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‘ हमारी रोजी-रोटी छीन ली गई, हम भूखे मर रहे हैं लेकिन कोई सुन नहीं रहा ’

गोरखपुर. गोरखपुर में स्लाटर हाउस न होने की वजह से जिले में भैंस काटने व उसका गोश्त बेचने पर वर्ष 2017 से पूरी तरह पाबंदी लगी हुई है.  भैंस (बड़े) के गोश्त के विक्रय पर रोक के चलते कुरैशी बिरादरी से जुड़े लोग भुखमरी के कगार पर आ गए हैं. उनके बच्चों की पढाई छूट गई है. खाने के लाले पड़ रहे हैं.
कुरैशी विरादरी के लोगों की समस्या यह है कि शहर में कोई वैध स्लाटर हउस नहीं है और इसकी आड़ में नगर निगम व सम्बन्धित प्रशासन उन्हें भैंस का गोश्त बेचने का लाइसेंस नहीं दे रहा है.  सरकार व स्थानीय प्रशासन स्लाटर हाउस बनाने में कोई रूचि नहीं ले रहा है. कुरैशी विरदारी के लोगों द्वारा दाखिल याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने नगर निगम को उपयुक्त भूमि तलाश कर स्लाटर हाउस बनाने का आदेश दिया लेकिन इस पर अब तक अमल नहीं हो सका है.
 गोरखपुर के हुमायूँपुर में स्लाटर हॉउस था जिसे 2001 में बंद करा दिया गया. इसे बंद कराने का कारण स्थानीय नागरिकों द्वारा मुहल्ले में हो रही गंदगी को बताया गया.
इसके बाद शहर से काफी दूर भटहट में अस्थायी स्लाटर हाउस बनाया गया. कुरैशी विरादरी के लोग वहां से भैंस का गोश्त लाकर बेचते रहे. नगर निगम ने वर्ष 2002 से भैंस के गोश्त की विक्री के लिए न तो नया लाइसेंस दिया न पहले के लाइसेंस का नवीनीकरण किया . कारण स्थायी स्लाटर हाउस का नहीं होना बताया जाता रहा. इस दौरान किसी भी सरकार ने यहाँ पर न तो स्लाटर हाउस बनवाया न लाइसेंस जारी करने की व्यवस्था की. सपा सरकार में यह व्यवस्था की गई कि स्लाटर हॉउस बन जाने तक भैंस का गोश्त बेचने पर पाबंदी नहीं रहेगी. इस आधार पर कुरैशी विरादरी के लोग अपना पुश्तैनी कम करते रहे.

प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार बनने पर  सरकार ने स्लाटर हाउस न होने के आधार पर भैंस के गोश्त की विक्री पर रोक लगा दी. इसके बाद गोरखपुर शहर में भैंस का गोश्त बेचने पर पूरी पाबंदी लगा दी गई.
स्लाटर हाउस के लिए लाइसेंस की शर्त है कि – स्लाटर हाउस चार खंडों में बंटा हो- प्रवेश, जानवरों के विश्राम, पशुवध और निकासी प्वाइंट,  वहां से निकलने वाले अपशिष्ट के प्रबंधन की व्यवस्था हो – शहर में नगर निगम, टाउन एरिया में नगर पंचायत और ग्रामीण इलाकों में तहसील से एनओसी ली हो.  हर स्लाटर हाउस में वैटनरी डॉक्टर हो, उनके द्वारा जांच के बाद मीट पर स्टांप लगाया जाए. वेटनरी डॉक्टर द्वारा पशु के कटने और उसके बाद गोश्त की हुई जांच का प्रमाण पत्र भी जारी किया जाएगा. स्लाटर हाउस धार्मिक स्थल, शाकाहारी प्लाजा आदि के बगल में नहीं होना चाहिए.
यही नियम बकरा, मुर्गा, मछली बेचने वालों पर भी है. उन्हें भी खाद्य सुरक्षा विभाग में रजिस्ट्रेशन करा कर लाइसेंस लेना चाहिए लिकं उन्हें अपना कारोबार व जीविका चलने की पूरी छूट मिली हुई है. सारी पाबंदी  भैंस का गोश्त बेचने वालों पर लगाई गई है. नियम है कि लाइसेंस धारक दुकान पर पशु व पक्षी का वध नहीं कर सकता. बूचड़खाने से लिया गया वैध गोश्त ही बेच सकने की शर्त हैं.
गोरखपुर में कोई स्लाटर हाउस नहीं है तो शहर की दुकानों पर बकरा, मुर्गा, मछली की भी बिक्री नहीं होनी चाहिए। भैंस की तरह बकरा के गोश्त की दुकानों का भी लाइसेंस एक्सपॉयर हो चुका हैं। अगर लाइसेंस हो तो भी सिर्फ गोश्त बेचने की परमिशन ही होती हैं लेकिन दुकानों पर बकरा काट कर बेचा जा रहा हैं। वहीं मुर्गे के गोश्त की दुकानों के पास भी लाइसेंस नहीं हैं। इसके बावजूद मुर्गे का गोश्त काटा व बेचा जा रहा हैं। बड़े-बड़े होटलों में सप्लाई भी धड़ल्ले से हो रही हैं।
सारी कार्यवाहियां भैंस काटने वालों पर हुई हैं। गोश्त कारोबारियों का कहना हैं कि पुश्तैनी धंधे पर रोक लगा कर प्रदेश सरकार ने हम लोगों के साथ नाइंसाफी की है। स्लाटर हाउस न बनाकर नगर निगम अपने दायित्व के प्रति संवेदनहीनता दिखा रहा है।
कारोबारियों का कहना हैं कि सन् 2001 में जब स्लाटर हाउस बंद किया गया। वर्ष 2002  से आज तक लोगों के लाइसेंस का नवीनीकरण नहीं किया गया। प्रदेश सरकार ने अवैध स्लाटर हाउस पर रोक लगाई हुई है। अगर सरकार को कार्यवाही करनी थीं तो वैकल्पिक व्यवस्था तो पहले करनी चाहिए थी। स्लाटर हाउस खोल कर वैध लाइसेंस उपलब्ध करवाना चाहिए। शहर में बड़े जानवर की करीब डेढ़ सौ तो वहीं बकरे की करीब साढ़े छह सौ से अधिक दुकानें हैं वहीं मुर्गे की तीन हजार से अधिक दुकानें संचालित होती हैं। भैंस का गोश्त बेचने वाले होटलों का भी कारोबार मंदा पड़ा है। परेशानियों के मद्देनजर भैंस के गोश्त के कारोबारियों ने हाईकोर्ट में रिट दाखिल किया हुआ है जिसकी सुनवाई चल रही है.
दो महीने पहले अलकुरैश कल्याण समिति तुर्कमानपुर ने डीेएम कार्यालय पर प्रदर्शन कर मांगपत्र सौंपा था और मांग की था कि आधुनिक स्लाटर हाउस जल्द खोला जाए और लाइसेंस का नवीनीकरण किया जाए. मांगपत्र में कहा गया था कि कुरैशी विरादरी के लोग सदियों से भैंस-भैंसा का गोश्त  नियमानुसार प्राप्त लाइसेंस के आधार बेचते थे और पाने परिवार की जीविका चलते थे.
मांग पत्र में कहा गया था कि हमारे खाने-पीने और आजीविका के मौलिक अधिकार का हनन किया जा रहा है. हजारों की संख्या में कुरैशी भुखमरी के कगार पर पहुँच गए हैं लेकिन हमारी कोई सुनवाई नहीं हो रही है.
गोरखपुर न्यूज़ लाइन और चलचित्र अभियान ने दो मई को तुर्कमानपुर में जाकर कुरैशी विरादरी के लोगों से बातचीत की जिसे आप यहाँ देख -सुन सकते हैं.

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