जीएनएल स्पेशललोकसभा चुनाव 2019

निषाद पार्टी की पालिटिक्स क्या है

लोकसभा चुनाव का बिगुल बजते ही  निषाद पार्टी एक बार फिर चर्चा में है. निषाद पार्टी के अध्यक्ष डॉ संजय निषाद के महराजगंज संसदीय सीट से चुनाव लड़ने जा रहे हैं . इसी बीच निषाद पार्टी ने 7 मार्च को आरक्षण के मुद्दे पर गोरखपुर में रैली करने का ऐलान किया है.

आरक्षण के मुद्दे पर निषाद पार्टी दिसम्बर 2018 से ही आन्दोलन कर रही है. अंदोलन के दौरान गाजीपुर में प्रदर्शन के दौरान झड़प में एक सिपाही की मौत हो गई थी.

निषाद वंशीय जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल कर उन्हें आरक्षण देने की मांग को लेकर निषाद पार्टी द्वारा किए जा रहे आंदोलन के दौरान तीन वर्ष में यह दूसरी घटना थी  जिसमें हिंसा हुई । इसके पहले 7 जून 2015 को आरक्षण की मांग को लेकर गोरखपुर के कसरवल में रेल ट्रेक जाम करने के दौरान पुलिस फायरिंग में अखिलेश निषाद नाम के एक युवक की मौत हो गई थी। तब भीड़ ने कई वाहनों में तोड़-फोड़ की थी और उसे आग के हवाले कर दिया था।

डॉ संजय कुमार निषाद

उस समय समाजवादी पार्टी की सरकार थी। अखिलेश सरकार ने इस घटना पर सख्ती की और डा संजय कुमार निषाद सहित तीन दर्जन लोगों पर मुकदमा दर्ज किया। डा संजय भूमिगत हो गए लेकिन अन्य लोग गिरफ्तार हुए और जेल गए। बाद में डा. संजय ने सरेंडर किया और जमानत पर रिहा हुए।
इस घटना से उन्हें काफी चर्चा मिली। इस शोहरत को उन्होंने निषाद पार्टी ( निर्बल इंडियन शोषित हमारा आम दल ) को मजबूत बनाने में उपयोग किया। गांव-गावं निषाद पार्टी का संगठन बनाया। महिलाओं और युवाओं को विशेष रूप से जोड़ा गया। मैरून टोपी और झंडा पार्टी की पहचान बनी।

कार्यकर्ताओं को बाकायदा प्रशिक्षण दिया गया और उन्होंने  ‘निषादों का इतिहास ‘,  ‘ निषाद संस्कृति ’ और ‘ निषाद सभ्यता ’ के बारे में बताया गया। डा. संजय ने खुद एक पुस्तिका ‘ निषादों का इतिहास ’ लिखी है। उनकी एक दूसरी किताब भारत का ‘ असली मालिक कौन ‘ है।

निषादों की मांग क्या है

निषाद पार्टी की मुख्य मांग है कि निषाद वंशीय जातियों को अनुसचित जाति में शामिल किया कर आरक्षण दिया जाए. अभी निषाद वंशीय दो जातियां मझवार और तुरैहा देश के अनुसूचित जातियों की सूची में हैं लेकिन मझवार और तुरैहा की पर्यायवाची, वंशानुगत या उपजातियां ओबीसी में शामिल हैं. डा. संजय कुमार निषाद के अनुसार केवट, माझी, मल्लाह, मुजाबिर, राजगौड़, गोंड़ आदि मझवार की पर्यायवाची जाति हैं जबकि गोड़िया, धुरिया, कहार, रायकवार, बाथम, रैकवार, सोरहिया, पठारी, धीवर, धीमर, तुरैहा की समकक्षी या पर्यायवाची जातियां है. वर्ष 1992 के पहले इन सभी जातियां को अनुसूचित जाति का प्रमाण पत्र जारी किया जाता था लेकिन इसके बाद विसंगति तब सामने आयी जब मझवार व तुरैहा की समकक्षी, पर्यायवाची जातियों को ओबीसी में रखा दिया गया। इससे निषाद वंशीय सभी जातियों का आरक्षण का लाभ मिलना बंद हो गया.

डाॅ. संजय कुमार निषाद के अनुसार हम तभी से यह लड़ाई लड़ रहे हैं कि मछुआरों की पर्यायवाची जातियों को परिभाषित करते हुए उन्हें अनुसूचित जाति में शामिल कर आरक्षण दिया जाए.

उत्तर प्रदेश सरकार ने 22 दिसम्बर 2016 को 17 पिछड़ी जातियों -कहार, कश्यप, केवट, मल्लाह, निषाद, कुम्हार, प्रजापति, धीवर, बिन्द, भर, राजभर, धीमर, बाथम, तुरहा, गोड़िया, मांझी तथा मझुआ को अनुसूचित जाति के रूप में परिभाषित करने का शासनादेश जारी किया. इस शासनादेश को प्रदेश के सभी कमिश्नर और डीएम को भेजा गया. इसके बाद 31 दिसम्बर को उत्तर प्रदेश लोक सेवा ( अनुसूचित जातियां, अनुसूचित जन जातियां और अन्य पिछड़े वर्ग के लिए आरक्षण अधिनियम 1994 उत्तर प्रदेश अधिनियम संख्या -4 सन 1994 ) में संशोधन कर उक्त जातियों को अनुसूचित जातियों की प्रसुविधा पाने का अधिकार देते हुए नोटिफिकेशन जारी किया गया. प्रदेश सरकार के कार्मिक विभाग की ओर से भी 12 जनवरी को यह शासनादेश जारी किया गया.

प्रदेश सरकार की इस अधिसूचना के खिलाफ कुछ लोग हाईकोर्ट में चले गए और हाईकोर्ट ने स्थगन आदेश दे दिया. मार्च 2017 में हाईकोर्ट ने स्थगन आदेश खत्म कर दिया. डाॅ संजय कुमार निषाद के अनुसार स्टे हट जाने के बाद भी निषाद वंशीय जातियों को अनुसूचित जाति का प्रमाण पत्र जारी नहीं किया जा रहा है. इस सम्बन्ध में प्रधानमंत्री को 2 अक्टूबर 2015 तथा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को 4 अप्रैल 2017 व एक मई 2017 को ज्ञापन दिया गया लेकिन सरकार उनकी मांगों की अनदेखी कर रही है.
डा. संजय कहते हैं कि देश के 14 राज्यों में निषाद वंशीय जातियां, अनुसूचित जाति में शामिल हैं लेकिन उत्तर प्रदेश में हमारे साथ अन्याय हो रहा है. दिल्ली में मल्लाह एससी का आरक्षण पा रहा है लेकिन उत्तर प्रदेश में उसे अनुसूचित जाति का आरक्षण नहीं मिल रहा है. इस विसंगति को दूर नहीं किए जाने के कारण निषादों में आक्रोश है.

गोरखपुर के सांसद प्रवीण निषाद

योगी सरकार की ओबीसी जातियों को तीन भागों में बांटकर कोटा के अंदर कोटा दिए जाने की सोच के बारे में उनका कहना है कि वर्ष 2016 के शासनादेश के बाद निषाद अब ओबीसी में नहीं हैं। इसलिए अनुसूचित जाति और जनजाति का कोटा 32 से 36 फीसदी करते हुए निषाद वंशीय सभी जातियों को उसमें शामिल किया जाए और उन्हें आरक्षण दिया जाए. ऐसा छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में किया गया है. निषादों को संवैधानिक आरक्षण चाहिए, भगवान वाला नहीं.

डा संजय का कहना है कि निषादों में इस बात से भी अक्रोश है कि उनकी रोजी-रोटी छीनी जा रही है. बालू घाटों से निषादों को बेदखल कर भाजपा के लोग काबिज हो गए हैं. नदी घाटों खासकर पर्यटन स्थनों में ऐसे नियम व कानून बना दिए गए हैं कि नाविकों को काम छिन रहा है. गंगा नदी को साफ करने के नाम पर नदी के किनारें के गांवों को उजाड़ा जा रहा है जिससे सबसे अधिक प्रभावित निषाद समुदाय ही है.

मछुआ एस.सी. आरक्षण हुंकार जन आक्रोश यात्रा

निषाद पार्टी ने आरक्षण, आजीविका के साधनों पर अधिकार आदि मुद्दों को लेकर 20 दिसम्बर से इलाहाबाद से मछुआ एस.सी. आरक्षण हुंकार जन आक्रोश यात्रा शुरू की थी. यह यात्रा 20 दिसम्बर से शुरू हुई थी. यह यात्रा पूर्वांचल के जिलों-जौनपुर, सोनभद्र, चंदौली, वाराणसी, प्रतापगढ़, सुल्तानपुर, अम्बेडकरनगर, आजमगढ़, संतकबीरनगर, सिद्धार्थनगर आदि जिलों से गुजर रही थी कि गाजीपुर में हिंसा की घटना हो गई. यात्रा के पहले चरण का समापन 3 जनवरी को गोरखपुर में रैली के रूप में होना था लेकिन रैली की अनुमति नहीं मिलने के कारण हर जिले में विरोध प्रदर्शन व ज्ञापन देने के कार्यक्रम किया गया.

निषाद पार्टी की ताकत

निषाद पार्टी ने अपनी ताकत का पहला सार्वजनिक प्रदर्शन गोरखपुर में 25 जुलाई 2016 में किया था. निषाद पार्टी ने फूलन देवी की शहादत दिवस पर उनकी 30 फीट उंची प्रतिमा लगाने की मांग को लेकर गोरखपुर के चम्पा देवी पार्क में विशाल रैली की थी. रैली में 25 हजार से अधिक लोग जुटे थे. पूरा मैदान मैरून टोपी और झंडे से पट गया और ‘ जय निषाद राज ’ के नारे से गुंजायमान हो गया था.

2017 के चुनाव में निषाद पार्टी ने पीस पार्टी के साथ गठबंधन किया और 72 स्थानों पर चुनाव लड़ा. निषाद पार्टी सिर्फ एक सीट ज्ञानपुर जीत पाई. यहां पर बाहुबली नेता विजय मिश्रा विजयी हुए लेकिन जीतने के बाद वह निषाद पार्टी के साथ नजर नहीं आए. अब वह बीजेपी साथ हो गए हैं. निषाद पार्टी ने उन्हें पार्टी से निष्कासित कर दिया है.

निषाद पार्टी को 2017 के विधानसभा चुनावों में 5,40,539 वोट मिले। कई सीटों-पनियरा, कैम्पियरगंज, सहजनवा, खजनी, तमकुहीराज, भदोही, चंदौली में उसे दस हजार से अधिक वोट मिले. डा. संजय कुमार निषाद गोरखपुर ग्रामीण सीट से चुनाव लड़े लेकिन 34,869 वोट पाकर हार गए. यह चुनाव तो वह नहीं जीत पाए लेकिन मार्च 2017 में गोरखपुर संसदीय सीट के उपचुनाव में सपा से अपने बेटे प्रवीण निषाद को चुनाव लड़ाकर उन्हें जिता कर इतिहास बना दिया.

निषाद पार्टी की एक रैली (फाइल फोटो )

डाॅ संजय कुमार निषाद का दावा है कि यूपी में निषाद वंशीय 17 फीसदी हैं और वे 225 विधानसभा सीटों पर प्रभावशाली स्थिति में हैं. इसमें  से 134 सीटों में से हर सीट पर निषाद 70 हजार से अधिक मतदाता है. इसी तरह 80 विधानसभाओं में वे 50-50 हजार हैं. ऐसी कोई विधानसभा नहीं है जहां वह 15 हजार से अधिक मतदाता न हों। गंगा, यमुना और राप्ती नदी के तटों पर निषादों की सघन आबादी है.

कौन हैं डा संजय कुमार निषाद

वर्ष 2013 में निषाद पार्टी बनाने वाले डा संजय कुमार निषाद एक दशक पहले तक गोरखपुर के गीता वाटिका रोड पर अपनी इलेक्ट्रो होम्योपैथी की क्लीनिक चलाते थे. इस चिकित्सा विधि में माना जाता है कि लिम्फ और ब्लड सिस्टम में बाधा आने से बीमारी होती है जिसका इलाज पौधों से प्राप्त माइक्रो या मिनिरल साल्टस से बनी दवाई से की जा सकती है. डा. संजय क्लीनिक चलाने के साथ’-साथ इलेक्ट्रो होम्योपैथी को मान्यता दिलाने के लिए भी संघर्ष करते रहे. उन्होंने 2002 में पूर्वांचल मेडिकल इलेक्ट्रो होम्योपैथी एसोसिएशन का गठन  किया. वह इसके अध्यक्ष बने. इस विधा को मान्यता दिलाने के लिए वह सुप्रीम कोर्ट भी गए.

वह राजनीति में दो दशक से सक्रिय रहे हैं. वह सबसे पहले बामसेफ से जुड़े. वह कैम्पियरंगज विधानसभा से एक बार चुनाव भी लड़ चुके हैं लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली. इसके बाद वह अपनी जाति की राजनीति से जुट गए. वर्ष 2008 में उन्होंने ऑल इंडिया बैकवर्ड एंड माइनॉरिटी वेलफेयर मिशन और शक्ति मुक्ति महासंग्राम नाम के दो संगठन बनाए.

उन्होंने निषाद पार्टी के पहले राष्ट्रीय निषाद एकता परिषद बनायी और बतौर राष्ट्रीय अध्यक्ष निषादों की विभिन्न उपजातियों को एक करने का प्रयास किया. उन्होंने ‘ मछुआ समुदाय की 553 जातियों को एक मंच पर लाने ’ की मुहिम शुरू की. उन्होंने निषादों को बताया कि निषाद वंशीय समुदाय की सभी पर्यायवाची जातियों को एक मानते हुए अनुसूचित जाति में शामिल करने पर समाज का फायदा होगा.
निषादों का इतिहास में वह लिखते हैं-निषादों का इतिहास बहुत पुराना है. विश्व की सबसे प्राचीन ऋग्वेद में निषादों का उल्लेख है. रामायण और महाभारत में कई-कई बार निषादों का उल्लेख है. महर्षि बाल्मीकि ने जो पहला श्लोक लिखा है, उसमें निषाद शब्द आया है. महाभारत के रचयिता महर्षि वेद व्यास भी एक महान महर्षि निषाद थे. महाभारत में निषाद देश के राजा वीरसेन के पुत्र नल दमयंती पर अनेक महा काव्य लिखा गया है. ’

डा. संजय लिखते हैं कि ‘ वह निषादों का इतिहास इसलिए प्रस्तुत कर रहे हैं ताकि अतीत का स्मरण दिलाकर वर्तमान में इन्हें संगठित करके एक सशक्त वर्ग के रूप में ला सकें जिससे व्यवस्था एवं राजनैतिक परिवर्तन हो सके. ’

गोरखपुर में निषादों का प्रदर्शन (फाइल फोटो)

वह कहते हैं -निषादों का इतिहास सम्पूर्ण जगत के इतिहास का सार है. निषादों का इतिहास किसी जाति का इतिहास नहीं हैं. निषादों का इतिहास आदि मानव का इतिहास है. निषादों का इतिहास उस आदि संस्कृति का इतिहास है जब मानव ने स्थायी आवास बनाकर रहना सीखा था. निषादों का इतिहास हमारी सभ्यता का प्रारम्भिक इतिहास है. वह यह भी कहते हैं कि सिन्धु सभ्यता के निर्माता ‘‘ आद्य निषाद ’’ थे.  आदिम अग्नेय वंशी लोग निषाद ही भारत वर्ष के सच्चे आदिवासी जनजाति हैं.

उन्होंने ‘ भारत का असली मालिक कौन ’ में लिखा कि निषाद वंश में अनेक राजा-महराजा थे. हम राज वंश कुल के हैं.  हमारे महाराजा गुह्राज निषाद का वैभवशाली किला इलाहाबाद के ऋंग्वेरपुर में मौजूद है. बुद्ध काल में कोलियों निषादों की राजधानी रामग्राम ( वर्तमान में गोरखपुर का रामगढ़ ) और मछेन्द्रनाथ ( मत्स्येन्द्रनाथ ) का गोरखपुर मंदिर, गोरखपुर में है. ’

उन्होंने ने इस किताब में कहा -निषादों ने ही कुदाल और छड़ी बनाकर उससे खोद कर झूम प्रणाली से खेती करने की विधि का अविष्कार किया. ’

डा संजय के अनुसार निषादों ने कभी भी गुलामी नहीं की और मनु स्मृति के सिद्धान्त को स्वीकार नहीं किया. वे पंचम वर्ण निषाद के रूप में रहे. निषादों ने अंग्रेजों से लड़ते हुए शहादत दी. इनमें तिलका मांझी, सिद्धों माझी, झूरी बिन्द, मौकू एवं भीमा केवट, लक्ष्मी बाई के तोपची शंकर, भवानी, जुब्बा साहनी, माती कश्यम, अवन्ती बाई लोधी, समाधान निषाद, लोचन निषाद, महादेव केवट, नेवास कुमार मांझी आदि के नाम उल्लेखनीय है. उनके अनुसार अंग्रोजों से लोहा लेने के कारण ही निषादों पर क्रिमिनल टाइब्स एक्ट 1871 लगाया और उन्हें प्रताड़ित किया. इस कारण पूरे देश में निषाद लोग अलग-अलग प्रदेशों में अलग उपजातियों के नाम से बिखर गए।

डा संजय आरएसएस, भाजपा और हिन्दू युवा वाहिनी पर हमेशा से बहुत आक्रामक रहे हैं। वह आरएसएस और हिन्दू युवा वाहिनी को समाजद्रोही संगठन कहते हैं तो भाजपा को ‘ भारत जलाओ पार्टी ’. वह गोरखपुर में रहते हुए उन चंद लोगों में हैं जिन्होंने हिन्दू युवा वाहिनी के लिए सख्त शब्दों को प्रयोग करने का साहस किया। उन्होंने 2017 में पत्रकार वार्ता कर हिन्दू युवा वाहिनी को दंगा करने वाला और मुसलमानों, दलितों, अति पिछड़ों व निषादों पर अत्याचार करने वाला ‘ संगठित गिरोह ’ कहा था।

वह हमेशा से गोरखपुर के गोरक्ष पीठ को निषादों का बताते रहे हैं. उनका कहना है कि ‘ गोरक्ष पीठ को निषाद वंश के घीवर परिवार में जन्में महाराजा मत्स्येन्द्र नाथ ने स्थापित किया था जिस पर बाद में मनुवादियों ने कब्जा कर लिया. ’ वह निषाद सहित दलितों, पिछड़ों को भारत का मूल निवासी बताते हैं और कहते हैं कि भारत के मूल निवासियों को पीढ़ी दर पीढ़ी गुलाम बनाए रखने की साजिश और मानसिकता का नाम ही मनुवाद है.

डा संजय हमेशा कोट-टाई पहने रैलियों और सभाओं में देखे जाते हैं और विशेष अंदाज में हाथ हिलाते हुए अपने को निषाद समाज के मसीहा के रूप में प्रस्तुत करते हैं. उनके समर्थक उन्हें ‘ महामना ’ सम्बोधित करते हैं। पार्टी कार्यकर्ता और समर्थक सोशल मीडिया पर दर्जनों व्हाट्सअप ग्रुप चलाते हैं. एकलव्य मानव संदेश न्यूज नाम से वेबसाइट और यूट्यूब चैनल चलाया जाता है जिस पर निषाद समाज की खबरें और डा. संजय निषाद के ‘ संदेश ’ प्रसारित होते हैं. गायक दरोगा जुल्मी निषाद ने निषाद पार्टी के लिए तमाम गीत लिखे और गाए हैं.  इसमें से एक है-डा.संजय निषाद के बतिया दिल में बइठायेंगे, अबकी बार अपनी पार्टी निषाद को जिताएंगे। उनका दूसरा गाना निषाद पार्टी की महत्वाकांक्षा का व्यक्त करता है-‘ बनी एक दिन आपन सरकार, करत रह आपन प्रचार। ’

डा. संजय के आफिस में निषाद समाज के जिन पुरखों की तस्वीर लगी है, उसमें वास्कोडिगामा और कोलम्बस भी हैं। वह कहते हैं कि ये दोनों नाविक थे, इसलिए निषाद वंशीय हैं। हमारा समुदाय अंतराष्ट्रीय है। समुद्र, नदी, पोखरों पर जिनकी भी आजीविका और गतिविधि हैं, वह सब निषाद वंशीय हैं।

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