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मुख्यमंत्री जी ! आपने वो सारे तंत्र आजमा डाले जो अध्यापक को शर्मसार करे

( प्राथमिक विद्यालयों पर किए जा रहे प्रयोगों पर गोरखपुर की कवयित्री डॉ कुसुम मानसी द्विवेदी का मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को खुला खत )

योगी जी आपके लिए पाती….

सन्दर्भ:- अध्यापकों की मानहानि

सचिव ,गुरु अरु वैद जो प्रिय बोलहिं भय आस,
राज धर्म तन तीन कर होहि बेगिही नाश।।

हमें आपके सलाहकारों,दिशा निर्देशकों से घोर शिकायत है, कोई आपको कुछ सही न तो बताता है न सलाह देता है और आप भी गुजरात में बहुतायत संख्या में बंद किये गए स्कूलों की तर्ज पर मानसिकता वोटबैंक 2019 या और विशेषवर्ग को खुद में विश्वसनीयता पुष्ट करने हेतु बना रहे होंगे,पर क्या कभी सोचा की अगर इसी स्कूल को और बेहतर बनाएं जिससे अध्यापक और बच्चों दोनों का मन लगे ?? आपके कितने कर्मचारी हैं जो बिना बिजली ,साफ़ पानी,पंखें के रहते हैं ???

और तो और वाशरूम का उपयोग न तो बालिकाएं कर पाती हैं न बच्चे। इतनी कम मद का बाथरूम आपने किस कार्यालय को अबतक दिया है ??

आप शहर की तरह ,प्राइवेट स्कूलों सा व्यवस्थापन दे कर तो देखिये। बच्चों के बैठने के कमरे और कार्यालय दोनों ही रहने योग्य हों कुछ ऐसा कीजिये। तमाम स्कूलों के कमरे और कार्यालय कालकोठरी समान हैं न हवा न पानी न प्रकाश।

आपके कितने कर्मचारी किस किस विभाग के लोग हैं जो ps और ups अध्यापको की जिंदगी अपने ऑफिस में जीते हैं ????

सब स्कूलों की बॉउंड्री के साथ एक चपरासी भी रखिये देखभाल को, आपको पता है कहीं बॉउंड्री नहीं तो कहीं खेल का मैदान नहीं,और 4 दिन की छुट्टियों के बाद स्कूल की दीवारें गालियों से भरी होती हैं । ये आपके वो पत्रकार कभी नहीं बताएंगे जो 10 पास करके कैमरा माइक चरण छूकर पा गये और विद्द्यालय में टीचर से पूंछते हैं आप सिफारिश से आये या नकल से।

एक महिला पत्रकार बिना दुपट्टे के जूनियर विद्यालय में कूदती हुयी दाखिल होती है जहाँ संस्कार स्वरुप आपने जीन्स तक मना कर रखा है। अध्यापक का और महिला अध्यापिका का आदर्श स्वरुप नियमानुसार होता है। निवेदन है कि हमारे स्कूलो में भी वो प्रबुद्ध पत्रकार भेजिए जो डिवेट करते हैं जिन्हें भाषा का ज्ञान है।

आपका एक पैरोकार दूध पिलाती माँ की फोटो वायरल कर देता है वाह वाही लूटता है,माँ बनना कितना मुश्किल है आप क्या जानो ,बचपन की कुछ मुश्किल घटना को खुद से और माँ से जोड़कर देखिएगा जरूर समझ आएगा,एक गृह्स्थ महिला जो बच्चे की तबियत या अन्य किसी परिस्थिति में रात में न सो पायी तो दिन में काम पूरा करके सो गई पर जो उसके साथ कार्यरत भी है चौतरफा जिम्मेदारियों के निर्वहन में है पल भर को दूध् पिलाता तन शिथिल हो जाये तो ये बवंडर ?
अब विद्द्यालय में आपके सचिवालय, गन्ना संस्थान और तमाम कार्यालयों जैसे शयनकक्ष कार्यालय से लगे तो होते नहीं।

गांव का एक प्रधान भी अध्यापक को अनुपस्थित करने की चेतावनी देता है जिसकी हकीकत ये कि…

मसि कागद छुयो नहीं कलम गह्यो नहीं हाथ।।

लेखपाल से लेकर फ़ूड डिपार्टमेंट का छोटा कर्मचारी भी चेक करने आता है विद्द्यालय,आपने इस आदर्श को दरकिनार कर दिया कि…

गुरु गोविंद दोउ खड़े काके लागूं पांय।।

आपने वो सारे तंत्र आजमा डाले जो अध्यापक को शर्मसार करे।

हर विभाग में उसके अपने आला ऑफिसर चेक करने जाते हैं। यहाँ कोई भी मुंह उठाये आ जाता है कोई कहता है कि बच्चों की संख्या कम क्यों ? बच्चे रोज बुला के लाओ, तो कोई कहता है सुबह स्कूल आने से पहले बच्चों को बुलाने जाओ। और तो और कोई बिना हस्ताक्षर पहले बनाने के बजाय पढाने लगा तो भी सस्पेंड।  उसे मन से अपना कर्म धर्म स्वीकारने की ये सजा ?
आपकी दृष्टि में सारे दोष अध्यापको में हैं। इस मानहानि से तो अच्छा है कि आप सचिवालय में अध्यापकों से झाड़ू पोंछ ही लगवाइए तब शायद आत्मिक संतोष हो।
कोई आंकड़ा हो तो देखवा लीजियेगा जब से बीजेपी बनी मेरे घर के सारे वोट बीजेपी को गये और आपके इस पद पर आसीन होने की ख़ुशी अध्यापको में बेशुमार थी पर अब उतनी ही कुंठा ,निराशा और हताशा दी आपने। एक बड़ा वर्ग जो अध्यापकों का है उसने मुश्किलों का त्रिशूल समझकर चयन किया आप तो ह्रदय शूल साबित हो रहे।

मैं नहीं जानती इस लेख का दुष्परिणाम क्या होगा पर इतना जानती हूँ कि अधिकार न मिले तो अपने कर्तव्यों का हवाला देते हुए अधिकार माँगना चाहिए। मैं मन से लेखिका हूँ तो एक और बात है कि…

जो वक़्त की आंधी से खबरदार नहीं हैं ।
वो कुछ और ही होंगे कलमकार नहीं हैं।।

 

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