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हिंदू दुकानदार भी बेचते हैं जुलूस-ए-मुहम्मदी के झंडे,  बिल्ले,  दुपट्टा और बैज 

 

सैयद फरहान अहमद

गोरखपुर। बारह रबीउल अव्वल की तैयारियां जोरों पर हैं। इसके लिए बाजार भी सजे हैं। हालांकि नोटबंदी का असर यहां भी साफ तौर पर देखा जा रहा है लेकिन मामले का दूसरा पहलू यह हैं कि बारह रबीउल अव्वल पर निकलने वाले जुलूस-ए-मुहम्मदी के दौरान अकीदतमंदों के जरिए इस्तेमाल में लाये जाने वाले झंडे, बिल्ले, दुपट्टा, बैज आदि के विक्रेताओं में केवल मुसलमान ही नहीं बल्कि हिंदू भी शमिल हैं जो अपने आप में यह पैगाम देने के लिए काफी है कि ’’ मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना’’।

शहर के अलग-अलग बाजारों में जुलूस-ए-मुहम्मदी से सबंधित सामानों की बिक्री जोर-शोर से जारी है। खासतौर पर झंडे और बैनरों के लिए मशहूर बाजार नखास चौक इन दिनों इस्लामिक झंडों और बैनरों से पटा पड़ा है। यहां की दुकानों में पांच रूपए से लेकर 150 रूपए तक के झंडे व बैनर उपलब्ध है। हालांकि नोटबंदी के बाद इस बाजार पर काफी असर पड़ा है। उसके बावजूद अकीदतमंद जरूरत के मुताबिक सामान खरीदने से गुरेज नहीं कर रहे है।

नखास पर मकबूल कार्ड इम्पोरियम के मुख्तार हसन  बताते हैं कि नोटबंदी से उनके कारोबार पर असर पड़ा है लेकिन जुलूए-ए-मुहम्मदी में इस्तेमाल होने वाले सामानों की बिक्री का सिलसिला जारी है। वह बताते हैं कि उनके यहां झंडा व बैच में 140 रूपए में बेचा जा रहा है। वहीं नजरूल हसनउ उर्फ राजा ने बताया कि नोटबंदी से बाजार बुरी तरह तबाह हो गया है। नया साल करीब है। इससे पहले क्रिसमस का पर्व है। इसके लिए सजावटी सामान भारी मात्रा में उपलब्ध है लेकिन खरीददार नदारद है।

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नखास पर ही राजेश चंद्र सैनी व उनके पुत्र संदीप चंद्र सैनी शादी के कार्डों के साथ जुलूस-ए-मुहम्मदी से सबंधित सामान अपनी दुकार पर सजा बैठे है। मां वैष्णों स्टेशनर्स नाम से उनकी दुकान में बिल्ला, बैज, झंडा, झंडी, दुपट्टा, हैंड बैंड सहित तमाम चीजें है और उनकी बिक्री भी खूब हो रही है। वह बतातें है कि करीब तीन सालों से वह हर साल रबीउल अव्वल के मौके पर खास तौर पर दुकान सजाते है और इससे उन्हें न केवल आर्थिक फायदा होता है बल्कि दिली तसल्ली में मिलती है।

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 विपुल वर्मा अपनी दुकान पर जुलूस-ए-मुहम्मदी से सबंधित सामानों का विवरण देते हुए कहते है कि उनकी दुकान हालांकि कास्मेटिक की है लेकिन इस अवसर पर बारह रबीउल अव्वल से सबंधित सामान भी खरीददारों के लिए रखते है। विपुल शहर के एक नामी स्कूल में दसवीं के छात्र है और वह छुट्टी के बाद अपनी मां का हाथ बंटाते हैं। वह कहते है कि नोटबंदी से अगरचे दीगर सामानों की बिक्री पर असर पड़ा है लेकिन जुलूस-ए-मुहम्मदी के सामानों की बिक्री ठीक-ठाक हो रही है।

यहीं पर अहमद जमाल बुक सेलर के अख्तर आलम व शम्से आलम ने बताया कि हर साल की तरह इस बार बाजार थोड़ा हल्का है लेकिन बारह रबीउल अव्वल करीब होने की वजह से बिक्री तेजी पकड़ रही है। यहां पर झंडे से लगायत तमाम चीजें मौजूद है। जिन्हें दिल्ली व मुंबई से मंगाया गया है। उन्होंने इस बात पर खुशी का इजहार किया कि झंडे और बैनर आदि सामानों की बिक्री में गैर मुस्लिम भी हिस्सा ले रहे है जिससे आपसी भाईचारे का संदेश भी जा रहा है।

 

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