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कुशीनगर में मैत्रेय प्रोजेक्ट : 19 वर्ष पहले पड़ी थी नींव

गोरखपुर.वर्ष 2000 में मैत्रेय परियोजना के लिए पहले बोधगया को चुना गया लेकिन वहां पर सिर्फ 30 एकड़ ही जमीन थी। अधिक जमीन देने में तत्कालीन लालू यादव सरकार ने कोई रूचि नहीं ली। मैत्रेय परियोजना के संचालकों ने तब यूपी सरकार से सम्पर्क साधा और प्रदेश सरकार ने इसे हाथो-हाथ ले लिया।

 6 नवम्बर 2001 और 6 फरवरी 2002 को तत्कालीन मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह ने दलाई लामा को पत्र लिखकर मैत्रेय प्रोजेक्ट को यूपी में स्थापित करने का अनुरोध किया।

मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह ने इस दौरान कई बार सार्वजनिक रुप से बयान दिया कि यूपी सरकार बामियान में बुद्ध प्रतिमा तोड़े जाने के जवाब में कुशीनगर में भगवान बुद्ध की प्रतिमा स्थापित करेगी जो दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा होगी

कुशीनगर में भगवान बुद्ध के महापरिनिर्वाण मंदिर के पास सात गांवों- सबया, अनिरूद्घवा, सिसवा महंथ, डुमरी, कसया, विषुनपुर विन्दवलिया, बेलवा पलकधारी गांव की 750 एकड़ भूमि परियोजना के लिए चिन्हित की गई। इसमें 660.57 एकड़ भूमि किसानों की थी। शेष भूमि सरकारी और पंचायत की थी।

भूमि अधिग्रहण के खिलाफ किसानों ने भूमि बचाओ संघर्ष समिति का गठन कर 15 मई 2002 से आन्दोलन शुरू कर दिया।

 9 मई 2003 को मैत्रेय प्रोजेक्ट ट्रस्ट और प्रदेश सरकार के बीच एमओयू पर हस्ताक्षर हुए। तब यूपी में सपा की सरकार थी।
सरकार ने भमि अधिग्रहण कानून के तहत धारा चार और छह का प्रकाशन करते हुए भूमि अधिग्रहणाका कार्य पूरा कर लिया लेकिन किसानों के विरोध के कारण उस पर कब्जा नहीं ले सकी।

वर्ष 2007 के विधान सभा के चुनाव के ठीक पहले तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने किसानों को बातचीत के लिए लखनऊ बुलाया और उनसे कहा कि सरकार किसानों से जबर्दस्ती जमीन नहीं लेगी।

विधानसभा चुनाव के बाद यूपी में सुश्री मायावती के नेतृत्व में बसपा की सरकार बनी और परियोजना के काम में एक बार फिर तेजी आई लेकिन फिर अचानक सरकार इस परियोजना के बारे में पूरी तरह उदासीन हो गई

मई 2011 में जब प्रदेश सरकार ने मैत्रेय परियोजना को 273 एकड़ में सीमित करने का प्रस्ताव दिया जिस पर मैत्रेय प्रोजेक्ट ट्रस्ट राजी हो गया। इसके बाद किसानों से दो-तीन दौर की बात हुई लेकिन सहमति नहीं बन पाई

मार्च 2012 में प्रदेश में अखिलेश यादव के नेतृत्व में सपा की सरकार बनने के बाद किसानों से एक बार फिर  बातचीत हुई लेकिन कोई सहमति नहीं बनी। प्रशासन ने प्रदेश सरकार को रिपोर्ट भेजी

 भूमि मिलने में देरी से हताश मैत्रेय प्रोजेक्ट के आध्यात्मिक निदेशक लामा जोपा रिनपोछे ने नवम्बर 2012 में परियोजना को कुशीनगर से हटा कर बोधगया में स्थापित करने की घोषणा की। उनकी यह घोषणा मैत्रेय प्रोजेक्ट के वेबसाइट पर प्रकाशित हुई.

20 नवम्बर 2012 को यह यह ब्रेकिंग खबर के रूप में ‘ हिंदुस्तान ‘ में प्रकाशित हुई. इसके बाद कुशीनगर से लखनऊ तक हड़कम्प मच गया। दो दिन बाद
22 नवम्बर 2012  को मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा कि मैत्रेय प्रोजेक्ट को कुशीनगर से जाने नहीं दिया जाएगा। उन्होंने मुख्य सचिव जावेद उस्मानी को प्रोजेक्ट की राह की अड़चनों को दूर करने का निर्देश दिया.

मुख्य सचिव जावेद उस्मानी ने 23 नवम्बर 2012 को लखनऊ में कुशीनगर के डीएम, गोरखपुर के कमिश्नर, पर्यटन सचिव के साथ बैठक की और 945 रुपए प्रति वर्ग मीटर की दर से किसानों से जमीन का करार शुरू करने का निर्देश दिया.
28 नवम्बर 2012 से किसानों से करार का काम शुरू हो गया. 4 दिसम्बर 2012 को लखनऊ में उच्चस्तरीय बैठक में 15 जनवरी तक करार पूरा करने की टाइमलाइन तय हुई। फरवरी 2013 तक परियोजना के लिए 202 एकड़ भूमि अधिग्रहीत करने का कार्य पूरा हो गया.

मई 2013 में विंदवलिया गांव के किसान श्रीकृष्ण यादव, काशीनाथ यादव, दुर्गा सिंह, श्रीनारायण, जोगेन्द्र यादव, विद्या सिंह सहित 49 किसानों की रिट याचिका (3704/2013) पर हाईकोर्ट इलाहाबाद की न्यायाधीश सुशील हरकोली और नाहीद आर मुनिस की दो सदस्यीय बेंच ने इन किसानों की जमीन लेने पर रोक लगा दी। इस कारण से परियोजना के लिए आवश्यक भूमि प्रशासन नहीं ले सका और बुद्ध पूर्णिमा पर परियोजना का शिलान्यास नहीं हो सका.

पञ्च महीने बाद 18 अक्टूबर 2013 को लखनऊ में मुख्य सचिव की अध्यक्षता में हुई बैठक में मैत्रेय परियोजना के शिलान्यास पर सहमति बनी। लखनऊ में 3 दिसंबर 2013 को मुख्य सचिव जावेद उस्मानी की अध्यक्षता में हुई बैठक में 13 दिसंबर को मुख्यमंत्री के हाथों परियोजना का शिलान्यास का कार्यक्रम तय हुआ. चार दिसम्बर को कुशीनगर के नौरंगिया में आये मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भी इसकी पुष्टि सार्वजनिक रूप से कर दी लेकिन पांच दिसंबर को शिलान्यास कार्यक्रम टल गया और एक बार फिर उहापोह की स्थिति बन गई. छह दिसंबर की शाम मुख्यमंत्री कार्यालय व संस्कृति विभाग से प्रशासन को सूचना मिली कि 13 दिसंबर को ही शिलान्यास होगा। इसके बाद 13 दिसम्बर को मैत्रेय प्रोजेक्ट का शिलान्यास हुआ.

शिलान्यास के छह वर्ष बाद भी परियोजना का कार्य शुरू नहीं हो सका और 11 नवम्बर को योगी सरकार ने परियोजना की एम ओ यू निरस्त करने का फैसला ले लिया.

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