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बालू खनन से मिलने वाला 7.5 करोड़ का राजस्व बड़ा है कि 36 गांव और एक लाख लोगों की जिन्दगी

बड़ी गंडक नदी से बालू खनन का पट्टा रद करने के लिए 19 दिन से आन्दोलन कर रहे कांग्रेस विधायक का सरकार से सवाल  

तमकुहीराज (कुशीनगर), 21 जनवरी. कांग्रेस विधानमंडल दल के नेता एवं तमकुही के विधायक अजय कुमार लल्लू ने आरोप लगाया है कि एपी तटबंध के पास बड़ी गंडक नदी में बालू खनन की अनुमति देकर भाजपा सरकार ने महज साढे सात करोड़ के राजस्व के लिए 36 गांवो की 1 लाख की आबादी के जीवन का सौदा कर लिया है. उन्होंने कहा कि अवैध  ढंग से की गयी लीज को जिलाधिकारी सही साबित करने में लगे हैं. उन्होने जिलाधिकारी को तानाशाही पूर्ण रवैये में बदलाव करने की चेतावनी दी.

कांग्रेस विधायक आज बालू खनन के विरोध में चल रहे अनशन के 19 वें दिन धरन स्थल पर मीडिया से बात कर रहे थे. उन्होंने बालू खनन के लीज को लेकर जिलाधिकारी के रूख पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि बाढ़, तटबंध और जल संसाधन से जुड़े मामलों के लिए अलग से ही विभाग का गठन किया गया है जो तटबंधों की की देखरेख, सुरक्षा और मरम्मत के लिए कार्य करता है. इस मामले से जुड़े विभाग के आला अधिकारियों प्रमुख अभियंता (अनुसंधान एवं नियोजन) बाढ, सिंचाई एवं जल संसाधन विभाग उत्तरप्रदेश, मुख्य अभियंता (गण्डक), सिंचाई एवं जल संसाधन विभाग, उ.प्र. गोरखपुर और अधिशासी अभियंता, बाढ़ खण्ड कुशीनगर के बालू खनन से तटबंध पर खतरे की आशंका के रिपोर्ट दी है और बालू खनन को रोकने का अनुरोध किया है. इसको दरकिनार करते हुए बालू खनन की वैद्यता का जायज ठहराने की कोशिश साबित करता है कि जिलाधिकारी की मंशा  जनता की सेवा और हित के लिए नहीं है बल्कि वह माफियाओं व राजनेताओं के सांठ गांठ से की गयी अवैध बालू खनन को सही ठहराने की है। जो विभाग इसके लिए जवाबदेह है, उसकी राय तक नहीं ली गयी और आनन फानन में बालू खनन का लीज कर दिया गया। इसलिए जिलाधिकारी अपने तानाशाही पूर्ण रवैये में बदलाव करे।

 उन्होनें कहा कि बालू खनन के तीन लीज से सरकार को महज सात करोड़ पैंतालीस लाख अठठाइस हजार चार सौ साठ रूपये का राजस्व मिलेगा। इस तटबंध से 38 गांव और एक लाख की आबादी की सुरक्षा होती है। इस इलाके में एक आदमी की कीमत मात्र 750 रूपये और गांव की कीमत 20 लाख रूपये ही है, जिसके लिए सरकार और उसमें बैठे हुए लोग ग्रामीणों के जीवन और गांवों के अस्तित्व से समझौता कर रहे हैं, जो दुर्भाग्यपूर्ण और निंदनीय है।

 उन्होनें बताया कि गंडक नदी की तेजधारा में अंडर करंट सबसे अधिक होता है, बालू खनन से बांध टूटने की प्रबल संभावना है, जिससे 36 गांव और एक लाख की आबादी पर खतरा मंडरा रहा है। अहिरौलीदान पिपराघाट तटबंध इस प्रदेश में सबसे अधिक संवेदनषील तटबंधों में शुमार है जिसकी सुरक्षा और मरम्मत के लिए हर एक साल करोड़ो रूपये खर्च करना पड़ता है। 1958 में बना यह तटबंधा काफी पुराना और जर्जर हो गया है, इसके कारण गंडक की पानी से तटबंधे को 1984, 2002, 2007 और 2012 में बाढ़ की स्थिति बनी और ग्रामीणों को जान माल का नुकसान उठाना पड़ा था।

 उन्होने कहा कि सरकारी हीला हवाली और लीपा पोती से ही ग्रामीणों को बाढ़ का सामना करना पड़ता है। सरकार की नीतियों का खामियाजा ग्रामीण भुगतते है। सरकार ग्रामीणों के स्वावलम्बी और स्वाभिमानी जीवन पद्वति का नाश कर सरकारी योजनाओं के लिए लम्बी लाइन में खड़ा कराना चाहती है, ताकि लोग हाथ जोड़ कर नेताओं और अधिकारियों के आगे पीछे मंडरायें। इसिलिए जिलाधिकारी गंडक नदी के प्रवाह मुडने को प्राकृतिक आपदा बता रहे हैं।

 उन्होंने सभी राजनैतिक दलों, संगठनों, छात्रों, नवजवानों, किसान, मजदूर और व्यापारियों से अपील करते हुए कहा कि 36 गांवों के अस्तित्व और 1 लाख लोगों के जीवन की सुरक्षा के लिए बालू खनन के विरोध के लिए आंदोलन में सक्रिय भागीदारी निभायें। सभी लोग मिलजुलकर लड़ेंगे तो तटबंध, गावं और ग्रामीणों की सुरक्षा कर पायेंगे।

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