जयराम प्रसाद, शैलेष, संतोश, मनोज, नरसिंह गौतम, उदयचन्द राज एडवोकेट सहित दर्जनों लोग मौजूद रहे।

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