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पूर्वांचल में मुजफ्फरपुर की नहीं सिसवा की लीची की बहार है

युवा राजेश यादव ने गन्ना बेल्ट में लीची के बाग तैयार कर किसानों को दी नई सोच

 सिविल सर्विसेज की तैयारी छोड़ किसानी को बनाया करियर

सिसवा बाजार (महराजगंज), 7 जून। पूर्वांचल में जब लीची की बात चलती है तो मुजफ्फरपुर ( बिहार) का ज़िक्र ज़रूर होता है  परन्तु सिसवा के प्रगतिशील युवा कृषक ने इस मिथक को तोड़ लीची के मामले में एक नये आयाम की इबारत लिख दी है। अब लोगों के जुबान पर सिसवा की लीची चढ़ चुकी है।

यह करिश्मा कर दिखाया है सिसवा बाज़ार के युवा कृषक राजेश यादव ने। राजेश   एम ए की परीक्षा पास कर दिल्ली से प्रशासनिक सेवा के लिए तैयारियों में जुट गए थे परन्तु उनका मन किसानी मेन लगता था। वह लीची की खेती करना चाहते थे। उन्होंने पने पिता गन्ना विभाग के अवकाश प्राप्त अधिकारी राजबली यादव के सहयोग से बागवानी के तहत ग्राम सभा मधवालिया में लगभग 25 एकड़ भूमि पर लीची के  खेती शुरू की। इस वक्त वह 12 सौ पौधे लगा कर प्रत्येक वर्ष 10 लाख रुपये की आमदनी कर रहे हैं।

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आज राजेश के बागीचे की लीची ने भारत-नेपाल सीमा सहित पूर्वांचल में अपनी एक विशेष पहचान बना ली है। उन्होने स्थानीय बाजार में मुजफ्फरपुर की लीचियों के एकाधिकार को तोड़ दिया है। राजेश यादव के बागीचे के शाही , चाइनीज आदि कई प्रजातियों की लीची जब बाजार में आते हैं  तो बिक्री में मामले में मुजफ्फरपुर की लीची को काफी पीछे छोड़ देते हैं।

राजेश यादव बताते है कि उन्होंने  17 वर्ष पूर्व 25 एकड़ क्षेत्र पर लीची के लगभग 12 सौ पौधे लगाये गए। पिछले 5 वर्षो से अपने मीठे फलों से क्षेत्र के बाज़ारो में अपनी धाक जमा ली है। उनका कहना है। कि 3 माह के परिश्रम और इस 25 एकड़ के बागवानी में वैज्ञानिक विधि से दो बार जुताई,सिंचाई के साथ लगभग 10 ट्रेलर गोबर के खाद, कुछ अन्य उर्वरक व कीटनाशक में लगभग 2 लाख रूपए खर्च को निकलने के बाद 10 लाख रुपये के आस पास शुद्ध आय हो जाती है।जैसे जैसे ये पेड़ युवा होंगे आय भी अधिक होती जाएगी। राजेश ने अपनी उपलब्धियों से गन्ना व केले की खेती के लिये प्रसिद्ध इस इलाके किसानों को लीची के खेती के लिए भी प्रेरित किया है। कुछ और किसान भी लीची की खेती कर रहे हैं।

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