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इंसेफेलाइटिस: 38 वर्ष और एक अस्पताल में 9286 मौतें

बीआरडी मेडिकल कालेज में 1978 से अब तक 39100 इंसेफेलाइटिस मरीज भर्ती हुए, 9286 की मौत, शारीरिक और मानसिक रूप से विकलांग हुए बच्चों की संख्या भी हजारों में

मनोज कुमार सिंह

गोरखपुर, 7 सितम्बर। बीआरडी मेडिकल कालेज 38 वर्ष से इंसेफेलाइटिस से बड़ी संख्या में बच्चों की मौत को देखता आ रहा है। इस 38 वर्ष में यहां 39100 मरीज भर्ती हुए जिसमें से 9286 की मौत हो गई। इसमें 90 फीसदी बच्चे थे। भर्ती हुए मरीजों में से करीब एक तिहाई शारीरिक और मानिसिक विकलांगता के शिकार हुए हैं। इस दौरान मेडिकल कालेज ने केन्द्र और राज्य सरकार के तमाम मंत्रियों, विपक्षी नेताओं के दौरे देखे और उनके वादे सुने लेकिन इस बीमारी को समूल खत्म करना तो दूर इसके हमले को कम करने में भी कामयाबी हासिल नहीं हो सकी।
मेडिकल कालेज में भर्ती हुए मरीजों और उनकी मौतों से इंसेफेलाइटिस की भयावहता की पूरी तस्वीर नहीं बनती है। यह तस्वीर आइसवर्ग की तरह है कि जितनी उपर दिख रही है उससे कहीं ज्यादा नीचे है। इंसेफेलाइटिस से मेडिकल कालेज और जिला अस्पतालों में भर्ती मरीजों के बारे में आंकड़े तो उपलब्ध हैं लेकिन निजी अस्पतालों में इलाज के लिए कितने मरीज आए इसका कोई रिकार्ड नहीं है।

बीआरडी मेडिकल कालेज का इंसेफेलाईटिस वार्ड (फ़ाइल फोटो )
बीआरडी मेडिकल कालेज का इंसेफेलाईटिस वार्ड (फ़ाइल फोटो )

आज जब कांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी तीसरी बार बीआरडी मेडिकल कालेज आ रहे हैं, इंसेफेलाइटिस से बच्चों की मौत मीडिया में फिर से सुर्खियां बनी है। इस वर्ष इंसेफेलाइटिस का हमला पिछले कुछ वर्षों के मुकाबले ज्यादा तेज है लेकिन खबरें स्थानीय मीडिया तक ही सिमटी हैं। इस वर्ष छह सितम्बर तक इंसेफेलाइटिस के 888 मरीज भर्ती हुए जिसमें से 221 की मौत हो गई। इस महीेने के छह दिनों में 21 मरीजों की मौत हुई। अब तक यहां भर्ती हुए मरीजों की जांच में 68 जेई पाजिटिव यानि जापानी इंसेफेलाइटिस से पीडि़त पाए गए जिनमें से 22 की मौत भी हो गई। शेष मरीजों में अधिकतर अननोन विषाणुओं से संकमित हुए जिनकी खोज के लिए शोध चल रहे हैं। मोटे तौर माना जाता है कि एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिन्डोम यानि एईएस के मरीजों में 80 फीसदी इन्टेरो विषाणुओं से संक्रमित हुए जिनकी संख्या सैकड़ों में है। शेष 20 फीसदी में 10 फीसदी जापानी इंसेफेलाइटिस, दो से तीन फीसदी मेनिगो इंसेफेलाइटिस, एक से दो फीसदी ट्यूबक्यूलस मेनिनजाइटिस, एक से दो फीसदी दिमागी टाइफाइड, 0.3 फीसदी दिमागी मलेरिया, 0.1 फीसदी हरपीज विषाणु जनित इंसेफेलाइटिस है। कुछ मरीजों में स्क्रब टाइफस भी पाया गया है हालांकि इसकी दवा सभी मरीजों को दिए जाने का निर्देश दिया गया है।

BRD Medical college

इंसेफेलाइटिस की चपेट में आने के बाद एक तिहाई मरीज शारीरिक और मानसिक रूप से विकलांग हो जाते हैं। 38 वर्षों के दौरान इस बीमारी ने हजारों बच्चों को विकलांग किया। बीआरडी मेडिकल कालेज में बना प्रिवेंटिव मेडिसिन एंड रिहैबिलेटेशन विभाग में वर्ष 2015 में इंसेफेलाइटिस से शारीरिक व मानसिक रूप से विकलांग हुए 5750 मरीज इलाज के लिए आए। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि इंसेफेलाइटिस से विकलांग मरीजों की संख्या कितनी होगी।

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बीआरडी मेडिकल कालेज में गोरखपुर-बस्ती मंडल के सात जिलों के अलावा आजमगढ़, बलिया, मउ, बलरामपुर, बहराइच आदि जिलों से मरीज इलाज के लिए आते हैं। नेपाल और पश्चिमी बिहार से भी बड़ी संख्या में मरीज इलाज के लिए आते हैं। पिछले पांच वर्षों का आंकड़ा लें तो मेडिकल कालेज में हर वर्ष दो हजार से अधिक मरीज भर्ती हुए। जिला अस्पतालों और पीएचसी-सीएचसी पर बहुत कम मरीज इलाज के लिए आए। इस कारण मेडिकल कालेज पर ही इंसेफेलाइटिस मरीजों के इलाज की जिम्मेदारी है।

इन्सेफेलाइटिस मरीज

यहां पर 100 बेड का नया इंसेफेलाइटिस वार्ड बन जाने के बावजूद मरीजों के लिए बेड सहित अन्य संसाधानों की कमी हो रही है। इंसेफेलाइटिस के अलावा अन्य बीमारियों से ग्रसित बच्चे भी बड़ी संख्या में भर्ती होते हैं। जून से लेकर दिसम्बर तक अमूममन 350 से 400 बच्चे बाल रोग विभाग के अन्तर्गत भर्ती होते हैं लेकिन विभाग के पास चार वार्डों में सिर्फ 228 बेड ही उपलब्ध हैं। मेडिकल कालेज में इलाज के लिए आने वाले इंसेफेलाइटिस मरीजों में आधे से अधिक अर्ध बेहोशी के शिकार होते हैं और उन्हें तुरन्त वेंटीलेटर की सुविधा चाहिए। यहां पर पीडियाट्रिक आईसीयू में 50 बेड उपलब्ध हैं। वार्ड संख्या 12 में कुछ वेंटीलेटर है। चूंकि मेडिकल कालजे में बड़ी संख्या नवजात बच्चे भी विभिन्न प्रकार की दिक्कतों के कारण भर्ती होते हैं और उन्हें भी न्यू नेटल आईसीयू में रखने की जरूरत होती है, इसलिए यहां बड़ी क्षमता का पीडियाट्रिक आईसीयू की जरूरत है। मोजूदा पीआईसीयू को अपग्रेड करने के लिए 10 करोड़ का प्रस्ताव मेडिकल कालेज ने भेजा है जिसे अभी तक स्वीकृत नहीं किया गया है। यही नहीं इंसेफेलाइटिस वार्डों में मानक के हिसाब से 150 से अधिक चिकित्सकों, नर्सों व अन्य पैरामेडिकल स्टाफ के पदो के सृजन के लिए बजट ही नहीं दिया गया है। इंसेफेलाइटिस मरीजों की दवाइयों, मानव संसाधन के लिए वेतन, उपकरणों और उनकी मरम्मत के लिए 40 करोड़ के नियमित बजट की जरूरत है लेकिन अभी तक केन्द्र व प्रदेश सरकार इसे नहीं कर पाई है।

इंसेफेलाइटिस पर अंकुश पाने के लिए सबसे जरूरी कदम उसके रोकथाम के उपायों पर होना चाहिए लेकिन सरकारों का जोर इलाज पर ज्यादा है। इंसेफेलाइटस प्रभावित जिलों में सबको स्वच्छ पेयजल, शौचालय की व्यवस्था जरूरी है। जिसके लिए यूपीए सरकार ने चार हजार करोड़ का पैकेज जारी किया था जिसमें इलाज, रिसर्च, विकलांगों के पुनर्वास के लिए धन के साथ-साथ पेयजल व शौचालयों के लिए बजटीय आवंटन था लेकिन इन कामों की वास्तविक स्थिति क्या है, कोई नहीं जानता। कितने गांवों में स्वच्छ पेयजल की गारंटी हुई तो इसे बताने को कोई तैयार नहीं।
और सबसे बड़ी बात यह कि इसे चार महीने की बीमारी मान कर सरकार का हाथ पर हाथ रख बैठने की बीमारी 38 वर्षों में भी दूर नहीं हुई है। मानसून के साथ ही इंसेफेलाइटिस से मौतों का सिलसिला शुरू होता है तो सरकार कुछ हरकत में आती है। इसके पहले इसके बचाव व रोकथाम के उपायों पर कुछ नही होता।

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