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शहर के मुस्लिम धर्मगुरु बोले-अजमेर दरगाह के दीवान को हक नहीं शरई कानून को गलत कहने का

 

सैयद फरहान अहमद
गोरखपुर, 5 अप्रैल। हाल ही में बीफ बैन और तीन तलाक पर बयान देकर चर्चा में आए  प्रसिद्ध अजमेर दरगाह के दीवान सैयद जैनुल अाबेदीन अली खान को आज पद से हटा दिया गया है। उनके भाई अलाउद्दीन आलिमी ने उन्हें पद से हटाकर खुद को दरगाह का दीवान घोषित कर दिया है। फिर शाम को दीवान ने हटाये जाने की घटना का खंडन किया। इस घटनाक्रम पर शहर के धर्मगुरुओं की मिश्रित प्रतिक्रिया हैं। धर्मगुरुओं ने दीवान के पिछले बयानों पर नाराजगी का इजहार किया।

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जामा मस्जिद गौसिया छोटे काजीपुर के इमाम मौलाना मोहम्मद अहमद ने कहा कि तीन तलाक का मसला इस्लामिक हैं कुरआन और हदीस में तलाक का
पूरा कानून मौजूद हैं। जब भी कोई बोलेगा तलाक पड़ जायेगी कोई माने या न माने। दीवान जैनुल अाबेदीन का बयान इस मसले पर गलत था। भैंस के गोश्त पर सरकार की तरफ से कोई पाबंदी नहीं हैं लिहाजा हम वैध तरीके से भैंस का गोश्त खा और बेच सकते हैं। इसमें हस्तक्षेप का हक दीवान जैनुल अाबेदीन और अन्य किसी को भी नहीं हैं। दरगाह के जिम्मेदारों को दीवान का हटा देना चाहिए।

तुर्कमानपुर स्थित शम्सी लाइब्रेरी के संचालक मुफ्ती मोहम्मद अजहर शम्सी ने कहा कि मुसलमानों में ‘तीन तलाक’ का कानून चौदह सौ साल से चला आ रहा हैं। यह शरई कानून हैं। अगर इस कानून का कोई गलत इस्तेमाल करता हैं तो उसे सजा मिलनी चाहिए। पूरे कानून को बुरा कहना और बदलने की कोशिश करना हठधर्मिता हैं। दीवान जैनुल अाबेदीन के तीन तलाक पर बयान से मुसलमानों में काफी नाराजगी और बेचैनी थीं। उनके बयान से करोड़ों मुसलमान दुखी हैं।

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खादिम हुसैन मस्जिद तिवारीपुर के इमाम मौलाना अफजल बरकाती ने कहा कि यह दुनिया में मशहूर दरगाह हैं। यहां पर सबकी नजर टिकी रहती हैं। लाखों जायरीन आते हैं। यहां के दीवान को अपने पद का ख्याल रखते हुए संजीदा कलामी करनी चाहिए। दीवान जैनुल अाबेदीन को कोई हक नहीं कि एक कौम को खुश करने के लिए एक कौम को नाराज करें। तीन तलाक पर उनका बयान निंदनीय हैं। वहीं बीफ पर हास्यपद। जब सरकार बीफ के लिए लाइसेंस दे रही हैं तो दीवान कौन होते हैं पाबंदी लगाने की बात करने वाले। मीडिया में सूर्खियां बटोरने के लिए इस तरह की बयानबाजी मजम्मत के लायक हैं।

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मदरसा दारुल उलूम हुसैनिया दीवान बाजार के फतवा विभाग के हेड मुफ्ती अख्तर हुसैन अजहरी ने कहा कि दीवान को समझाया जा सकता हैं कि इस तरह की बयानबाजी से मुसलमानों के हालात सुधरने के बजाये बिगड़ेंगे। तीन तलाक का कानून हक हैं। शरई कानून में दीवान जैनुल अाबेदीन हो या कोई बड़े से बड़ा अल्लामा एक नुक्ता नहीं बदल सकता हैं। मजहबी कानून मानने की आजादी हमें संविधान से मिलीं हैं। हम जायज तरीके से अपने शरई कानून की बात कोर्ट के सामने रखने में सक्षम हैं। भैंस काटने के लिए सरकार ही लाइसेंस दे रही हैं। ऐसे में दरगाह के दीवान का बयान कि बीफ खाना हम खुद छोड़ दे गैर संजीदा और फिजुल हैं। यह किसी मसले का हल नहीं हैं।

 

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