पर्यावरण

‘ पानी की प्रचुरता वाले स्थानों पर भी पानी बचाना जरूरी ’

जल संरक्षण पर परिचर्चा का आयोजन

गोरखपुर. मानव सेवा संस्थान सेवा के तत्वावधान 7 सितम्बर को जल संरक्षण पर परिचर्चा का आयोजन हुआ. परिचर्चा में संस्थान के स्लोगन ‘‘ जल है तो कल है, जल नहीं तो कल नहीं ’’ से सहमति जताते हुए गोरखपुर महानगर के प्रबुद्धजनों नेे जल संरक्षण के लिए नदी,नाले, तालाब, पोखरे, जलश्रोत, पेड़ पौधें, आदि के संरक्षण और विभिन्न तरीकों से पानी के उपयोग और पानी की बचत के संदर्भ में अपने विचार प्रस्तुत किए.

इस परिचर्चा में शहर के प्रबुद्धजन, समाजसेवी, संस्थाएं, शिक्षक, विषय विशेषज्ञ, चिकित्सक, सामाजिक कार्यकर्ता, ग्राम प्रधान, पार्षद आदि के साथ  अन्य गणमान्य नागरिक उपस्थित रहे।

परिचर्चा के प्रारम्भ में मानव सेवा संस्थान के निदेशक राजेश मणि ने कहा कि जल संकट गंभीर होता जा रहा है. जल संरक्षण को लेकर देश में आजादी के बाद पहली बार जल शक्ति मंत्रालय का गठन किया गया है. उन्होंने कहा कि आने वाले दिनों में पानी की कमी हम सभी के लिए एक भीषण त्रासदी का रूप लेता दिखाई दे रही है. पानी का दोहन जिस प्रकार से किया जा रहा है, निकट भविष्य में आने वाली पीढ़ी के लिए यह एक विकराल समस्या बनेगी. नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार 2020 तक भारत में कई प्रमुख शहर पानी की आपूर्ति से बंचित हो जायेगें। पानी की आपूर्ति के अपेक्षा खपत 2030 तक दो गुना हो जायेगी. हमारा और आपका छोटा सा प्रयास पानी की बर्बादी को रोक सकता. हम थोड़ी कोशिश कर दिनचर्या में पानी की काफी बचत कर सकते हैं.

कार्यशाला में डा केपी कुशवाहा ने कहा कि स्वास्थ के क्षेत्र में निश्चित ही पानी से हो रही बिमारीयों को काफी हद तक रोका गया है. विगत वर्षो में शिशु मृत्यु दर, मातृ मृत्यु दर में भारी कमी आयी है. निश्चित ही यह जागरूकता और संसाधन के कारण ही सम्भव हो सका है. दूषित पानी से होने वाली कालरा जैसी संक्रामक बीमारियों पर अंकुश लगा है लेकिन जांडिस, उल्टी- दस्त, डायरिया से आज भी बड़ी संख्या में खासकर बच्चों की जान जाती है.

डॉ के पी कुशवाहा ने कहा कि देश में पेयजल की समस्या आज भी गंभीर है. कई स्थानों पर महिलाओं का पूरा का पूरा दिन पीने के पानी की तलाश में खत्म हो जाता है. उन्होंने भूमिगत जल में खतरनाक रसायनों के संदूषण पर चिंता जतायी और इस पर नियंत्रण पर जोर दिया.

मदन मोहन मालवीय यूनिवर्सिटी आफ टेक्नोलाजी में प्रोफेसर गोविन्द पाण्डेय कहा कि पूरे विश्व का 4 प्रतिशत स्वच्छ पेयजल ही हमारे देश में उपलब्ध है जबकि हमारे देश की आबादी पूरे विश्व की 17 प्रतिशत है, जो कि कही न कही पानी की कमी को साफ तौर पर दर्शाता है। एक आरओ प्लांट से 30 प्रतिशत पानी ही शुद्ध पेय जल के रूप में मिलता है और 70 प्रतिशत पानी बेकार हो जाता है. उन्होंने भूगर्भ जल के गिरते स्तर चिंता जताई और कहा कि गांवों में लगे पेयजल आपूर्ति के श्रोतों की निरंतर जाँच आवश्यक है क्योंकि गोरखपुर सहित पूर्वाचंल में आर्सेनिक और फलोराईड की मात्रा निर्धारित मानक से ज्यादा पायी जा रही है.

गोरखपुर इन्वायरमेंटल एक्शन ग्रुप के अध्यक्ष डा सिराज ए वजीह ने कहा कि  हमारे सभी धर्म शास्त्र हमें जल संरक्षण के प्रति प्रेरित करते है। पानी की प्रचुरता वाले स्थानों पर भी पानी बचाना जरूरी है. गंगा -ब्रह्मपुत्र का मैदान में स्थित नदियों में भी पानी की कमी देखि जा रही है. जलवायु परिवर्तन के कारण यह देखने में आ रहा है कि वर्षा कम हो रही है लेकिन एक दिन में अधिक वर्षा वाले दिनों की संख्या बढ़ रही है जिसके कारण जल का संरक्षण नहीं हो पाता है. उन्होंने पूर्वांचल में जलाशयों पर बढ़ते अतिक्रमण पर चिंता जताते हुए कहा कि गोरखपुर शहर में 103 ताल -तलैये थे लेकिन आज सिर्फ 18 बचे हैं. आज कृषि सिंचाई के लिए बहुत अधिक पानी की जरूरत पड़ रही है जबकि पहले मोटे अनाज बहुत कम पानी में उत्पादित होते थे. उन्होंने कहा कि जो लोग जल संरक्षण करते है उनको प्रोत्साहित किया जाना चाहिए.

जिला मलेरिया अधिकारी डा ए के पाण्डेय ने कहा कि जल जनित रोगों के कारण लोगों का रूझान आरओ के माध्यम से शुद्ध पेयजल की तरफ ज्यादा बढ़ रहा है। लोग खरीद कर पानी पी रहे है।  निश्चित ही हम विकास की तरफ बढ़ रहे है लेकिन आरओ प्लांट लगाने के लिए सरकार को एक मानक तैयार करना चाहिए. उन्होंने पानी के उपयोग के लिए  जन कानून तैयार करने पर बल दिया.

होम्योपैथिक चिकित्सक डा रूप कुमार बनर्जी ने कहा कि यदि हम सचेत नहीं हुए जल संकट गंभीर होता जायेगा. हमें पानी की एक-एक बूँद को बचाने के बारे में सोचना होगा.

गोरखपुर विश्वविद्यालय के बायोटेक्नोलाजी विभाग के प्रो शरद मिश्रा  ने कहाॅ कि विकास की ओर तेजी से बढ़ते समाज में यह ध्यान रखने की आवश्यकता है कि कही हम अपने मूल दिशा से तो नही भटक रहे है। पानी हमारे लिए सबसे महत्वपूर्ण रत्न की तरह है, जिसे हमें एक बहुमूल्य वस्तु की तरह सजोने की आवश्यकता है।

स्वास्थ्य शिक्षा अधिकारी डा ओ पी जी राव ने कहा की जल संरक्षण जन भागीदारी से ही संभव है.

परिचर्चा में वरिष्ठ पत्रकार  मनोज सिंह, अशोक चौधरी, बाबू राम यादव, ग्राम  प्रधान गनवरीयाॅ ने भी विचार व्यक्त किये।

कार्यशाला में मुख्य रूप  से डा0 विरेन्द्र श्रीवास्तव, दिनेश शर्मा, ग्राम प्रधान विन्ध्याचल, पार्षद संजय यादव, राधेश्याम रावत , दीनदयाल, भूपेन्द्र पाण्डेय, ग्राम प्रधान प्रतिनिधि खोराबार, प्रद्युम्न मिश्रा, सतेन्द्र सिंह , बी0एम0 त्रिपाठी, डा0 आर0सी0 त्रिपाठी, धर्मेन्द्र सिंह, रोहन सेन, दुर्गेश निषाद, चन्द्र शेखर सिंह, संजय पाण्डेय प्रमुख रूप से उपस्थित थे।

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