विचार

संस्कृति में विभेद की सीमा रेखा तय करना आज के समय में बहुत कठिन: प्रो0 आर0सी0 मिश्र

दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के मनोविज्ञान विभाग में प्रो0 एल0बी0 त्रिपाठी स्मृति व्याख्यान एवं द्विदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी

गोरखपुर , 15 सितम्बर। ‘ संस्कृति मानव जीवन में नवाचार, भिन्नताओं, बाह्य हस्तक्षेपों और आंतरिक परिवर्तनों से समवेत प्रभावित होती है। वर्तमान समय में मानव व्यवहार पर संस्कृति के हस्तक्षेप को समग्रता से स्वीकार किया जाने लगा है जिसके कारण सांस्कृतिक मनोविज्ञान की शाखा का तीव्र गति से विकास हुआ है। सांस्कृतिक विविधता के प्रभावों के कारण आज मानव व्यवहार में विभिन्न संस्कृतियों का सम्मिश्रण हो चुका है, ऐसी स्थिति में संस्कृति में विभेद की सीमा रेखा तय करना आज के समय में बहुत कठिन हो गया है।’
यह बातें दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के मनोविज्ञान विभाग में प्रो0 एल0बी0 त्रिपाठी स्मृति व्याख्यान एवं द्विदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र में मुख्य अतिथि काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के मनोविज्ञान विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो0 आर0 सी0 मिश्र ने कहीं। प्रो0 मिश्रा ने कहा कि संस्कृति का लचीलापन एक ऐसा तत्व है जो मानव व्यवहार को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करने का कार्य करता है। वही संस्कृति समुचित दृष्टि से विकसित होती है जो मानव व्यवहार में सरलता लाती है या सरलतापूर्वक अनुपालनीय व्यवहार के अनुकूल होती है।
संगोष्ठी के केन्द्रीय विषय पर दिल्ली विश्वविद्यालय के मनोविज्ञान विभाग के पूर्व अध्यक्ष तथा अधिष्ठाता अन्तर्राष्ट्रीय संबंध प्रो0 आनन्द प्रकाश ने अपना आधार वक्तव्य प्रस्तुत करते हुए कहा कि वर्तमान प्रसंग में मानव व्यवहार के उन पक्षों की आज विशेष रूप से अध्ययन करने की आवश्यकता है जो लौकिक तथा व्यावहारिक दृष्टि से प्रासंगिक प्रतीत होते हैं। मनोविज्ञान के विशेष संदर्भ में उन्होंनें मानव व्यवहार तथा संस्कृति के परस्पर संबंधों की समुद्र तथा समुद्र के किनारे से तुलना करते हुए इन दोनों पक्षों की परस्पर आत्मनिर्भरता तथा संयुक्तता पर प्रकाश डाला।
संगोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे कुलपति प्रो0 अशोक कुमार ने संस्कृति को संस्कारों का विकसित आचरण बताया। उन्होंनें बताया कि मानव व्यवहार को नियन्त्रित करने वाले महत्वपूर्ण कारकों में आनुवांशिकी तथा परिवेश के साथ-साथ संस्कृति का भी विशेष महत्व है। संस्कृति मानव के आचरण में किसी न किसी विशेष गुण का विकास अवश्य करती है।
इस अवसर पर कला संकाय के संकायाध्यक्ष प्रो0 एस0के0 दीक्षित ने प्रो0 एल0बी0 त्रिपाठी के व्यक्तित्व का स्मरण करते हुए उनके व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला तथा उनके विचारों पर नये सिरे से शोध अनुसंधान करने की आवश्यकता व्यक्त की।
संगोष्ठी में कुलपति प्रो0 अशोक कुमार ने विभाग के वरिष्ठ सेवानिवृत्त अध्यापकों प्रो0 जे0एन0 लाल, प्रो0 आदेश अग्रवाल, प्रो0 एन0के0मणि तथा डाॅ0 अचल नन्दिनी श्रीवास्तव को सम्मानित किया।

संगोष्ठी का उद्घाटन दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो0 अशोक कुमार ने किया। विभागाध्यक्ष प्रो0 ए0एन0 त्रिपाठी ने अतिथियों का स्वागत किया। मनोविज्ञान विभाग की प्रो0 सुषमा पाण्डेय ने विषय प्रवर्तन किया तथा इस संगोष्ठी की प्रासंगिकता और विषय की पृष्ठभूमि पर संक्षिप्त रूप से प्रकाश डाला।

संगोष्ठी के प्रथम वैज्ञानिक सत्र में प्रो0 ज्योति वर्मा पटना विश्वविद्यालय, बिहार, प्रो0 आराधना शुक्ला, कुमाउं विश्वविद्यालय, अल्मोड़ा, प्रो0 रितेश कुमार सिंह, दिल्ली विश्वविद्यालय, प्रो0 राकेश पाण्डेय, मनोविज्ञान विभागाध्यक्ष, काशी हिन्दू विश्वविद्याल, वाराणसी, डाॅ0 अरुण कुमार तिवारी, आर0एम0एल0 फैजाबाद विश्वविद्यालय तथा डाॅ0 निशा मणि पाण्डेय, के0जी0एम0यू0, लखनऊ का आमंत्रित अतिथि व्याख्यान हुआ।
संगोष्ठी के तृतीय वैज्ञानिक सत्र में देश के विभिन्न राज्यों से आये प्रतिनिधियों ने अपने शोधपत्र पढ़े।
इस अवसर पर कुल की प्रथम महिला एवं जीवविज्ञान विभाग की एमेरिटस प्रोफेसर श्रीमती मधु कुमार, प्रो0 सी0पी0एम0 त्रिपाठी, प्रो0 विनोद कुमार सिंह, प्रो0 चित्तरंजन मिश्रा, प्रो0 हर्ष कुमार सिन्हा, प्रो0 यू0एन0 त्रिपाठी, प्रो0 कीर्ति पाण्डेय, प्रो0 राजेश सिंह, प्रो0 मानवेन्द्र सिंह, डाॅ0 दिव्यारानी सिंह, डाॅ0 रानी धवन सहित बडी संख्या में विभागाध्यक्षगण, अध्यापक-कर्मचारीगण एवं छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे।
कार्यक्रम का संचालन मनोविज्ञान विभाग की प्रो0 अनुभूति दूबे ने किया।

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