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अमरमणि त्रिपाठी परिवार के सियासी भविष्य पर लगा ग्रहण

मनोज कुमार सिंह , गोरखपुर 

पत्नी सारा की हत्या के आरोप में सीबीआई द्वारा बेटे अमनमणि त्रिपाठी के गिरफ्तार होने के बाद अमरमणि त्रिपाठी और उनके परिवार के सियासी भविष्य पर एक बार फिर ग्रहण लग गया है। करीब एक दशक से इस परिवार के सदस्य चुनावों में लगातार मात खा रहे हैं। सपा ने नौतनवा से अमनमणि को प्रत्याशी जरूर बना दिया था लेकिन अब उनके जेल जाने के बाद से टिकट कटने की भी प्रबल संभावना है क्योंकि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव पहले से ही उन्हें टिकट देने के पक्ष में नहीं थे और अमन मणि को टिकट दिए जाने से सपा की आलोचना भी हो रही थी।

आज अमन मणि अपने पिता के इतिहास को दुहराते नजर आ रहे हैं। उनके पिता कवयित्री मधुमिता शुक्ल की हत्या में गिरफ्तार हुए और अदालता से सजा भी पायी। अब उनके साथ उसी तरह की घटनाएं घट रही हैं। अमरमणि जेल में रहते हुए भी 2007 का विधानसभा चुनाव जीत गए थे लेकिन यह करिश्मा अमनमणि भी कर पाएंगे, कहना बहुत मुश्किल है।

अमरमणि त्रिपाठी और उनके परिवार को मधुमितता हत्याकांड के बाद लगातार झटके पर झटके लग रहे हैं और उन्हें अपना सियासी रसूख बनाए रखने में दिक्कत हो रही है। मधुमिता हत्याकांड में जेल जाने के बाद 2009 लोकसभा का चुनाव में सपा ने अमर मणि के भाई अजीत मणि को टिकट दिया था लेकिन वह हार गए। इसके बाद 2012 में इस परिवार को बड़ा झटका तब लगा जब अमनमणि नौतनवां विधानसभा से चुनाव हार गए और उनके सबसे बड़े प्रति़द्वंदी पूर्व सांसद अखिलेश सिंह के भाई कौशल किशोर सिंह उर्फ मुन्ना सिंह चुनाव जीत गए। दो वर्ष बाद 2014 की लोकसभा में अमरमणि अपने परिवार के किसी सदस्य को लोकसभा चुनाव लड़ाना चाहते थे लेकिन इसमें भी उन्हें सफलता नहीं मिली। वर्ष 2015 में फरेन्दा विधानसभा के उपचुनाव में सपा ने उनके चाचा पूर्व मंत्री श्याम नारायण तिवारी को टिकट न दे उनके विरोधी विनोद मणि को दे दिया और वह जीत भी गए।

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एक तरफ सियासी जमीन पर यह परिवार मात पर मात खा रहा था तो उसी दौरान अमनमणि लगातार अपनी हरकतों के कारण सुर्खियों में आते रहे। पिछले वर्ष लखनउ में ठेकेदार ऋषि कुमार पांडेय के अपहरण व धमकी देने के मामले में उनके उपर मुकदमा दर्ज हुआ। कुछ दिन बाद ही नौ जुलाई 2015 को पत्नी सारा की फिरोजाबाद में एक संदिग्ध वाहन दुर्घटना में मौत हो गई। सारा की मां सीमा सिंह ने अमन मणि और उनके परिवार पर सारा की सुनियोजित हत्या का आरोप लगाया। उन्होंने इस घटना की सीबीआई जांच की मांग की। प्रदेश सरकार ने सीबीआई जांच की सिफारिश कर दी और अक्टूबर 2015 में ने केस दर्ज कर लिया। इसके पहले पुलिस ने उन्हें ठेकेदार ऋषि कुमार पांडेय के अपहरण व धमकी के मामले में गिरफ्तार किया और उन्हें जेल जाना पड़ा।

अमन मणि त्रिपाठी
अमन मणि त्रिपाठी

इसी दौरान अमरमणि त्रिपाठी के गोरखपुर स्थित उनके हाथ से जाने से बचा। इस जमीन पर अवैध कब्जे का आरोप था और मुकदमा चल रहा था। मुकदमें में अमरमणि हार गए और जमीन खाली कराने का आदेश हो गया। आवास बचाने के लिए आखिरी क्षणों में उन्होंने भाजपा से जुड़े एक ताकतवर नेता की मदद ली। आवास तो बच गया लेकिन उन्हें इसकी बाजार दर पर कीमत चुकानी पड़ी।

इसके बाद उन्हें नौतनवां स्थित एक भूमि पर कब्जा छोड़ना पड़ा। यह जमीन एक पूर्व सैन्य अधिकारी की है और इस पर कब्जे की शिकायत मुख्यमंत्री तक पहुंच गई थी।
फिर नौतनवां स्थित उनके कार्यालय से न्यायलय के आदेश से कब्जा हटा। इस कार्यालय से अमरमणि का कब्जा हटाया जाना अमरमणि की सियासी ताकत के कमजोर होते जाने की सबसे बड़ी सार्वजनिक घटना था।

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अमर मणि त्रिपाठी का नौतनवा स्थित कार्यालय जिसे 23 मई को हाई कोर्ट के आदेश से खाली कराया गया

नेपाल बार्डर से करीब 10 किलोमीटर पहले स्थित नौतनवां कस्बा में 23 मई को दुर्गा आयल मिल से कब्जा हटाने डीएम-एसपी सहित पीएसी, पुलिस और फायर ब्रिगेड के जवान तक आए क्योंकि हाईकोर्ट का सख्त आदेश था कि 11 बजे तक पूर्व मंत्री का कब्जा हटाकर बताया जाए। कब्जा हटाए जाने का अमरमणि समर्थकों द्वारा क्षीण विरोध हुआ जिसे पुलिस कर्मियों ने लाठी के जोर पर खदेड़ कर विफल कर दिया।
चार घंटे में इस भवन में पूर्व मंत्री का रखा सभी सामान जिसमें बेड, सोफा, एसी, कूलर सब थे नौतनवा नगर पालिका की दो कूड़ा गाडि़यां उठा ले गयी। कूड़ा गाड़ी में सामानों के साथ एक कैरम बोर्ड भी जो पूर्व मंत्री अमरमणि त्रिपाठी के कैरम खेलने के शौक को बता रहा था।

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यह दृश्य देख रहे एक व्यक्ति की उस वक्त टिप्पणी थी- ‘ समय-समय का फेर है। वह क्या दिन थे जब इसी जगह मंत्री जी का दरबार लगता था और एसडीएम, सीओ उनका आर्डर लेने के लिए खड़े रहते थे। आज समय ने पलटी खाई है। मंत्री जी जेल में हैं। उनकी ताकत के केन्द्र के रूप में यह कार्यालय खाली हो रहा है और उनका सामान नगर पालिका की कूड़ा गाड़ी से जा रहा है। ’
अमरमणि की नौतनवां में 80 के दशक में इन्ट्री हुई थी। तब उनकी पहचान बाहुबली नेता हरिशंकर तिवारी के गोल में रहने वाले एक नौजवान की थी। उस वक्त हरिशंकर तिवारी और दूसरे बाहुबली नेता वीरेन्द्र प्रताप शाही के बीच सियासी घमासान के साथ-साथ गैंगवार भी चल रहा थे और गोरखपुर व आस-पास के जनपद इसके चपेट में थे। अमरमणि ने पहला चुनाव भारतीय कम्युनिष्ट पार्टी से लड़ा लेकिन इसके बाद वह अपनी जरूरतों के मुताबिक कांग्रेस, बसपा, सपा में जाते-आते रहे। वर्ष 1980 में वह निर्दल चुनाव लड़े। वर्ष 1989 में वह कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ पहली बार विधायक बने लेकिन अगले दो चुनाव वह अपने घोर राजनीतिक विरोधी अखिलेश सिंह से हार गए लेकिन 1996 और 2002 विधानसभा का चुनाव वह फिर जीते। 1990 से 2003 तक उनकी सियासी ताकत में खूब इजाफा हुआ। इस दौरान उन पर तमाम जगह जमीन और मकान कब्जा करने के आरोप लगे। अपराधिक घटनाओं में भी उनका नाम बराबर आता रहा।
गोरखपुर स्थित आवास, नौतनवा स्थित दुर्गा आयल मिल और निचलौल क्षेत्र के कटया में खेती की जमीन उनके कब्जे को लेकर विवाद हुए।

नौतनवां के दुर्गा आयल मिल पर उन्होंने 1993 में कब्जा किया। यह आयल मिल पटना के एक बड़े व्यवयायी दुर्गा प्रसाद कमालिया की थी जिनका नेपाल, बिहार से लेकर झारखंड में बिजनेस था। 1988 में आयल मिल बंद हो गई थी लेकिन यहां पर मिल के कर्मचारी रहते थे। लोग बताते हैं कि अमरमणि इसी आयल मिल के सामने एक दुकान पर बैठा करते थे। तभी से उनकी नजर इस मिल पर थी। जब सत्ता हाथ में आई तो उन्होंने इसको अपने नाम रेट कन्ट्रोल एक्ट के तहत आवंटित करा लिया। आवंटन के लिए नियम कानून की ऐसी तैसी कर दी गई। रेट कन्ट्रोल एक्ट उस समय नौतनवां कस्बे में लागू नहीं था। दूसरा यह परिसर आवासीय नहीं कारखाने के रूप में दर्ज था। फिर भी इस परिसर के दो कमरे उन्हें आवंटित किए गए। अमरमणि ने दोनों कमरों के साथ-साथ पूरे परिसर को भी अपने कब्जे में ले लिया जिसमें राम जानकी मंदिर भी था। अब यहां उनका कार्यालय हो गया जहां अक्सर उनका दरबार लगता था।

अमरमणि के लिए 2003 तक अपने राजनीतिक जीवन के उत्कर्ष पर थे। बुरे दिनों की शुरूआत तब हुई जब कवयित्री मधुमिता शुक्ल की लखनउ में हत्या हुई। उस समय मधुमिता सात माह की गर्भवती थीं। हत्या में उनका नाम आया और मामले की जांच सीबीआई की सौंप दी गई। आखिरकार उन्हें दिसम्बर 2003 में गिरफतार होना पड़ा। देहरादूर की स्पेशल कोर्ट ने उन्हें, उनकी पत्नी मधु मणि और दो अन्य को मधुमिता की हत्या, षडयंत्र में दोषी पाया और आजीवन कारावास की सजा सुना दी। तभी से अमरमणि और उनकी पत्नी गोरखपुर जेल में हैं।
जेल में जाने के बाद भी उनके रौब में कोई कमी नहीं आई।
जेल में रहते हुए फोन के लगातार इस्तेमाल, जेल में दरबार लगाने की शिकायतें व चर्चाएं अक्सर सुनी जाती रहीं। वर्ष 2012 में सपा की सरकार बनने के बाद वह कथित रूप से बीमार पड़ गए और उन्होंने अपने को बीआरडी मेडिकल कालेज गोरखपुर के प्राइवेट वार्ड में भर्ती करा लिया। उनकी पत्नी भी यहीं भर्ती हो गईं। अब उनका दरबार यहां लगने लगा। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव वर्ष 2013 में मेडिकल कालेज के एक कार्यक्रम में आए तो जाते वक्त उनकी गाड़ी अचानक प्राइवेट वार्ड की तरफ मुड़ गई और उन्होंने वहां अमरमणि से भेंट की।
लेकिन 2015 में हाईकोर्ट के सख्त रूख के बाद उनके सहित कई अन्य प्रभावशाली कैदियों को जेल वापस आना पड़ा जो बीमारी का बहाना बना मेडिकल कालेज में भर्ती हो गए थे।
लगतार दो चुनावों में हार, नौतनवा के कार्यालय से कब्जा हटना और बेटे का कानूनी शिकंजे में फंसना और जेल जाने के बाद यह सवाल उठने लगा है कि आने वाले दिनों में अमरमणि परिवार अपना सियासी वजूद पूरी तरह खो देगा। यह कहने वालों की संख्या अब बढ़ती ही जा रही है कि उनकी हालत अब उस कूड़ा गाड़ी पर ले जाए गए कैरम बोर्ड की तरह है जिस पर खेलने के लिए उनके पास सफेद व काली गोटियां तक नहीं है। स्ट्राइकर तो उनके हाथ से पहले ही जा चुका है।

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