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आक्सीजन हादसा: जेल में बंद दलित डाॅक्टर जिसके लिए नहीं है कोई आवाज उठाने वाला

 बीआरडी मेडिकल कालेज के एनस्थीसिया विभाग के अध्यक्ष डा. सतीश कुमार सात महीने से अधिक समय से बंद हैं जेल में

 

गोरखपुर. गोरखपुर के शाहपुर मोहल्ले स्थित एक घर में तीन महिलाएं सात महीने से अधिक समय से आंखों से बहते हुए आंसुओं के बीच अपने लिए न्याय मिलने का इंतजार कर रही हैं.

यह घर बीआरडी मेडिकल कालेज के एनेस्थीसिया विभाग के अध्यक्ष रहे डा. सतीश कुमार का है जो 10 अगस्त की रात मेडिकल कालेज में हुए आक्सीजन हादसे के नौ आरोपियों में से एक हैं और 12 सितम्बर 2017 से जेल में हैं.

उनके बारे में बहुत कम चर्चा हुई है और उनके लिए न्याय की मांग करते हुए उनके परिवार के सिवा कोई आगे भी नहीं आया है।

मूल रूप से गोरखपुर के गोला क्षेत्र के पडरिया गांव निवासी डा. सतीश कुमार दलित हैं. वह बीआरडी मेडिकल कालेज में एमबीबीएस छात्र के रूप में जुड़े थे. पढ़ाई पूरी करने के बाद वह एनस्थीसिया विभाग में शिक्षक हुए और वर्ष 2013 में विभाग के अध्यक्ष बने. वर्ष 2009 में उन्हें मेंटीनेंस अधिकारी बनाया गया था.

उनकी दो विवाहित बेटियां-मंजरी रैन और पल्लवी रैन तथा बेटा तुषार रैन हैं. तुषार ने पिछले वर्ष अगस्त माह में आईआईटी मुम्बई से अपनी पढ़ाई पूरी की है और वह इस समय बेंगलुरू में नौकरी कर रहा है. उसी के कन्वोकेशन प्रोग्राम में जाने के लिए डा सतीश कुमार , पत्नी अनीता के साथ 10 अगस्त की रात गोरखपुर से लखनऊ गए और वहां से फिर फ्लाइट से मुम्बई। इसी रात बीआरडी मेडिकल कालेज में आक्सीजन हादसा हुआ.

डा. सतीश पत्नी संग मुम्बई में 11 अप्रैल की शाम अभी होटल में पहुंचे ही थे कि उन्हें टेलीविजन से इस हादसे की जानकारी हुई। वह बेटे का कन्वोकेशन प्रोग्राम अटेंड किए बिना लौट आए और 12 की रात गोरखपुर पहुंच गए। उन्होंने 13 अप्रैल को ड्यूटी ज्वाइन कर ली.

लेकिन उनके ड्यूटी ज्वाइन करने के पहले तत्कालीन डीएम राजीव रौतेला द्वारा गठित पांच सदस्यीय टीम ने 24 घंटे में इस घटना के बारे में रिपोर्ट तैयार कर लिया था। इस रिपोर्ट में डा. सतीश कुमार पर आरोप लगाया गया कि ‘ वह बिना लिखित अनुमति के 11 अगस्त से बीआरडी मेडिकल कालेज से अनुपस्थित हैं। डा. सतीश लिक्विड आक्सीजन आपूर्ति को निर्वाध बनाए रखने के भी प्रभारी हैं। अतः डा सतीश अपने दायित्वों का सम्यक निर्वहन न करने के लिए प्रथम दृष्टया दोषी हैं। ‘

अपनी दोनों बेटियों के साथ डॉ सतीश कुमार की पत्नी अनीता
अपनी दोनों बेटियों के साथ डॉ सतीश कुमार की पत्नी अनीता

इस रिपोर्ट में ‘ डा सतीश पर आक्सीजन सिलेण्डर का स्टाक बुक एवं लाग बुक मेंटेन न करने का भी आरोप लगाया गया और कहा गया कि उन्होंने कभी लाग बुक का न तो अवलोकन किया और न ही उस पर हस्ताक्षर किया गया। ‘

दस दिन बाद 23 अगस्त को डा सतीश कुमार सहित नौ लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज हो गई। एफआईआर में भी उन पर आरोप लगाया कि वह बिना अनुमति मुख्यालय छोड़ गए जिससे विपरीत स्थिति उत्पन्न हुई। उन्होंने वरिष्ठ अधिकारियों को आक्सीजन की कमी के बारे में अवगत नहीं कराया।

पुलिस ने इस घटना की जांच करने के बाद जो चार्जशीट अदालत में दाखिल की है उसमें उन भ्रष्टाचार के भी आरोप लगाए गए हैं. उन पर भ्रष्टाचार में लिप्त रहने और कर्तव्य पालन में लापरवाही का आरोप लगाते हुए धारा 308, 120 बी, 466, 468, 469 आईपीसी और 7/13 भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम में चार्जशीट दाखिल हुई है.

डा. सतीश कुमार ने एफआईआर दर्ज होने के बाद 11 सितम्बर को अदालत में सरेंडर कर दिया।
अनीता रैन ने बताया कि डा. सतीश ने 11 अगस्त से 17 अगस्त तक की कैजुअल लीव पहले से ले रखी थी। उन्हें आईआईटी मुम्बई में पढ़ रहे बेटे तुषार जैन के दीक्षांत समारोह में भाग लेना था। उन्होंने 3 जुलाई को ही हवाई जहाज की टिकट लखनउ से मुम्बई की करा रखा थी। जाने से पहले उन्होंने प्रिंसिपल को अवगत करा दिया था और अपना चार्ज एनस्थीसिया विभाग के प्रोफेसर शाहबाज को दे दिया था। इसके बाद ही वह मुम्बई रवाना हुए। उन्हें ज्योंही आक्सीजन हादसे की जानकारी हुई वह रिर्टन फलाइट से बेटे का दीक्षांत समारोह अटेंड किए बिना लौट आए.

अनीता ने इंडियन मेडिकल एसोसिएशन को नौ अप्रैल को लिखे एक पत्र में अपने पति पर लगाए गए आरोपों को विंदुवार जवाब दिया है. इस पत्र में कहा गया है कि डा. सतीश को जब 10 अगस्त को सेन्ट्रल लाइन आपरेटरों ने लिक्विड आक्सीजन की कमी के बारे में अवगत कराया तो उन्होंने तुरंत प्रधानाचार्य को इसकी सूचना दी और आपरेटरों के पत्र को मेडिकल कालेज के एसआईसी और सीएमस को फारवर्ड कर दिया.

इस पत्र में उन्होंने यह भी सफाई दी है कि अनुरक्षण अधिकारी के बतौर डा. सतीश की आक्सीजन के खरीद, भुगतान में कोई भूमिका नहीं थी। यह भूमिका प्रधानाचार्य, सीएमएस और एसआईस थी। चूंकि वह एनस्थीसिया के चिकित्सक हैं इसलिए पीडिया या मेडिसीन विभाग के मरीजों के इलाज से उनका कोई वास्ता नहीं है। उनका काम सर्जरी के दौरान मरीजों को बेहोश करना है। इसलिए मरीजों की चिकित्सा में लापरवाही का आरोप ही नहीं बनता है। उन्हें तथ्यों को गलत ढंग से पेश कर फंसाया गया है। जाँच में डॉ सतीश को बार -बार आक्सीजन प्रभारी बताया गया है जबकि मेडिकल कालेज में इस नाम से पद ही नहीं है. डॉ सतीश सिर्फ अनुरक्षण अधिकारी थे.

अनीता ने बताया कि पति के जेल जाने के बाद वह घर में अकेले रह गईं. तब दोनों बेटियां ससुराल से यहां आई और सात महीने से यहीं रह कर उनकी मदद कर रही हैं. छोटी बेटी पल्लवी का ब्याह अमेरिका में हुआ है। वह और उसके पति दो माह तक यहां रहे पति तो नौकरी के चलते वापस अमेरिका में चले गए लेकिन पल्लवी मां का सहारा बनने के लिए यहीं रूक गईं. पल्लवी और उनकी बड़ी बहन मंजरी मां की देखरेख से लेकर कोर्ट-कचहरी और जेल तक दौड़ धूप कर रही है. अनीता पति के जेल जाने से लगातार बीमार चल रही हैं. वह लो ब्लड प्रेशर और डिप्रेशन की शिकार हैं.

मंजरी ने कहा-वह 27 अप्रैल को जेल में बंद पापा से मिलने गईं थीं। जब उन्हें पता चला कि 26 अप्रैल को उनकी बेल पर सुनवाई नहीं हो सकी तो वह बुरी तरह निराश दिखने लगे। बोले-हिम्मत टूटती जा रही है, कोई रास्ता नहीं दिखाई दे रहा है। कुछ करो ! मुझे यहां से जल्दी निकालो. ’

मंजरी ने कहा- ‘ पापा का वजन काफी गिर गया है। वह बहुत कमजोर हो गए हैं। वर्ष 2004 में उनकी आंत का बड़ा आपरेशन हुआ था। इसके बाद से वह बाहर का खाना नहीं खाते थे क्योंकि पाचन शक्ति काफी कमजोर हो गई। उन्हें नियमित अंतराल पर आयरन का इंजेक्शन लेना पड़ता है. ’

पल्लवी बताती हैं कि पापा के जेल जाने से उनका भाई तुषार बेहद दुखी है। वह खुद को इश घटना के लिए दोषी मानने लगा है.  बार-बार कहता है-‘ पापा को कन्वोकेशन में नहीं बुलाया होता तो उनके साथ यह हादसा नहीं होता और उन्हें जेल नहीं जाना पड़ता। ‘

तुषार बार-बार छुट्टी लेकर गोरखपुर आता है और डा. सतीश से मिलने जेल जाता है।

इन सात महीनों में अनीता और उनकी बेटियों का दुख बांटने रिश्तेदारों के अलावा कोई नहीं आया। अनीता कहती हैं कि शुरू में कुछ मीडिया वालों के फोन आए लेकिन वह उस समय बेहद डरे हुए थे और मीडिया में कोई बात नहीं रखना चाहते थे। उन्हें डर था कि डा. सतीश की मुसीबत और न बढ़ जाय। ’

डा. सतीश के लिए सोशल मीडिया में न तो काई कैम्पेन चला न उनके समर्थन में किसी ने धरना-प्रदर्शन किया।

जेल में बंद डा. सतीश द्वारा आईएमए को लिखे पत्र में उनका दर्द बयां हुआ है- ‘ बिना आरोप सिद्ध हुए आठ महीने से जेल में हैं। पत्नी तथा दो विवाहित पुत्रियां न्याय के लिए गोरखपुर से इलाहाबाद, घर से जेल, अधिकारियों, अधिवक्ताओं, पुलिस थाने का चक्कर लगा रही हैं लेकिन उन्हें कोई सुनने वाला नहीं है। ।  ’

 (यह रिपोर्ट आज news18 में प्रकाशित हुई है. यह रिपोर्ट मूल रूप से हिंदी में लिखी गई थी जो यहाँ दी गई है )

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