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संविधान संशोधन मधेशियों को मंजूर नहीं, फिर आंदोलन करेंगे-आत्माराम शाह

‘ भारत-नेपाल सम्बन्ध: मधेशी संकट परिप्रेक्ष्य ’ पर संगोष्ठी
संविधान निर्माण की प्रक्रिया से मधेशियों को दूर रखा गया-चन्द्र किशोर
नकाबंदी का विरोध न कर मधेशी दलों ने ऐतिहासिक गलती की है-मनोज
गोरखपुर, 2 मई। कुशीनारा उच्च अध्ययन संस्थान द्वारा एक मई को पैडलेगंज स्थित विर्क स्टडी सेंटर सभागार में आयोजित ‘ भारत-नेपाल सम्बन्ध: मधेशी संकट परिप्रेक्ष्य ’ विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी में नेपाल के वीरगंज पूर्व सांसद आत्माराम शाह, नेपाल के वरिष्ठ पत्रकार चंद्रकिशोर, मधेशी आंदोलन के कार्यकर्ता ओम प्रकाश सर्राफ, पटना के सामाजिक कार्यकर्ता अशोक प्रियदर्शी और वरिष्ठ पत्रकार मनोज कुमार सिंह ने अपनी बात रखी।
संगोष्ठी में बोलते हुए पूर्व सांसद आत्माराम शाह ने मधेशियों के साथ नेपाल में हो रहे भेदभाव, उपेक्षा और दमन का विस्तार से जिक्र करते हुए कहा कि हम अपनी पहचान के लिए लड़ रहे हैं। नेपाल के शासन-सत्ता पर पहाड़ के उच्च जाति के लोगों का वर्चस्व है और वे अपना वर्चस्व कायम रखने के लिए मधेशियों को उनके अधिकार से वंचित कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि नए संविधान में प्रतिनिधि सभा में मधेशियों के हिस्से में 165 में से 65 सीटें ही आ रही हैं जबकि उनकी आबादी 50 फीसदी है। सभी प्रकार की नौकरियों में उनका प्रतिशत 10 से ज्यादा नहीं है। राज्यों के गठन में मधेश बहुल इलाकों को पहाड़ी इलाकों से जोड़ कर उनके प्रतिनिधित्व को कम करने की कोशिश की गई है। उन्होंने मधेशियों के आंदोलन के बाद संविधान में किए गए संशोधन को नाकाफी बताया और कहा हम फिर से 10 मई से आंदोलन करने जा रहे हैं और अब आंदोलन का केन्द्र काठमांडू होगा। उन्होंने मधेश आंदोलन पर भारत सरकार के वर्तमान रूख की प्रशंसा की।

chandr kishor
नेपाल के पत्रकार चंद्र किशोर

मधेश आंदोलन के कार्यकर्ता प्रकाश सर्राफ ने कहा कि मधेशियों के आंदोलन को कुचलने के लिए सरकार ने बर्बर दमन का सहारा लिया। पुलिस फायरिंग में 50 से अधिक मधेशियों की मौत हुई लेकिन हम दमन से दबने वाले नहीं हैं और अपना हक लेने के लिए सघर्ष को और तेज करेंगे।
नेपाल के वरिष्ठ पत्रकार चन्द्रकिशोर ने कहा कि मधेशियों की लड़ाई अपने ही देश में पहचान की लड़ाई है। मधेशी कहीं बाहर से नहीं आए हैं। वह नेपाल की माटी की संतान है। हम अपने ही देश में नागरिकता और बतौर नागरिक पूरे अधिकार मांग रहे हैं। उन्होंने कहा कि हम संविधान को पूरी तरह खारिज नहीं कर रहे हैं। संविधान में बहुत सामथ्र्य है लेकिन यह मधेशियों के अधिकार की रक्षा करने में सक्षम नहीं हैं। संविधान निर्माण की प्रक्रिया से मधेशियों को दूर रखा गया और उसका कंटेट भी मधेश की आकांक्षाओं को सम्बोधित नहीं करता है।
उन्होंने कहा कि मधेश में उथल-पुथल रहेगी तो भारत का सीमावर्ती क्षेत्र उससे प्रभावित हुए बिना नहीं रहेगा। उन्होंने आशंका जताई कि यदि मधेशियों के शांतिपूर्ण लोकतांत्रिक आंदोलन को नेपाल के राजनीतिक संकाय ने ठीक से सम्बोधित नहीं किया तो मधेश क्षेत्र में पृृथकतावादी आंदोलन को मजबूती मिलेगी।

 

shivnandan sahay
शिवनन्दन सहाय

गोरखपुर के वरिष्ठ पत्रकार मनोज कुमार सिंह ने कहा कि इसमें कोई दो राय नहीं है कि नेपाल में मधेशियों को जो अधिकार मिलने चाहिए थे, वह नहीं मिले हैं और नए संविधान में भी उनकी चिंताए सम्बोधित नहीं हुई। सरकारी नौकिरियों, राजनीति में उनकी भागीदारी व प्रतिनिधित्व बेहद कम है। उन्होंने मधेश आंदोलन के इतिहास की चर्चा करते हुए कहा कि आज कुछ मधेशी नेता नेपाल के कम्युनिष्ट दलों पर मधेशियों के साथ गद्दारी का जो आरोप लगा रहे हैं, वह सही नहीं है। मधेशियों को अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करने की चेतना बनाने में नेपाल के वाम दलों का बड़ा योगदान है। उन्होंने यह भी कहा कि नए संविधान के लागू होने के बाद मधेशियों के आंदोलन के नाम पर भारत द्वारा की गई नाकेबादी का विरोध न कर मधेशी दलों ने ऐतिहासिक गलती की है। नाकाबंदी से नेपाल की सम्पूर्ण जनता को चाहे वह पहाड़ी हो या मधेशी बड़ा नुकसान झेलना पड़ा है। अपनी मांग मनवाने के लिए पड़ोसी देश की नाकाबंदी के समर्थन को उचित नहीं ठहराया जा सकता। श्री सिंह ने मधेश क्षेत्र की केवल एक आइडेंटिटी पर भी सवाल उठाया कहा कि मधेश में पहाडि़यों के अलावा जनजातियां भी अच्छी-खासी संख्या में हैं और मैदानी जातियों में दलितो, अति पिछड़ों की बड़ी संख्या है और उनकी आंकाक्षाए व अपेक्षाए एक जैसी नहीं है, इसको भी ध्यान में रखा जाना चाहिए। पटना से आए सामाजिक कार्यकर्ता अशोक प्रियदर्शी ने इस बात पर बल दिया कि मधेश समस्या और आंदोलन पर संजीदा संवाद का वातावरण बनना चाहिए और बिहार व उत्तर प्रदेश के बौद्धिकों को इसमें भागीदारी करनी चाहिए। संगोष्ठी का संचालन डा. आनन्द पांडेय ने तथा धन्यवाद ज्ञापन राजाराम चौधरी ने किया। कार्यक्रम केे अंत में संदीप राय ने जीवन की उर्जा से भरे नेपाली गीत को सुनाया।

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