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हज ट्रेनिंग : काबा शरीफ का तवाफ, कुर्बानी व शैतान को कंकरिया मारने का तरीका बताया गया

गोरखपुर। जिले के हज यात्रियों को नार्मल स्थित हजरत मुबारक खां शहीद मस्जिद में रविवार को तहरीक दावते इस्लामी हिन्द की ओर से चौथे चरण की हज ट्रेनिंग दी गयी। हज के फराएज, हज के पांच अहम दिन व हज का अमली तरीका बताया गया। ट्रेनिंग 31 मार्च और 7 अप्रैल को भी दी जायेगी। ट्रेनिंग के दौरान तल्बिया यानी ‘लब्बैक अल्लाहुम्मा लब्बैक’ का अभ्यास जारी रहा।

हज ट्रेनर हाजी आज़म अत्तारी ने बताया कि हज में सात चीजों की अदायगी पर खास ध्यान देने की जरुरत होती है। जो हज के फर्ज कहलाते हैं। हज के 7 फर्ज हैं पहला “एहराम” (हज का खास लिबास), दूसरा “नियत”, तीसरा “वुकूफ-ए-अरफात” (मैदान-ए-अरफात में ठहरना), चौथा “तवाफ-ए- जियारत” (काबा शरीफ का सात चक्कर), पांचवां “तरतीब”(सभी अरकान क्रमवार अदा करना), छठां “मुकर्रर वक्त”, सातवां “निश्चित जगह”। इसमें से अगर कोई अदा करने से रह गया तो हज अदा न होगा।

उन्होंने बताया कि हज के पांच दिन अहम होते हैं। 8वीं जिलहिज्जा (इस्लामी माह) पहला दिन है। 8वीं तारीख की रात नमाज-ए इशा के बाद एहराम पहन कर मक्का शरीफ से मिना के मैदान (पवित्र स्थान) रवानगी होती है। यहां पांच वक्त की नमाजें यानि 8वीं जिलहिज्जा की जोहर से लेकर 9वीं जिलहिज्जा की फज्र तक पांच नमाजे अदा की जाती है। 9वीं जिलहिज्जा को सूरज निकलने के बाद से मैदान-ए-अरफात (पवित्र मैदान) जाते हैं और सूरज ढ़लने के बाद तक “वुकूफ-ए-अरफात” (यानी मैदान-ए-अरफात में ठहरना) करते हैं। जोहर व अस्र की नमाज यहीं अदा की जाती है। 9वीं जिलहिज्जा को अब मगरिब का वक्त हो गया अब यहां से बगैर नमाज-ए-मगरिब पढे़ हाजी मैदान-ए-मुजदलफा (पवित्र स्थान) के लिए निकलते हैं। जिस वक्त मुजदलफा पहुंचते हैं यहां दो नमाजें (मगरिब व इशा) की तरतीब के साथ एक साथ अदा करते हैं और यहां दुआ और गुनाहों की माफी में रात गुजारते हैं। यहां से हाजी कंकरिया चुनते हैं। रात गुजार कर 10वीं जिलहिज्जा का नमाज-ए-फज्र पढ़कर सुबह सूरज निकलने के बाद मिना वापस आ जाते हैं और बड़े शैतान को कंकरिया मारते हैं फिर कुर्बानी कराकर सर मुंडाते हैं और अब एहराम से निकल जाते हैं।

उन्होंने बताया कि इसके बाद हज का दूसरा फर्ज “तवाफ-ए-जियारत” के लिए मक्का शरीफ रवाना हो जाते हैं और मक्का की पवित्र मस्जिद (मस्जिद-उल-हराम) में खाना-ए-काबा का तवाफ करते हैं। तवाफ के बाद सई यानि सफा पहाड़ी से मरवा पहाड़ी और फिर मरवा से सफा सात चक्कर पूरा करते हैं। एक चीज का ध्यान रखना चाहिए की सारे अरकान इसी तरतीब से होने चाहिए। बहुत सारे हाजी 10वीं तारीख को ही “तवाफ-ए-जियारत” कर लेते हैं। याद रहे कि “तवाफ-ए-जियारत” 10वीं की सुबह सादिक से लेकर 12वीं जिलहिज्जा के सूरज डूबने से पहले तक अदा करते हैं।

उन्होंने आगे बताया कि 11वीं व 12वीं जिलहिज्जा को मिना के मैदान में सिर्फ तीन शैतानों को कंकरिया मारनी होती हैं। सबसे पहले छोटे को फिर मंझले को फिर बड़े शैतान को कंकरिया मारनी होती हैं। फिर हज की अदायगी पूरी हो जाती है। आखिर में “तवाफ-ए-विदा” अदा किया जाता है। यह वाजिब और लाजिम है।

अंत मेे सलातो-सलाम पढ़कर एक व नेक बनने की दुआ की गई। इस मौके पर हाजी शहाबुद्दीन अत्तारी, फरहान अत्तारी, आदिल अत्तारी, रमजान अत्तारी, एडवोकेट शमशाद, मेहताब अशरफ, इकबाल आलम, मो. तारिक सहित तमाम लोग मौजूद रहे।

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