साहित्य - संस्कृति

बिहार के साहित्यिक-सांस्कृतिक और शैक्षणिक जगत की पहचान थे प्रो. सुरेंद्र स्निग्ध

 

प्रो. सुरेंद्र स्निग्ध को जसम की श्रद्धांजलि
जन संस्कृति मंच कवि, उपन्यासकार, संपादक और अध्यापक प्रो. सुरेंद्र स्निग्ध के निधन पर गहरा शोक जाहिर करते हुए उनके परिजनों और तमाम चाहने वालों के प्रति अपनी संवेदना का इजहार करता है। पिछले कुछ दिनों से फेंफड़े में गंभीर संक्रमण की वजह से वे जगदीश मेमोरियल अस्पताल में वेंटिलेटर पर थे, जीवन-मृत्यु के बीच संघर्ष जारी था। बाद में उन्हें आईजीआईएमएस, पटना ले जाया गया, जहां 18 दिसंबर को रात्रि में उनका निधन हो गया।
5 जून 1952 को बिहार के पूर्णिया जिले के सिंघियान गांव में प्रो. सुरेंद्र स्निग्ध का जन्म हुआ था। जन संस्कृति मंच की स्थापना में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी। जन संस्कृति मंच की पत्रिका ‘नई संस्कृति’ के अतिरिक्त उन्होंने पटना विश्वविद्यालय की पत्रिका ‘भारती’ और ‘गांव-घर’ नामक पत्रिका का संपादन किया था। ‘प्रगतिशील समाज’ के कहानी विशेषांक और उन्नयन के बिहार-कवितांक का भी उन्होंने संपादन किया था।
सत्तर और अस्सी के दशक में बिहार में उभरे क्रांतिकारी किसान आंदोलन और सामंतवाद-विरोधी सामाजिक बदलाव के आंदोलन से सुरेंद्र स्निग्ध गहरे तौर पर प्रभावित थे। उनके उपन्यास ‘छाड़न’ में आजादी के आंदोलन की दो धाराओं के बीच संघर्ष से लेकर क्रांतिकारी नक्षत्र मालाकार के संघर्ष और नक्सलबाड़ी आंदोलन के प्रभाव में सीमांचल के इलाके में विकसित हुए क्रांतिकारी किसान आंदोलन को दर्ज किया गया है। कई समीक्षकों ने उनके इस उपन्यास को रेणु के ‘मैला आंचल’ की परंपरा को आगे बढ़ाने वाला उपन्यास बताया है। शिल्प के स्तर पर इस उपन्यास में रिपोर्ताज, संस्मरण, कविता आदि कई विधाओं का उपयोग किया गया है।
प्रो. सुरेंद्र स्निग्ध अपनी पीढ़ी के जाने-माने कवि थे। ‘पके धान की गंध’, ‘कई कई यात्राएं’, ‘रचते-गढ़ते’ और ‘अग्नि की इस लपट से कैसे बचाऊं कोमल कविता’ उनके प्रमुख कविता संग्रह हैं। ‘जागत नींद न काजै’, ‘शब्द-शब्द बहु अंतरा’ और ‘नई कविता : नया परिदृश्य’ नामक उनकी आलोचना की पुस्तकें प्रकाशित हैं।
प्रो. सुरेंद्र स्निग्ध को नागार्जुन सम्मान, साहित्य सम्मान और बिहार राष्ट्रभाषा परिषद का साहित्य सेवा सम्मान मिला।
 प्रो. सुरेंद्र स्निग्ध ने पटना विश्वविद्यालय, हिंदी विभाग के अध्यक्ष और परीक्षा नियंत्रक की महत्वपूर्ण जिम्मेवारियां निभाईं।
जन संस्कृति मंच, बिहार के राज्य अध्यक्ष कथाकार सुरेश कांटक, राज्य सचिव सुधीर सुमन और राष्ट्रीय पार्षद संतोष सहर ने प्रो. सुरेंद्र स्निग्ध को हार्दिक श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि बेहद संवेदनशील स्वभाव वाले प्रो. सुरेंद्र स्निग्ध बिहार के साहित्यिक-सांस्कृतिक और शैक्षणिक जगत की पहचान थे। उनका निधन बिहार के साहित्य-संस्कृति और शिक्षा के क्षेत्र के लिए अपूरणीय क्षति है।