साहित्य - संस्कृति

करुणा, प्रेम को वापस लाते हैं भगवान स्वरूप कटियार

कविता संग्रह “अपने-अपने उपनिवेश” का लोकार्पण, 
नरेश सक्सेना की अध्यक्षता में मायामृग  और मदन कश्यप का काव्यपाठ
डॉ संदीप सिंह
लखनऊ, 12 सितम्बर। प्रेम नफरत के विरुद्ध युद्ध है। भगवान स्वरूप कटियार अंधे प्रेम के नहीं आंख वाले प्रेम के कवि हैं। उनकी कविताओं के संदर्भ कविता के अन्दर नहीं बाहर है। उनकी कविताओं में जो प्रेम है वह निश्छल प्रेम है। यह मनुष्यता के प्रति प्रेम है। यहां जटिल मनोभावों की सरल अभिव्यक्ति है। जटिलताओं को सरल शब्दों में कहा गया है। जब कटियार जी कहते हैं कि दोस्ती से बड़ी विचारधारा नहीं होती तो वे उस विचारधारा को ही प्रतिष्ठित करते हैं जो बेहतर इंसानी दुनिया को बनाने की है। सबके अपने-अपने उपनिवेश हैं। हम जहां निवेश करते हैं, वहीं उपनिवेश बना लेते हैं। कटियार जी जैसा कवि बार-बार सचेत करता है। हमें देखना होगा कि हमारे भीतर तो कोई उपनिवेश नहीं खड़ा हो रहा है। अगर खड़ा हो रहा है तो उसे ढहाना होगा।
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कवि भगवान स्वरूप कटियार के नये और पांचवें कविता संकलन ‘अपने-अपने उपनिवेश’ का लोकार्पण जन संस्कृति मंच की ओर से उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ के निराला सभागार में 10  सितम्बर को हुआ। समारोह की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ कवि नरेश सक्सेना ने मार्क्सवादी आलोचकों की इस बात के लिए आलोचना की कि उन्होंने कविता के मात्र कथ्य पर जोर दिया शिल्प को नजरअन्दाज किया, करुणा, भावुकता और प्रेम जैसी चीजों को बाहर का रास्ता दिखाया। भगवान स्वरूप कटियार अपनी कविताओं में इन्हें वापस लाते हैं। उन्होंने मुक्तिबोध के संघर्षमय जीवन की चर्चा करते हुए कहा कि आज कोई कवि वैसा कठिन जीवन जीने को तैयार नहीं। सभी सुखी जीवन चाहते हैं और दुख और संघर्ष की कविता लिखते हैं। ऐसे में एक फांक तो रहेगा ही।
मुख्य अतिथि मदन कश्यप ने कटियार जी की कविताओं पर बोलते हुए कहा कि लम्बी काव्य यात्रा के बाद भी इनकी कविताओं को जो जगह मिलनी  चाहिए वह नहीं मिली। इस पर विचार किया जाना चाहिए। मदन कश्यप ने कटियार जी की रिक्शेवाला, उद्बोधन आदि कई कविताओं की चर्चा की और कहा कि यह घटनाओं को जिए हुए क्षण में बदलती है। रिक्शेवाले के जीवन और उसके अनुभव को अपना जीवनानुभव बनाती है। ऐसा करके कवि द्रष्टा नहीं रह जाता, वह स्रष्टा बन जाता है। जयपुर से आए कवि माया मृग का कहना था कि कविता जितना कहती है, उससे ज्यादा छिपाती है जिसे पाठक अपने कला संस्कार से ग्रहण करता है। कटियार जी की कविता ‘अपने अपने उपनिवेश’ की चर्चा करते हुए कहा कि हमें खंगालने की जरूरत है कि कहीं हमने प्रेम की जगह अपने अन्दर तो उपनिवेश नहीं बना रखा है। हम नदियों से प्रेम करते है, हम पेड़ों से प्रेम करते है, हम स्त्रियों से प्रेम करते है और इन्हें ही अपना निशाना बनाते हैं। उन्होंने कहा कि कटियार जी अंधे प्रेम के कवि नहीं आंख वाले प्रेम के कवि हैं। यहां प्रेम नफरत के विरुद्ध युद्ध है।
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दिल्ली से  आये आलोचक आशुतोष कुमार ने कहा कि मुक्तिबोध का हिन्दी कविता में एक बड़ा अवदान है कि उन्होंने कविता को उसकी आत्मनिर्भर दुनिया से बाहर किया और वास्तविक दुनिया, जीने-मरने की दुनिया को कविता का विषय बनाया। कटियार जी इसी परंपरा के कवि है। इनकी कविताओं के संदर्भ कविता के अन्दर नहीं बाहर है। इनका सीधा रिश्ता दुनिया से है, उसे सुन्दर बनाने से है। इनकी कविताओं में इंसानी रिश्तो की खोज है। इसके कई रूप यहां मिलते हैं। यहां स्मृतियों को बचाना भी संघर्ष है। कवयित्री और सामाजिक कार्यकर्ता वंदना मिश्र ने कहा कि उनका यह संग्रह अनिल सिन्हा से शुरू होकर रोहित वेमूला तक जाता है, इससे उनका सरोकार सामने आता है। उन्होंने कहा कि वे फ्रेंच और सोवियत कांंतियों को याद करते हैंं, ये उनकी आदर्श हैं। कवि एवं आलोचक चंद्रेश्वर ने कहा कि कटियार जी लंबे समय से रचनारत हैं। वे जीवन में जितने सरल हैं, अपनी कविताओं में भी उतने ही सरल हैं। । कई कविताओं का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कई बार उनकी सूत्रात्मक अभिव्यक्तियां ध्यान खींचती है। कवि व पत्रकार सुभाष राय ने कहा कि स्मृतियों को खत्म कर देने के दौर में कटियार जी उसे याद करते हैं। संग्रह की पहली कविता ‘एक भोर की याद’ ऐसी ही हैं। इसमें अपनी दादी के साथ संवाद है, उनकी नेक सीखें हैं। कटियार जी के लिए अतीत शिक्षक है। वर्तमान में आगे बढ़ने की ताकत इससे ग्र्रहण करते हैं। परिचर्चा का आरम्भ जन संस्कृति मंच के प्रदेश अध्यक्ष व कवि कौशल किशोर ने किया। उनका कहना था कि कटियार जी की कविताओं के केन्द्र में मनुष्य का सुख-दुख और संघर्ष है। इसका मूल तत्व प्रेम है। इनका कविता संसार प्रेम, जिन्दगी और कविता का त्रिकोण रचता है। यहां कविता और प्रेम इस लड़ाई के हथियार हैं और ये दोनों जिन्दगी के हथियार हैं। कहते हैं कि जिन्दगी को बचाना है तो कविता और प्रेम दोनों  को बचाना होगा।
परिचर्चा के बाद हुई कवि गोष्ठी में मदन कश्यप, नरेश सक्सेना और माया मृग ने अपने कविताएं सुनाई। परिचर्चा व कवि गोष्ठी का सफल संचालन किया कवि और लेखक डॉ संदीप कुमार सिंह ने। उन्होंने सभी वक्ताओं का परिचय भी दिया। कार्यक्रम के आरम्भ में लेखक व पत्रकार अनिल सिन्हा के चित्र पर पुष्पांजलि कर उन्हें याद किया गया। ज्ञात हो कि भगवान स्वरूप कटियार का यह संग्रह उन्हीं को समर्पित किया गया है।
इस अवसर पर बड़ी संख्या में शहर के साहित्यकार, बौद्धिक, सामाजिक कार्यकर्ता व साहित्य सुधि श्रोता उपस्थित थे जिनमें उन्नाव से आए दिनेश प्रियमन, बाराबंकी से विनय दास, कानपुर से अवधेश कुमार सिंह, के अलावा डॉ गिरीशचन्द्र श्रीवास्तव, राकेश, डॉ देवेन्द्र, कात्यायनी, विजय राय, नलिन रंजन सिंह, डॉ अनीता श्रीवास्तव, डॉ निर्मला सिंह, राजेश कुमार, प्रज्ञा पाण्डेय, विजय पुष्पम, दिव्या शुक्ला, वीरेन्द्र सारंग, देवनाथ द्विवेदी, तरुण निशान्त, के के वत्स, बंधु कुशावर्ती, अलका पांडे, आर के सिन्हा, आशीष कुमार सिंह, विमल किशोर, इंदु पाण्डेय आदि प्रमुख थे।

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