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वैचारिक, सांस्कृतिक और अकादमिक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर योजनाबद्ध हमलों के खिलाफ प्रतिरोध जारी रहेगा-जसम

रामजस कालेज की घटना भाजपा सरकार के सत्तारूढ़ होने के बाद से अकादमिक व सांस्कृतिक आयोजनों के खिलाफ जारी संगठित हमलों की शृंखला की ताज़ा मिसाल है -जसम 
नई दिल्ली, 24 फरवरी। जन संस्कृति मंच ने रामजस कालेज में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद दावरा छात्र-छात्राओं, शिक्षकों, पत्रकारों और संस्कृति कर्मियों पर किए गए हमले की कठोर भर्त्सना करते हुए इस घटना को पिछले लगभग ढाई साल से भी ज़्यादा समय से केंद्र में भाजपा सरकार के सत्तारूढ़ होने के बाद से जारी अकादमिक व सांस्कृतिक आयोजनों के खिलाफ संगठित हमलों की शृंखला की ताज़ा मिसाल बताया है।
जसम द्वारा जारी बयान में कहा गया है कि दिल्ली विश्विद्यालय के  रामजस  कॉलेज  में 21 फरवरी  को  आयोजित  ‘ प्रतिरोध की संस्कृति ‘ पर केन्द्रित सेमिनार को अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद द्वारा पत्थरों और लाठियों से किए गए हिंसक हमले के कारण स्थगित करना पड़ा। अगले दिन इस हमले के विरोध में छात्रों और शिक्षकों ने एक संयुक्त मार्च निकालने  की  कोशिश की।  इस मार्च पर भी  अ.भा.वि.प. के  सदस्यों  द्वारा पत्थरबाजी की  गई। छात्रों  और  शिक्षकों के साथ मारपीट  की  गई। अंग्रेज़ी विभाग के आचार्य और कवि-आलोचक प्रशांत चक्रबर्ती को सड़क पर गिरा कर पीटा गया। मफलर से उनका गला घोंटने की कोशिश गई। उन्हें हस्पताल में भर्ती होना पडा।  घटना को कवर कर रही ‘द क्विंट’ की महिला पत्रकार तरुनी कुमार और ‘न्यूज़क्लिक’ की अपूर्वा को भी चोटें आयीं और उनका कैमरा तोड़ दिया गया। टाइम्स ऑफ़ इंडिया के पत्रकार सोमरीत भट्टाचार्य, छायाकार अनिन्द्य चट्टोपाध्याय, टाइम्स नाउ के प्रियांक और मजहर, ‘हिन्दुस्तान टाइम्स’ के अनन्य भारद्वाज, हिन्दी अखबार के छायाकार आनंद शर्मा, ‘क्विंट’ के अनंत प्रकाश और शिवकुमार मौर्य मौके पर उपस्थित पुलिस द्वारा पीटे गए, उनके कैमरे और फोन छीन कर वीडियो रिकॉर्डिंग और फोटो को पुलिस ने डिलीट किया। पुलिस ने भाजपा और संघ से जुड़े छात्र संगठन अ.भा.वि.प. के उन हमलावरों पर कोई कार्रवाई करने की ज़हमत नहीं उठाई जिन्होंने ख़ासतौर से शिक्षकों को निशाना बनाया। शिक्षक-शिक्षिकाओं में  सुवृत्ता खत्री, मौशुमी बोस, आभा देव हबीब, सैकत घोष और अनेक अन्य शिक्षकों के साथ मारपीट की गयी।
 जन संस्कृति मंच इन घटनाओं की घोर निंदा करता है। रामजस कॉलेज की घटना पिछले लगभग ढाई साल से भी ज़्यादा समय से केंद्र में भाजपा सरकार के सत्तारूढ़ होने के बाद से जारी अकादमिक व सांस्कृतिक आयोजनों के खिलाफ संगठित हमलों की शृंखला की ताज़ा मिसाल है. इन हमलों का पैटर्न भी एक जैसा है. प्रायः संघ-भाजपा का कोई आनुषंगिक संगठन किसी वैचारिक या सांस्कृतिक आयोजन के खिलाफ़ हमला करता है, फिर उसी के निर्देश पर इसी हिंसा को दो गुटों में भिड़ंत का नाम देकर प्रशासन द्वारा आयोजक और प्रतिभागी छात्रों-शिक्षकों-बौद्धिकों, संस्कृतिकर्मियों, पत्रकारों आदि के खिलाफ़ कार्रवाई की जाती है. ऐसे सभी मामलों में प्रशासनिक कार्रवाई वैचारिक-सांस्कृतिक कार्यक्रम के आयोजकों के खिलाफ़ ही होती देखी गई है, न कि हमलावरों के खिलाफ़. अभी कुछ ही दिन पहले जोधपुर विश्विद्यालय में हुए एक सेमीनार में प्रोफेसर निवेदिता मेनन के शामिल होने के बाद अभाविप द्वारा  ठीक ऐसा  ही  अभियान  चलाया गया और विश्विद्यालय  ने आयोजक प्रोफेसर राजश्री राणावत को निलंबित कर दिया. वर्ष 2015 में इसी तरह डीयू के किरोड़ीमल कॉलेज में अभाविप द्वारा “मुजफ्फरनगर बाकी है” फिल्म का प्रदर्शन रोक दिया गया था. इस हमले के खिलाफ ‘सिनेमा ऑफ़ रेसिस्टेंस’ के आह्वान पर देश भर में इस फिल्म की प्रोटेस्ट-स्क्रीनिंग हुई थी. ऐसी  ही एक स्क्रीनिंग हैदराबाद केन्द्रीय विश्विद्यालय में रोहित बेमुला और उसके साथियों ने आयोजित की थी. हैदराबाद में बेमुला और उनके साथियों के खिलाफ़ चले अभाविप और संघ के अभियान के पीछे एक  कारण यह घटना  भी  थी. इस घटनाक्रम की परिणति रोहित बेमुला की सांस्थानिक हत्या में हुई . आज जे.एन.यू., हैदाराबाद केन्द्रीय विश्वविद्यालय अथवा दिल्ली विश्वविद्यालय ही नहीं, बल्कि देश की तमाम अकादमिक संस्थाओं में वाद-विवाद-संवाद की संस्कृति सुनियोजित ढंग से खत्म की जा रही है. वैचारिक मतभेदों का निपटारा राज्य की सहायता से हिंसक तरीकों से किया जा रहा है. खुले दिमाग के साथ तर्क, विवेकयुक्त शालीन वाद-विवाद के माहौल में ही विचारों की परख होती है. लोकतंत्र फूलता पनपता है. आज इसी लोकतांत्रिक संस्कृति के विरुद्ध उन्माद और घृणा की फासीवादी मुहीम के बरखिलाफ हमें अपना संघर्ष और प्रतिवाद लगातार जारी रखना होगा।

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