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कृष्णचंद्र रस्तोगी के संग्रह में हैं 1939 का एक पैसा, दो आना, चार आना का कागज का सिक्का

गोरखपुर, 28 नवम्बर. यूं तो सिक्के धातु से ढाले जाते हैं कि लेकिन दुनिया में पहली बार द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान भारत में कागज के सिक्के (पेपर क्वाइन) छापे गए। इन सिक्कों को भारतीय रियासतों ने 1939 से 1940 के मध्य छापा था। ऐसे कुछ सिक्के गोरखपुर जिले में 77 वर्षीय कृष्णचंद्र रस्तोगी ने संभाल रखा है.
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श्री रस्तोगी बताते हैं कि 1939 से 1945 तक चले द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान भारत में अंग्रेजों का राज था. इसलिए भारत ने भी नाजी जर्मनी के खिलाफ 1939 में युद्ध की घोषणा कर दी। ब्रिट्रिश राज ने गुलाम भारत से 20 लाख से अधिक सैनिक युद्ध के लिए भेज दिए। सभी देशी रियासतों से युद्ध के लिए बड़ी मात्रा में अंग्रेजों ने धनराशि हासिल की।

युद्ध की आपदा के इस दौर में ब्रिट्रिश राज सिक्के छापने के लिए धातु की कमी का हवाला देते हुए सभी भारतीय रियासतों को कागज के सिक्के छापने के आदेश दिए ताकि धातुओं के भंडारण को बचाया जा सके।

बूंदी, बीकानेर और जूनागढ़ स्टेट के पेपर क्वाइन
राजा बूंदा मीना द्वारा राजस्थान में स्थापित बूंदी रियासत में 1940 में कागज के सिक्के (पेपर क्वाइन) छापे। कृष्णकांत रस्तोगी के संग्रह में एक आना कीमत का पेपर क्वाइन उपलब्ध है। उनके पास गर्वंमेंट आफ बीकानेर  की तत्कालीन सदर ट्रेजरी से 1940 से 1943 के मध्य छपे एक पैसा, दो आना, चार आना के कागज के सिक्के भी उपलब्ध हैं। इसी तरह उनके संग्रह में जूनागढ़ स्टेट के द्वारा 1939 में एक पैसा, 2 पैसा, 1 आना के कागज के छपे पैसे भी उपलब्ध हैं। जूनागढ़ स्टेट के इन सिक्कों पर सौराष्ट्र लिखा हुआ है।
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 कृष्णचंद्र रस्तोगी के अनुसार उस वक्त बड़ा सवाल था कि पेपर क्वाइन छापे कैसे जाएं तो निर्णय हुआ कि सभी रियासते अपने डाक टिकट के ब्लाक को पेपर क्वाइन पर छापेंगी। उसके बाद इस तरह कागज के सिक्के दुनिया में पहली बार भारत में प्रकाशित हुए।