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विश्वविद्यालयों को स्वतन्त्र विचारों का अभिकेन्द्र बनायें – डॉ0 महेश चन्द्र शर्मा

गोरखपुर विश्वविद्यालय में भारतीय उच्च शिक्षा : यथार्थ एवं आकांक्षाएं पर राष्ट्रीय संगोष्ठी

गोरखपुर ,  6 नवम्बर . गोरखपुर विश्वविद्यालय के संवाद भवन में 4 और 5 नवम्बर को शैक्षिक महासंघ तथा विश्वविद्यालय के दर्शनशास्त्र विभाग के संयुक्त तत्वावधान में ‘ भारतीय उच्च शिक्षा : यथार्थ एवं आकांक्षाएं ’ विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया. जिसे कई विश्वविद्यालयों के कुलपतियों ने अपने विचार रखे।

संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र में एकात्म मानववाद शोध केन्द्र नई दिल्ली के निदेशक डॉ0 महेश चन्द्र शर्मा ने कहा कि समाज सरकारों से नहीं चलना चाहिए। इसकी बजाय आदर्श स्थिति यह है कि समाज सरकारों को चलाए और समाज की आवश्यकताओं के अनुरूप निर्णय लेने के लिए निर्देशित करें। इसके लिए जरूरी है कि शिक्षक और कुलगुरू चाणक्य की तरह निर्भीक और सत्यवादी हों। दुर्भाग्य से स्थितियां ऐसी नहीं हैं। इसका दोष सिर्फ सरकारों पर भी डालना ठीक नहीं होगा। इसके लिए उत्तरदायी वे शिक्षक और शिक्षक संगठन भी हैं जो बार-बार सरकारों के पास मांग पत्र भेज कर कुलपतियों को सरकारी अंकुश के घेरे में लाते हैं। डॉ0 शर्मा ने ने कहा कि हमारी परम्परा ‘ माता प्रथमों गुरूः ’, ‘आचार्य देवो भवः’ तथा ‘आत्मदीपो भवः’ जैसे तीन महात्वपूर्ण विचार सूत्रों पर आधारित है और यही अब तक की हमारी वैचारिक और सांस्कृतिक थाती के पीछे की शक्ति भी रही है। उन्होंने कहा कि यह आवश्यक है कि हम इन मूल्यों को आत्मासात करते हुए विश्वविद्यालयों को स्वतन्त्र विचारों का अभिकेन्द्र बनायें।

                संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के कुलपति  प्रो0 विजय कृष्ण सिंह कहा कि वर्तमान शिक्षा व्यवस्था का चुनौतीपूर्ण स्वरूप हमारे आदर्शों के विचलन का परिणाम है। स्थिति यह है कि विश्वविद्यालयों या उच्च शिक्षा से जुड़े विषयों पर नीति निर्धारण में शिक्षकों की समुचित भागीदारी नहीं होती है। नौकरशाह नीतियां बना देते हैं और सरकारें उसके अनुपालन का निर्देश जारी कर देती हैं। प्रो0 सिंह ने कहा कि हमने अपनी शिक्षा व्यवस्था को इतने अधिक खानों में बांट दिया है कि उससे हमारा चिन्तन गलत दिशा में प्रवृत्त हो जाता है। उन्होंने कहा कि प्रतिवर्ष हाईस्कूल में पंजीकरण से लेकर उच्च शिक्षा तक पहुंचने वाले विद्यार्थियों की संख्या में लगभग 20 लाख की कमी आ जाती है। हमें गम्भीरता से सोचना होगा कि ये विद्यार्थी कहां जा रहे हैं और हम उनके लिए क्या कर सकते हैं।

दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय तथा छत्रपति शाहू जी महाराज कानपुर विश्वविद्यालय के कुलपति रहे प्रो0 अशोक कुमार ने प्राचीन भारत में प्रचलित पशुपालन आधारित व्यवस्था से लेकर वर्तमान में प्रचलित ज्ञान आधारित व्यवस्था में परिवर्तन की यात्रा और विदेशी आक्रमणकारियों द्वारा भारत के आध्यात्मिक तथा सांस्कृतिक सम्पदा पर योजनाबद्ध ढ़ंग से किये गये हमलों का जिक्र करते हुए कहा कि हमारे शिक्षा व्यवस्था के मौजूदा क्षरण का सबसे बड़ा कारण इन्हीं मूल्यों को खो देना है। उन्होनें कहा कि आज डिग्री धारक युवावों की बजाय देशभक्त युवा तैयार करने की जरूरत है। इस पूरे प्रयास में सबसे अधिक भूमिका शिक्षकों की है। जिन्हें ब्रिक्स, बुक्स और ब्रेन जैसे थ्री-बी की शक्तियों और साधनों का सहारा लेना होगा।

संगोष्ठी में दूसरे विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित महात्मा ज्योतिबा फूले रूहेलखण्ड विश्वविद्यालय, बरेली के कुलपति प्रो0 अनिल शुक्ला ने कहा कि शिक्षा का उद्देश्य केवल जानकारी प्राप्त करना नहीं बल्कि आचरण में और व्यवहार में अपेक्षित परिवर्तन करना है। इसके लिए समाज को आज अच्छे रोल मॉडल चाहिए और अपने भीतर कौशल अभिवृद्धि की आकांक्षा भी होनी चाहिए।

उद्घाटन सत्र में वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय जौनपुर के पूर्व कुलपति प्रो0 यू0पी0 सिंह तथा प्राणि विज्ञान की एमेरिट्स प्रोफेसर मधु कुमार का अभिनन्दन किया गया।

तकनीकी सत्र में डॉ0 बलवान सिंह, डॉ0 शशिप्रभा सिंह, डॉ0 विजयानन्द सिंह, डॉ0 कौस्तुभ नारायण मिश्र तथा प्रो0 नरेश प्रसाद भोक्ता ने संगोष्ठी के विषय पर केन्द्रित अपने शोधपत्र प्रस्तुत किये।

संगोष्ठी के दूसरे दिन बुन्देलखण्ड विवि के कुलपति प्रो सुरेन्द्र दुबे ने कहा कि ‌उच्च शिक्षा अतिशय प्रयोगवादिता की शिकार हो गयी है। आज शोध अनुसन्धान में एपीआई के बदलते मानक जहां एक ओर इसकी उपादेयता को संदिग्ध बना रहे हैं वहीं दूसरी ओर हमारे शिक्षण तन्त्र में टॉपर बनने की मानसिकता के अतिरेक के कारण हमारे विद्यार्थी अवसाद का शिकार होकर आत्मघाती बन रहे हैं। इसलिए हमें इस बात को गंभीरता से समझना होगा कि हम रोजगार पाने के लिए रोबोट बनाने की अपेक्षा स्वावलम्बी और स्वाभिमानी पीढ़ी बनाने का प्रयास करें।

‌ डॉ राम मनोहर लोहिया अवध विवि के कुलपति प्रो मनोज दीक्षित ने कहा कि वर्तमान परिवेश में उच्च शिक्षा की बिगड़ती स्थिति का मूल्यांकन यदि करना है तो हमें महाविद्यालयों के स्तर से आरम्भ कर विश्वविद्यालय स्तर तक जाना होगा। हमने कक्षाओं में उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए छात्रों पर दबाव पैदा करने वाले और उन्हें मजबूर करने वाली व्यवस्थाएं तो अपना लीं लेकिन कक्षा में उठने वाली जिज्ञासाओं का सामना करने का साहस अध्यापकों में कब पैदा करेंगे यह सोचने वाली बात है।

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 सिद्धार्थ विश्वविद्यालय, सिद्धार्थनगर के कुलपति प्रो० रजनीकांत पाण्डेय ने कहा कि पूंजीवादी और औपनिवेशिक शासनतंत्र ने हमारी शिक्षा व्यवस्था और शिक्षा मानसिकता को दूषित करने का कार्य किया। तकनीकी विकास के नाम पर आज हम कक्षा के मूल स्वरूप को लगभग समाप्त कर रहे हैं। हमारे समक्ष इसी कारण से आज उच्च शिक्षा के क्षेत्र में मूल्य और सामाजिक व्यवहार का बड़ा अंतर देखने को मिल रहा है।

‌ जननायक चन्द्रशेखर आज़ाद विश्वविद्यालय, बलिया के कुलपति प्रो० योगेन्द्र सिंह ने कहा कि  रोजगारपरकता पर शुरू से ही अतिशय बल देने के कारण आज हमने मूल्यों को विस्मृत कर दिया है। आज हमें यह गंभीरता से समझने की आवश्यकता है कि विश्व की समस्त गंभीर चुनौतियों का समाधान शिक्षा में ही निहित है।

‌‌समापन सत्र में कार्यक्रम के आयोजन सचिव डॉ० आमोद कुमार राय ने द्विदिवसीय संगोष्ठी की आख्या प्रस्तुत किया जिसमें उन्होंने तकनीकी सत्रों में रखे गए विचारों का निष्कर्ष और समीक्षा प्रस्तुत किया।

‌‌राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ के वरिष्ठ मार्गदर्शक श्री ओमपाल ने कहा कि हमारे प्राच्य भारतीय शिक्षा दर्शन में व्यष्टि से समष्टि के हित का चिंतन व्यक्त है। हमारे यहां ज्ञान की प्राप्ति सर्वकल्याणक भाव से करने की परम्परा रही है। जिस समय से हमें शोध आदि कार्य को अपना कर्तव्य न मानकर उसे मजबूरी में किया जाने वाला कार्य माना तबसे वह हमारे लिए एक विकृत मानसिकता बन गया।

‌इस सत्र में प्रो० आर०डी० राय, प्रो० ईश्वर शरण विश्वकर्मा तथा प्रो० के०एन० सिंह ने भी अपने विचार व्यक्त किये।

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