दरे नबी पर सदा सर को झुकाया मैंने, खुद में पाकीज़ा उजालों को सजाया मैंने : अब्बास हल्लौरी
-शिया फेडरेशन ने किया जश्न-ए- ईद मिलादुन्नबी का आयोजन
गोरखपुर,8 दिसम्बर. ‘ दरे नबी पर सदा सर को झुकाया मैंने, खुद में पाकीज़ा उजालों को सजाया मैंने। ‘ अब्बास हल्लौरी के इसी कलाम से नातिया मुशायरे का आगाज़ हुआ।
शिया फ़ेडरेशन द्वारा गुरुवार को इमामबाड़ा आगा साहेबान गीता प्रेस में जश्न-ए-ईद मिलादुन्नबी के अंतर्गत नातिया मुशायरे का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की सदारत डा. अज़ीज़ अहमद ने किया। मेहमान-ए-खुसूसी डा. विजाहत करीम व सपा महानगर अध्यक्ष हाजी ज़ियाउल इस्लाम रहे । इस मौके पर जियाउल इस्लाम ने भी रसूल की शान में एक शेर, वाह रे दाई हलीमा तेरा नसीब, तेरी गोद में अल्लाह का हबीब, पढ़ कर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई।
मुशायरे में स्थानीय शायरों के अलावा शबी गोपालपुरी, अफ़ज़ल इब्राहिमपुरी व अलीगढ़ यूनिवर्सिटी से ताल्लुक रखने वाले शायर अब्बास हल्लौरी ने भी अपना कलाम पेश किया। मुशायरे की निज़ामत शबीह आजमी ने की। इससे पहले प्रोग्राम की शरुआत हाफिज नसरुद्दीन ने तिलावत-ए-कलामे पाक से किया। इस मौके पर शायरों ने पैगंबर-ए-इस्लाम की शान में अपना कलाम पेश कर उपस्थित श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। कैसर हल्लौरी ने कहा की, जब भी किसी महफ़िल में तेरी बात चली है, महसूस हुआ शम्मा सदाक़त की जली है। बुज़ुर्ग शायर राज आज़मी ने कहा कि एक लम्हा जो अहमद के रौज़े पर गुज़र जाये, बिगड़ी हुई तक़दीर संवर जाये। इसके बाद शकील फ़राज़ ने अपनी नात ज़िक्रे नबी के नूर से लम्हा लम्हा रौशन है, पढ़ कर समां बांध दिया। गोपालपुर से आये शबी गोपालपुरी ने कहा कि, उस जगह नालैन पहुंची है मेरे सरवर की, ये बशर क्या हैं जहाँ जिब्रील भी पहुंचे नहीं। अफ़ज़ाल इब्राहिम पुरी व कमालुद्दीन कमाल ने भी अपने नातिया कलाम से महफ़िल को रौशन किया। मुशायरे में आये मुमताज़ और फ़ैज़ी ने, मैं यहां दिल मेरा मदीने में, मुझको ले चल सबा मदीने में, पढ़ कर खूब वाह वाही बटोरी। इसके बाद कमालुद्दीन कमाल, अब्दुल्लाह जामी, तौफीक शाहिद ने भी अपना कलाम पेश किया। मुशायरे के समापन पर शिया फेडरेशन की तरफ से एजाज़ रिज़वी एडवोकेट ने आये हुए मेहमानों का शुक्रिया अदा करते हुए ईद मिलादुन्नबी की मुबारकबाद पेश किया।