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मुस्लिम महिलाएं शरीयत पर ही अमल करेंगी, सरकार इसमें दखल न दे -फारिहा बिन्ते हकीमुल्लाह

-मुस्लिम महिला सम्मेलन
गोरखपुर, 1 नवम्बर। इस्लामिक एजुकेशनल रिसर्च आर्गनाइजेशन इलाहाबाद की फारिहा बिन्ते हकीमुल्लाह ने कहा कि तीन तलाक के मसले पर मुस्लिम महिलाओं को सरकार का फैसला मंजूर नहीं हैं। मुस्लिम महिलाएं शरीयत पर ही अमल करेंगी। सरकार इस मामले में दखल न दें। जब हमें कोई परेशानी नहीं तो सरकार को शरीयत में दखल नहीं देना चाहिए।
फारिहा सोमवार को ऊंचवा स्थित आईडीयल मैरेज हाउस में इराकी वेलफेयर सोसाइटी के मुस्लिम महिला सम्मेलन में बतौर मुख्य अतिथि शिरकत करने आयी थीं। पत्रकारों द्वारा पूछे गये सवालों पर उन्होने उक्त बातें कहीं।
उन्होंने कहा कि तलाक का मामला बहुत संवेदनशील हैं। यह खुदा द्वारा दी गयी राह हैं, अगर किसी  मर्द या औरत के दरमियान इतने काम्पलिकेशन आ जायें कि अब उनका रहना दुश्वार हो जायें तो तलाक के जरिए अलग हो सकते हैं। लेकिन जो तरीका हैं इस्लाम का , अगर आप सोचेंगे समझेंगे तो तलाक की नौबत ही नहीं आयेगी।
उन्होने कहा कि हमारा मकसद इस्लाम और कुरआन के पैगाम को फैलाना हैं। इंसानियत को अमन और शांति के रास्ते पर बढ़ाना हैं। जब कुरआन उतरा उसी समय से दीने इस्लाम ने इंसानियत से मुसलमानें से कुछ डिमांड किया। खुदा ने हमें इस मकसद के लिए चुना हैं कि हम इस अमन भरे पैगाम को फैलायें ताकि समाज में जो अपराध हैं, इंसानियत जिन परेशानियों से जूझ रही हैं उससे लोगों को बाहर निकाला जा सकें।  आज के मौजूदा दौर में हम अपनी लाइफ स्टाइल से हट गये हैं और कुरआन के पैगाम से दूर हो गये हैं। इस प्रोग्राम का मकसद यहीं हैं कि जो मुस्लिम महिलाएं हैं वह फिर से अपनी जिम्मेदारियों का एहसास करें और कुरआन के पैगाम को जानें और अपने बच्चों की तरबियत का ख्याल करें और जो भी जिम्मेदारियां मिले उसे बेहतरीन ढ़ंग से निभा सकें।
इस प्रोग्राम के जरिए काफी बदलाव आया हैं। मुस्लिम लड़कियां काफी जागरुक हुई हैं। इलाहाबाद और उसके बाहर के शहरों में यह बदलाव दिख रहा हैं।
सम्मेलन में महिलाओं को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि मौजूदा दौर में  हिन्दुस्तान के अंदर मुसलमानों के लिए कई दुश्वारियां पैदा की जा रही हैं। आज मुसलमान अंदर से कमजोर होते जा रहे हैं। बच्चियों को स्कूल कालेजों में नमाज पढ़ने से रोका जा रहा हैं। अहकामे शरीयत पर अमल करने से रोका जा रहा हैं। हमारे नौजवानों को झूठे मामलों में फंसा कर जेलों में डाला जा रहा हैँ। सलेबस में एक खास मजहब की किताबें दाखिल करने की कोशिश की जा रही हैं। सियासत तक हमारी रसाई नहीं हैं।मुस्लिम नुमाइंदगी सही तरीके से हो नहीं पा रही हैं। मुसलमानों को शिद्दत पसंद और न जाने किन-किन अल्फाजों से पुकारा जा रहा हैं। दहशतगर्दी को इस्लाम से जोड़कर बदनाम किया जा रहा हैं। आज बताया जा रहा हैं कि हमें क्या खाना क्या नहीं। इस पुरफितन दौर में मुस्लिम महिलाओं की जिम्मेदारी अहम हैं वह किसी इस्लामी तंजीम या संस्था से जुड़े। दीने इस्लाम की तालीम हासिल करें। उस पर अमल करें। दूसरों तक पहुंचायें। इस दौरान करीब 250 महिलाओं ने मुस्लिम पर्सनल लॉ के समर्थन में मुस्लिम लॉ बोर्ड द्वारा जारी प्रोफार्मा पर  हस्ताक्षर किया।

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