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फूलन देवी की मूर्ति लगाने के बहाने निषादों की आज गोरखपुर में बड़ी जुटान।

– फूलन देवी का शहादत दिवस मनाएंगे और उनकी 30 फिट ऊंची प्रतिमा लगाएंगे निषाद संगठन

 बिहार में बीजेपी का समर्थन कर चुके मुकेश साहनी और कसरवल कांड से चर्चित डॉ संजय कुमार निषाद ने हाथ मिलाया

-शक्ति प्रदर्शन के जरिये मुख्य राजनीतिक दलों को अपनी ताकत दिखने की मंशा

-निषाद वंशीय समाज को अनुसूचित जाति में शामिल करने की है मुख्य मांग

मनोज कुमार सिंह 

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 22 जुलाई गोरखपुर में एम्स और खाद कारखाने का शिलान्यास करते हुए कहा कि जातिवाद और परिवारवाद की राजनीति से देश-प्रदेश का भला नहीं होेगा। प्रधानमंत्री जातिवाद की राजनीति के खात्मे का आह्वान जरूर कर रहे थे लेकिन वह भी जानते हैं कि उत्तर प्रदेश की राजनीति जाति के बिना नहीं हो सकती। खुद उनकी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह यूपी भाजपा की कमान ओबीसी सांसद केशव प्रसाद मौर्य को देने के बाद पिछड़ी और अति पिछड़ी जातियों को भाजपा के पाले में लाने के लिए अभियान चलाए हुए हैं। मउ में राजभर विरादरी की पार्टी भारतीय समाज पार्टी के साथ रैली और उसके साथ मिलकर चुनाव लड़ने की घोषणा जाति की राजनीति को ही आगे बढ़ाने की कोशिश थी।
प्रधानमंत्री की रैली के दो दिन बाद 25 जुलाई को बैंडिट क्वीन से राजनीति में आईं पूर्व सांसद फूलन देवी के शहादत दिवस पर एक और रैली होने जा रही है जिसमें निषाद वंशीय समुदाय अपनी ताकत का प्रदर्शन करेगा ताकि मुख्य राजनीतिक दलों को राजनीति में निषाद वंशीय समाज को और अधिक भागीदारी देने के विवश कर सके। रैली के लिए दो दिन से अखबारों में फुल पेज के विज्ञापन भी दिए गए हैं।

nishad sammelan

यह रैली रामगढ़ ताल के किनारे चम्पा देवी पार्क में होगी और इस मौके पर फूलन देवी की 30 फीट उंची प्रतिमा लोगों के दर्शनार्थ रखा जाएगा जिसे बाद में नौसढ़ चैराहे के पास बाघागाड़ा में स्थापित किया जाएगा।
पहले यह मूर्ति गोरखपुर के रूस्तमपुर के पास मिर्जापुर मोहल्ले में निषाद मंदिर में स्थापित होने वाली थी लेकिन निषाद संगठनों के आपसी विवाद के कारण यह अब बाघागाड़ा में स्थापित की जा रही है हालांकि वहां से भी विवाद की खबरें आ रही हैं।
फूलन देवी का इस इलाके से कोई सीधा संबंध नहीं था। वह दो बार मिर्जापुर से सांसद चुनी गईं थी। इस दौरान वह एक-दो बार गोरखपुर आईं थीं। उनके पति उम्मेद सिंह बस्ती से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े थे लेकिन सफलता नहीं पा सके थे। फूलन देवी का इस इलाके से सीधा संबंध भले न रहा हो गोरखपुर निषादों की राजनीति का सबसे बड़ा केन्द्र माना जाता है। गोरखपुर-बस्ती मेंडल के सात जिलों की 41 सीटों में से कई सीटों-पिपराइच, चौरीचौरा, गोरखपुर ग्रामीण, पनियरा, मेंहदावल, खलीलाबाद, बरहज आदि स्थानों पर निषाद चुनाव जिताने व हराने की स्थिति में हैं। यही कारण है कि निषादों को अपनी ओर करने के लिए सभी राजनीतिक दल जोर लगाते हैं लेकिन अभी तक इसमें सपा और बसपा को ही सफलता मिलती रही है।

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डॉ संजय कुमार निषाद

रैली के आयोजन में दो मुख्य किरदार हैं- डा. संजय कुमार निषाद और मुकेश साहनी। डा. संजय कुमार निषाद गोरखपुर के रहने वाले हैं और राष्टीय निषाद एकता संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। वह पिछले वर्ष तब चर्चा में आए जब उन्होंने निषाद वंशीय समुदाय को अनुसूचित जाति में शािमल कर आरक्षण देने की मांग को लेकर कसरवल में जाट आंदोलनकारियों की तर्ज पर रेल ट्रैक जाम कर दिया था। उनका प्रशासन से टकराव हुआ जिसमें पुलिस फायरिंग में एक नौजवान मारा गया। इसके बाद उनके साहित तीन दर्जन साथियों को जेल जाना पड़ा। जेल से छूटने के बाद उन्होंने निर्बल इंडियन शोषित हमारा आम दल नाम से पार्टी बनाई और कुछ दिन पहले ही पीस पार्टी के साथ गठबंधन किया। इस गठबंधन में महान दल भी शामिल है। पीस पार्टी को पूर्वी उत्तर प्रदेश के पसमांदा मुसलमानों में अच्छा समर्थन है और वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में उसने चार सीटें जीती थीं। इस गठबंधन का प्रदेश में निषाद, और पसमांदा मुसलमानों की एकता से बड़ी राजनीति ताकत बनने का इरादा है।
डा. निषाद काफी समय से निषादों की विभिन्न उपजातियों की एकता के लिए कार्य करते रहे हैं। उनका कहना है कि निषाद वंशीय समुदाय की सभी पर्यायवाची जातियों को एक मानते हुए अनुसूचित जाति में शामिल किया जाए। देश के 14 राज्यों में निषाद वंशीय अनुसूचिज जाति में शामिल भी हैं। उत्तर प्रदेश में निषाद वंश की सात पर्यायवाची जातियां-मंझवार, गौड़, तुरहा, खरोट, खरवार, बेलदार, कोली अनुसूचित जाति मंे शामिल हैं लेकिन अन्य उपजातियों को ओबीसी में रखा गया है। उनके अनुसार निषाद वंशीय समाज की सभी जातियां संवैधानिक रूप से अनुसूचित जाति में हैं, इस बात को सिर्फ परिभाषित करने की जरूरत है जो केन्द्र व प्रदेश में बैठी सरकार नहीं कर रही है। उनका कहना है कि प्रदेश में निषाद वंशीय 17 फीसदी हैं और वे 152 विधानसभा सीटों पर प्रभावशाली स्थिति में हैं। अब हमें कोई अनदेखा नहीं कर सकता। 25 को होने वाली रैली प्रदेश की राजनीति को बदलने वाली रैली होगी। डा. संजय के अनुसार रैली में डा. अयूब भी शामिल होंगे।

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मुकेश साहनी

मुकेश साहनी से उत्तर प्रदेश के लोग ज्यादा परिचित नहीं हैं। वह बिहार के दरभंगा के रहने वाले हैं और मुम्बई में फिल्मों के सेट डिजाइनिंग के कारोबार से हैं। वह निषाद विकास संघ के राष्टीय अध्यक्ष हैं और अपने नाम के आगे सन आॅफ मल्लाह लिखते हैं। वह पहली बार मीडिया में तब चर्चा में आए जब उन्होंने बिहार विधानसभा चुनाव में भाजपा के समर्थन की घोषणा की। उन्हें भाजपा ने स्टार प्रचारक का दर्जा दिया और उनके नाम से अखबारों में खूब विज्ञापन दिए गए जिसमें कहा गया था कि ‘ आगे बड़ी लड़ाई है, एनडीए में भलाई है ’। भाजपा के साथ जुड़ने के पहले वह नीतिश कुमार के साथ थे। उनके द्वारा कैम्पेन करने के बावजूद भाजपा बिहार में बुरी तरह हारी लेकिन उनका दावा है कि उनकी वजह से बिहार के 7 फीसदी निषाद वंशीय समाज ने भाजपा को वोट दिया था लेकिन नीतिश और लालू की एकता के कारण यादव, मुस्लिम और कोइरी-कुर्मी एकजुट हो गए और 41 फीसदी वोट लेकर सरकार में आ गए। अब वह भाजपा से निराश हैं क्योंकि राष्ट्रीय मछुआरा आयोग गठित करने और मांझी, मल्लाह, केवट और उसकी पर्ययवाची जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने की उनकी मांग को को भाजपा ने पूरा नहीं किया।
यूपी विधानसभा चुनाव नजदीक आते ही यहां सक्रिय हो गए और गोरखपुर में डेरा डाल दिया। उन्होंने ही निषाद मंदिर में फूलन देवी की मूर्ति लगाने की पहल की। 10 जुलाई को विश्व मछुआरा दिवस पर सम्मेलन कर उन्होंने इसकी घोषणा की। इसके पहले उनकी रथयात्रा चल रही है जो निषाद बाहुल्य गांवों में उन्हें जागृत कर रही है। शुरू में उन्हें यहां के अन्य निषाद संगठनों का सहयोग नहीं मिला लेकिन अब उन्होंने राष्ट्रीय निषाद एकता संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष और अब निर्बल इंडियन शोषित हमारा आम दल नाम से पार्टी बनाने वाले डा. संजय कुमार निषाद से एकता कर ली।
देखना है कि फूलन देवी की शहादत दिवस बनाने और उनकी प्रतिमा स्थापित करने के नाम हो रहा निषाद वंशीय समुदाय का शक्ति प्रदर्शन प्रदेश की राजनीति में कितना हस्तक्षेप कर पाता है।

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