साहित्य - संस्कृति

अपने साथ ‘ डंडताल ’ भी लेकर सूरीनाम गए थे गिरमिटिया

जोगिया (कुशीनगर).सूरीनाम के प्रसिद्ध सरनामी गायक राजमोहन लगातार तीसरे बार लोकरंग में शामिल होने जोगिया गांव आये हैं. सबसे पहले वह 2017 में 10वें लोकरंग में शामिल होने आये थे. अपनी प्रस्तुति से उन्होंने लोगों का दिल तो जीता ही अपने मधुर व्यवहार से सबके चहेते हो गये. उनके साथ म्यूजिकल बैंड के दो साथी सोरद्ज ( सूरज ) सेवलाल और पवन माहरे भी थे.

11 वें लोकरंग में वह पत्नी सहित जोगिया आये. हालांकि उनकी कोई प्रस्तुति नहीं थी लेकिन लोगों की जबरदस्त मांग पर उन्हें गाना पड़ा.

12वें लोकरंग का गिरमिटिया महोत्सव के रूप में आयोजित होने में राजमोहन की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है.

नीदरलैंड निवासी राजमोहन गीत, गजल, भजन, पाॅप गायक, कम्पोजर, कवि और लेखक हैं.

मारीशस, सूरीनाम, गयाना, त्रिनीडाड, फिजी में गए मजदूरों में बड़ी संख्या बिहार और यूपी की थी और अधिकतर दलित और पिछड़े वर्ग के थे. पांच वर्ष के कान्ट्रैक्ट खत्म होने के बाद अधिकतर लोग उन्हीं देशों में बस गए लेकिन पूरी जिंदगी अपने देश व गांव लौटने का सपना जीते रहे. कुछ लौटे तो अपने गांव-परिवार को खोज नहीं पाए. ऐसे खुशनसीब कम थे जो अपने गांव भी लौटे और उन्हें अपने घर-परिवार भी मिले.

वर्ष 1873 से 1916 के बीच 64 जहाजों से डच उपनिवेश सूरीनाम में करीब 40 हजार गिरमिटिया मजदूर गए.

इन्हीं में राजमोहन के परनाना और दादा भी थे. तब सूरीनाम नीदरलैंड के अधीन था. राजमोहन बताते हैं कि 40 हजार मजदूरों में से एक तिहाई मजदूर ही अनुबंध खत्म होने के बाद सूरीनाम से लौटे. इनमें भी अधिकतर मारीशस, त्रिनीडाड, गुयाना आदि देशों में चले गए जबकि कुछ अपने देश भारत लौट आए.

इन गिरमिटिया मजदूरों की जिंदगी आसान नहीं थी। वे रेलगाडि़यों से कलकत्ता गए और फिर वहां से पानी के जहाज से सूरीनाम।

राजमोहन के बैठकगानों में ढोलक, हारमोनियम के साथ वाद्य यंत्र धनताल जरूर होता है। छड़ी नुमा स्टील के इस वाद्य यंत्र को उनके साथी पवन महारे मनमोहक तरीके से बजाते हैं.

यह वाद्य यंत्र दरअसल पूर्वी उत्तर प्रदेश का पुराना डंडताल है जो अब परिष्कृत रूप में सूरीनाम में ‘ धनताल ‘ हो गया है. पूर्वी उत्तर प्रदेश से सूरीनाम गए गिरमिटिया मजदूर अपने साथ इस वाद्य यंत्र को भी ले गए थे. राजमोहन जब भी भारत आते पुराने डंडताल की तस्वीर खोजते। ‘ लोकरंग-2017 ’ में उन्हें पुराना डंडताल  मिल गया। गाजीपुर से धोबियाउ नृत्य प्रस्तुत करने आए लोक कलाकार जीवनलाल और उनके साथियों के पास यह डंडताल था. उन्होंने दंडताल को देखना अपने जीवन की बड़ी उपलब्धि बताया और कहा कि वह सूरीनाम जाकर लोगों को इसकी तस्वीर दिखाएंगे.

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