साहित्य - संस्कृति

भोजपुरी लोकगीतों को विश्व धरोहर में शामिल कराने का प्रयास कर रहे हैं : डॉ सरिता बुधू

मॉरीशस की डॉ सरिता बुधू ने भोजपुरी भाषा ,कला,संकृति और लोकगीत के संवर्द्धन के लिए के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया है. भोजपुरी भाषा के प्रचार प्रसार और विकास के लिए सत्तत प्रयत्नशील हैं. वे भोजपुरी स्पीकिंग यूनियन मॉरीशस की अध्यक्ष भी हैं. मॉरीशस स्थित विश्व हिंदी सचिवालय की स्थापना में डॉ बुधु ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उन्होंने “भोजपुरी गीत गवाय”स्कूल की भी स्थापना की है.

दक्षिण अफ्रीका में सम्पन्न हुए “नवें विश्व हिंदी सम्मेलन” में “विश्व हिंदी सम्मान” व बिहार ने उन्हें “विश्व भोजपुरी सम्मान” से सम्मानित किया गया है. उन्होंने “बिहार गौरव”और “कन्यादान” आदि पुस्तकों के अलावा अन्य कई भोजपुरी पाठ्यक्रम पर आधारित पुस्तके भी लिखी हैं. उनकी हिन्दू विवाह प्रथा से सम्बंधित प्रश्नों पर आधारित पुस्तक “कन्यादान “अंतरराष्ट्रीय स्तर प्रसिद्ध है. भोजपुरी भाषा के जुनून ने उन्हें वैश्विक स्तर पर पहचान दिलाई है. डॉ सरिता बुधू की भोजपुरी भाषा को लेकर जूनून और दीवानगी को देखते हुए उन्हें “भोजपुरियन की अंतरराष्ट्रीय दीदी “कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नही होगी.

भोजपुरी स्पीकिंग यूनियन मॉरीशस की अध्यक्षा डॉ बुधू नेपाल की राजधानी काठमाण्डु में 10जनवरी से 12 जनवरी 2020 तक सम्पन्न हुए अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन में शामिल हुईं।सम्मेलन का आयोजन विश्व हिंदी दिवस के अवसर पर हिंदी मंच नेपाल के अध्यक्ष मंगल प्रसाद गुप्ता द्वारा किया गया था, जिसमें अमेरिका, मॉरीशस,नाइजीरिया, सूरीनाम, ब्रिटेन ,भारत सहित लगभग दर्जनों देशों के हिंदी प्रेमियों ने भाग लिया. सम्मेलन में हिंदी को वैश्विक भाषा बनाने और नेपाल में हिंदी के प्रचार प्रसार को लेकर गहन विचार विमर्श हुआ.

सम्मेलन में डॉ सरिता बुधू से मुलाक़ात हुई. उनसे भोजपुरी, हिंदी ,और मॉरीशस,आदि के बारे में विस्तृत चर्चा हुई. डॉ बुधू कहती हैं कि भोजपुरी एक संस्कारी भाषा है. गिरमिटिया मज़दूर के रूप में भारत से मॉरीशस गए लोगों ने अपनी मातृभाषा को न सिर्फ संजोकर रखा, बल्कि उनका संरक्षण एवं संवर्द्धन भी किया. जिस समुदाय की भाषा विलुप्त हो जाती है ,उसकी संस्कृति स्वतः ही नष्ट हो जाती है. जब संस्कृति नहीं होगी फिर हम कहीं के नही रहेंगे. इस लिए ज़रूरी है कि हम अपनी भाषा और संस्कृति को सहेज कर रखें.

मूलतः बिहार के आरा ज़िले की रहने वाली डॉ सरिता के पूर्वजों का सम्बंध जौनपुर से है. उनकी जड़ें करीब 145 साल पुरानी हैं. काफी लंबे संघर्ष और जद्दोजेहद के बाद वह जौनपुर के अपने पुश्तैनी रिशेतदारों को खोज निकालने में कामयाब हो पायीं. डॉ बुधू कहती हैं कि मुझे हिंदी,अवधी, मैथिली, मगही,अंगिका आदि भाषाओं से बहुत लगाव है. मॉरीशस में हिंदी के साथ साथ भोजपुरी की भी पढ़ाई होती है.

भारत और मॉरिशस के बीच रिश्ते को रेखांकित करते हुए वह कहती हैं कि भारत और मॉरीशस के बीच खून का रिश्ता है. दो सौ वर्षों पूर्व करीब 4 लाख गिरमिटिया मज़दूर भारत से मॉरीशस गए थे, जिसमें उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल जौनपुर, गोरखपुर, फैज़ाबाद, आज़मगढ़ , बलिया, देवरिया, वाराणसी आदि ज़िले के लोग थे। वह कहती हैं भारत से गए गिरमिटिया मज़दूरों ने न तो अपनी भाषा बदली और न संस्कृति से दूर हुए.

डॉ बुधू कहती हैं अपनी मातृभाषा को नहीं भूलना चाहिए. अपनी मातृभाषा में साहित्य के सृजन से साहित्य में भावों एवं मर्मों को बेहतर ढंग से व्यक्त किया जा सकता हैं. इसलिए अपनी मातृभाषा में साहित्य लेखन को वरीयता देनी चाहिएं. वह कहती हैं कि भारत मे आज़ादी के समय करीब तीन हज़ार भाषाएं थीं जो अब सिर्फ 1500 के आसपास ही बची हैं. भोजपुरी भाषा में फूहड़पन और अश्लीलता के सवाल पर उनका नज़रिए बिल्कुल साफ है. वह कहती हैं कि भोजपुरी में सिर्फ नाच गाना, फूहड़पन और अश्लीलता नहीं है. यह संस्कृति को भी व्यक्त करती है. जहां तक फूहड़ गीतों और अश्लीलता का सवाल है, यह भोजपुरी फिल्मों के ज़रिए परोसा जा रहा है. दरअसल भोजपुरी फ़िल्म निर्माण से जुड़े जायदातर लोग विशुद्ध रूप रूप से व्यवसायिक हैं जिनका मकसद सिर्फ पैसा कमाना है . यही लोग भोजपुरी भाषा को बेच रहे हैं.

मॉरिशस में भोजपुरी भाषा के सवाल पर डॉ बुधू कहती हैं वहां की सरकार 2013 से भोजपुरी चैनल चला रही है जिसमें भोजपुरी लोकगीतों व संस्कृति का समुचित प्रसारण किया जाता है. वहां भारत की बहुभाषिक संस्कृति, सभ्यता को हम लोगों ने संजोकर रखा है . भोजपुरी भाषा विलुप्त न हो और आने आने वाली पीढियां उससे परिचित हों इस उद्देश्य से मॉरीशस में 125 भोजपुरी विद्यालय भी स्थापित किये गए हैं.  मॉरीशस विश्वविद्यालय के सहयोग से मॉरिशस की सरकार ने भोजपुरी लोकगीतों का संकलन कर यूनेस्को भेजा है ,जिससे उसे विश्व धरोहर में शामिल किया जा सके.” भोजपुरी में बोला “और ” भोजपुरी में सोचा ” आंदोलन भी चलाया जा रहा है.

भोजपुरी को लंबे समय से संविधान की आठवीं सूची में शामिल करने की मांग हो रही है.डुमरियागंज से सांसद जगदम्बिका पाल ने भोजपुरी को संविधान की आठवीं सूची में शामिल करने की मांग को संसद में पिछले सत्र में उठाया था. फिलहाल अभी भी भोजपुरी को आठवीं सूची में शामिल नहीं किया गया है. डॉ बुधु कहती हैं कि भोजपुरी भाषा को संविधान की आठवीं सूची में शामिल किया जाना चाहिए यही भोजुपरी जनता का सम्मान होगा.

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