साहित्य - संस्कृति

चौरीचौरा विद्रोह की बरसी पर रसूलपुर में हुआ मुशायरा

गोरखपुर। जंग-ए-आजादी में न जाने कितने ही लोगों ने अपने प्राणों की आहुति देश को बचाये रखने के लिए दी। चौरीचौरा कांड से आजादी की लड़ाई को मुकाम तक ले जाने वाले चौरीचौरा विद्रोह की बरसी पर शहीदों को अल्फाजों की गर्मी के साथ याद किया गया।

अंसार अदबी सोसायटी की ओर से रविवार को मदरसा ग्राउण्ड जामा मस्जिद रसूलपुर में ‘एक शाम चौरी चौरा के शहीदों के नाम’  के साथ मुशायरे का आयोजन किया गया। जिसमें प्रदेश के कई जिलों से आये शायरों ने अपनी शायरी से शहीदों को खिराजे अकीदत पेश किया।

शायर वसीम मजहर ने ‘चलो अब अपने सिर पर हम तिरंगा बांध कर निकले, हमें हिन्दोस्तां की सरहदें आवाज देती हैं’ शायरी से सुनने वालों की रगों में वतनपरस्ती की लौ जलायी। शायर डा. अक्स वारसी ने ‘चारा साजों का भरोसा पारा -पारा हो गया, ठीक होकर घाव दिल जब दोबारा हो गया’, डा. ज्ञानेन्द्र द्विवेदी ने ‘ऐ अब्र हमें तू बार-बार सैलाब की धमकी देता है, हम तो दरिया की चोअी पर तरबूज की खेती करते हैं’, शायर शाकिर अली शाकिर ने ‘जरूरत जब पड़े कुर्बान कर दूं, वतन से बढ़ कर मेरी जां नहीं है’, डा. जैद कैमूरी ने ‘दिल से हर तरह की नफरत को मिटाया जाये कोई कानून मोहब्बत का बनाया जाये’ अशारों के साथ अपनी बात आवाम के सामने रखी।

देर रात तक जली मुशायरे की लौ में शायर डा. आनन्द ओझा ने ‘जब जिस्म से लिपटे रहे फूलों के उम्र भर, कांटों को महकने का हुनर क्यों नहीं आया’ , दीदार बस्तवी ने ‘गुलाब शेर वर्क और किताब हम भी थे’,  सृजन गोरखपुर ने ‘लोहे के सौ चले चबाने पड़ते हैं’ , सलाम जाफरी ने ‘चुभने लगे जो खार तो शिकवा सभी को है’ , अनवर जिया ने ‘आप कमजोर को इतना न सताएं हजरत, वो कफन बांध कर तैयार भी हो सकता है’ जैसी शायरी के साथ देर तक चौरी चौरा कांड की बरसी में हुए मुशायरे में समां बांधे रखा।

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