साहित्य - संस्कृति

गोरख की कविता मुक्ति स्वप्न की कविता है- अवधेश

इलाहाबाद में गोरख स्मृति दिवस

इलाहाबाद , 31 जनवरी .

परिवेश और जन संस्कृति मंच की ओर से इलाहाबाद छात्र संघ भवन में 29 जनवरी को जन कवि गोरख पांडेय की पुण्यतिथि के  मौक़े पर ‘ गोरख स्मृति दिवस ’  का आयोजन हुआ। आयोजन दो सत्रों में बँटा हुआ था। पहला सत्र था ‘ कविता के सामाजिक सरोकार ’ और दूसरा सत्र था- काव्य गोष्ठी ।  जसम संयोजक अंशुमान कुशवाहा और परिवेश संयोजक विष्णु प्रभाकर ने अतिथियों का स्वागत किया। गोरख के एक गीत ‘ समाजवाद बबुवा धीरे धीरे आयी ’ के गायन के साथ ही ‘ परिवेश ’ पत्रिका के गोरख केन्द्रित प्रवेशांक का विमोचन हुआ जिसके सम्पादक विष्णु प्रभाकर हैं।

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विमोचन में गोरख के मित्र और जनमत के सम्पादक रामजी राय, जसम महासचिव मनोज सिंह, प्रसिद्ध मानवाधिकार कर्मी ओडी सिंह, ऐक्टू के सचिव डॉक्टर कमल, कवि पंकज चतुर्वेदी, दिल्ली विश्वविद्यालय की अध्यापिका उमा राग आदि शामिल थे।

पहले सत्र ‘कविता का सामाजिक सरोकार’ में गोरख के कविता-संसार पर बात करते हुए युवा आलोचक अवधेश त्रिपाठी ने कहा कि गोरख की कविताओं में स्वप्न और स्मृति का संसार है। उनके स्वप्न मुक्ति के स्वप्न हैं। गोरख की कविता के स्रोतों की ओर इशारा करते हुए उन्होंने गोरख को ग़ालिब और कबीर की परम्परा का कवि बताया। उन्होंने कहा कि गोरख लोक का अंधानुकरण नहीं करते, वे उसका सचेत इस्तेमाल करते हैं। उन्होंने कहा कि गोरख की कविता का तीसरा स्रोत भोजपुर का महान किसान आंदोलन है जिसने न सिर्फ़ उनमें बल्कि उस दौर के दूसरे कवियों में भी मुक्ति का स्वप्न जगाया था।

जन संस्कृति मंच के महासचिव मनोज सिंह ने आज के दौर में गोरखकी कविता की प्रासंगिकता को रेखांकित करते हुए कहा कि उन्हें पढ़ते हुए भारत के उस जटिल तंत्र को समझा जा सकता है जो पैसे और सामंती, दोनों तरीक़ों से इस मुल्क के ग़रीब-गुर्बा, दलित, महिला, किसान जैसे कमज़ोर तबक़ों का शोषण करता है। गोरख के गीत “पैसे की बाँहें हज़ार, अजी पैसे की’ व ‘सूरज झोपड़ियों में चमकेगा’ जैसे गीत-पंक्तियों का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि गोरख सिर्फ़ दमन ही नहीं, उससे मुक्ति का  सटीक रास्ता बताने वाले कवि हैं। उनके मुताबिक़ गोरख शोषित तबक़ों की एकजुटता के रास्ते मुक्ति की राह पर बढ़ते हैं, एक ऐसी दुनिया की ओर जहाँ ‘बैरी पइसवा क रजवा’ मिट जाएगा और ‘नाहीं केहू ऊँच नीच नाहीं कहू के बा डर नाहीं केहू भा भयावन’ का सपना पूरा होगा।

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इस सत्र के अध्यक्षता गोरख जी के मित्र और जनांदोलनों से गहरे जुड़े नेता मोती प्रधान ने की। मोती जी ने कहा कि  आज के साम्प्रदायिक-फ़ासीवादी उन्माद के दौर में गोरख युवाओं के लिए बेहद ज़रूरी हैं। संघर्ष के रास्ते ही इस निज़ाम से मुक्ति मिल सकती है, यह बात रेखांकित करते हुए मोती जी ने गोरख की स्मृति में एक गीत पढ़ा। सत्र का संचालन सौरभ ने किया।

कविता सत्र की शुरुआत युवा कवि प्रदीप ने की । प्रदीप की छोटी छोटी कविताएँ श्रोताओं को गहरे बेध गईं। ‘जो अभिनय नहीं कर पाएगा/वह देशद्रोही कहलाएगा’ और ‘बारिश में भीगती स्त्री सिर्फ़ देह है’ जैसी काव्य पंक्तियों के साथ  प्रदीप की कविताएँ हमारे विडंबनात्मक समय को गहराई से समझती हैं। ‘मगध’ और ‘पुल’ जैसी कविताएँ श्रोताओं द्वारा ख़ूब पसंद की गयीं। बनारस से आए युवा कवि विहाग वैभव की कविताएँ इस अंधेरे समय की त्रासदियों को उनके गहरे रंगों में उकेरती हैं। ‘मृत्यु और सृजन के बीच प्रेमिका’ कविता ने दमन के समय में प्रेम की ताक़त को रेखांकित किया। युवा कवि मृत्युंजय ने ‘शहादत इस फलक के बीच चमचमाती है’ और ‘नश्वर थी सुंदरता’ कविताएँ सुनाईं जिनमें समय की पहचान है। युवा कवि पंकज चतुर्वेदी ने ‘काजू की रोटी’, ऐसा सौंदर्य सह्य नहीं’, ‘पूछो राष्ट्र निर्माताओं से’ जैसी कविताओं के माध्यम से वर्तमान राजनीतिक सत्ता और बाज़ार का प्रतिरोध दर्ज किया। ‘सबसे ज़्यादा संदिग्ध हैं आदिवासी ग़रीब और अल्पसंख्यक’ जैसी पंक्तियों से बनी और गहरे व्यंग्य बोध से रची ये कविताएँ सांस्कृतिक राजनीति में हो रही भयावह गिरावटों और उसके प्रतिरोध को भी दर्ज करती हैं। दिल्ली से आए अवधी-हिंदी के युवा कवि बृजेश यादव ने छंद और छंदमुक्त दोनों तरह की कवितायें सुनाकर काव्य गोष्ठी में नए रंग भरे। गोरख का एक गीत सुनाते हुए उन्होंने गोरख को याद किया। सामंती शोषण और पूँजीवादी दमन को बेपर्दा करते हुए बृजेश ने तमाम लोक-धुनों में कविता सुनाते हुए वर्तमान राजनीतिक दौर की हक़ीक़तों को उघाड़ा।

इस सत्र की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ कवि राजेंद्र कुमार ने तीन ऊर्दू ग़ज़लें सुनाईं जिनमें न सिर्फ़ उन्होंने नौजवानों के नाम अपनी वसीयत सुनाई बल्कि अपने समय की चुनौतियों को स्वीकार करने और उनसे जूझने का हौसला भी दिया। ‘पाओगे हर जगह कहाँ कहाँ नहीं हूँ में/शुरुआत सरापा हूँ ख़ात्मा नहीं हूँ मैं’ जैसी पंक्तियों ने श्रोताओं को मगध कर लिया। धन्यवाद ज्ञापन कथा के सम्पादक दुर्गा सिंह ने किया।

कार्यक्रम में वरिष्ठ साहित्यकार आनंद मालवीय, हरीशचंद्र अग्रवाल, उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता व गोरख के मित्र उमेश नारायण शर्मा, अरविंद बिंदु , सूर्यनारायण , विवेक तिवारी , नंदिता अदावल समेत सैकड़ों की संख्या में युवा रचनाकारों और छात्र-छात्राओं की प्रेरणादायी मौजूदगी रही। हॉल के बाहर कविता पोस्टर प्रदर्शनी व किताबों की स्टॉल भी लगी थी।

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