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गोरखपुर में आकार ले रही है नई सोशल इंजीनियरिंग

ओबीसी एकता के नाम पर यादव-निषाद-सैंथवार-पटेल व अन्य जातियों को एक साथ लाने की कोशिश
पांच जनवरी को हो रहा है त्रि-शक्ति महासम्मेलन
गोरखपुर लोकसभा उपचुनाव में होगा नए सोशल इंजीनियरिंग का परीक्षण

गोरखपुर, 29 दिसम्बर। विधानसभा चुनाव के बाद गोरखपुर में नई सोशल इंजीनियरिंग आकार ले रही है। इस सोशल इंजीनियरिंग में यादव, निषाद, सैंथवार व पटेल जाति को एक साथ लाने की कोशिश हो रही है ताकि एक मजबूत जातीय मोर्चा तैयार किया जा सके। इस सोशल इंजीनियरिंग को मूर्त रूप देने का काम शुरू हो गया है।
पांच जनवरी को यादव-निषाद-सैंथवार-पटेल व समस्त ओबीसी जातियों का महासम्मेलन आयोजित किया गया है। कहने के लिए इस महासम्मेलन का उद्देश्य ओबीसी जातियों को उनकी संख्या के अनुसार सरकारी व निजी क्षेत्र की नौकरियों सहित हर क्षेत्र में प्रतिनिधित्व देने की मांग को उठाना है लेकिन इसको चुनावी मोर्चा में भी तब्दील करने की कोशिश हो रही है। समझा जा रहा है कि इस नए सोशल इंजीनियरिंग के तहत मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के संसदीय क्षेत्र गोरखपुर में होने वाले उपचुनाव में उम्मीदवार उतारा जाएगा।

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पांच जनवरी को गोरखपुर के गोकुल अतिथि भवन में यादव-निषाद-पटेल व समस्त ओबीसी, का ‘ त्रि-शक्ति महासम्मेलन ’  आयोजित किया गया है। इस महासम्मेलन के अध्यक्ष निषाद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष डा. संजय कुमार निषाद हैं जबकि संयोजक कालीशंकर हैं। कालीशंकर सपा से जुड़े रहे हैं और सपा सरकार के दौरान उत्तर प्रदेश कोआपरेटिव बैंक लिमिटेड के निदेशक भी रहे हैं।
विधानसभा चुनाव के बाद उन्होंने ओबीसी समाज को एकजुट करने का अभियान शुरू किया है। उन्होंने अपने नाम के साथ ओबीसी लिखना शुरू कर दिया है और वह अपने को ओबीसी समाज नाम के संगठन का अध्यक्ष बता रहे हैं। गोरखपुर न्यूज लाइन से बातचीत में उन्होंने बताया कि यह सम्मेलन राजनीतिक नहीं है। इसका उद्देश्य ओबीसी समाज का एकजुट करना है और उसे उसकी संख्या के अनुपात में प्रतिनिधित्व दिलाना है। उनका कहना है कि ओबीसी समाज 52 फीसदी हैं। इसलिए ओबीसी समाज को प्रत्येक क्षेत्र में समान अवसर व उचित प्रतिनिधित्व देने के लिए 52 प्रतिशत आरक्षण देना चाहिए। वह आरक्षण की  50 फीसदी सीमा का बढ़ाने के लिए संविधान में संशोधन की मांग कर रहे हैं। इसके साथ ही वर्ष 2011 में कराए गए जातिगत गणना को सार्वजनिक करने और ओबीसी  जातियों के युवाओं को रोजगार गारंटी देने, रोजगार हेते ब्याजमुक्त कर्ज देने की भी मांग कर रहे हैं। श्री कालीशंकर के अनुसार इन सभी मुद्दों को महासम्मेलन में उठाया जाएगा और प्रस्ताव पारित किया जाएगा।
श्री कालीशंकर के अनुसार ओबीसी समाज देश की तीसरी सबसे बड़ी शक्ति है। इसलिए इस सम्मेलन का नाम त्रि-शक्ति सम्मेलन दिया गया है।

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महासम्मेलन के पोस्टरों, होर्डिंग और अखबारों में दिए जा रहे विज्ञापनों में यादव-निषाद-सैंथवार-पटेल व समस्त ओबीसी के साथ-साथ राजभर, मौर्य, विश्वकर्मा, प्रजापति, जायसवाल, गुप्ता, कुर्मी आदि का उल्लेख किया गया है।
महासम्मेलन के लिए जिस तरह से शहर में कई स्थानों पर होर्डिंग लगाए गए हैं और अखबारों में विज्ञापन जारी किया गया है, उससे साफ जाहिर होता है कि पर्दे के पीछे भी कई शक्तियां इसके लिए काम कर रही हैं।
गोरखपुर संसदीय क्षेत्र के उपचुनाव के ऐन पहले महासम्मेलन का आयोजन भी खास संकेत कर रहा है।
विधानसभा चुनाव में भाजपा ने ओबीसी में यादवों को छोड़ कुछ जातियों को अपने पक्ष में करने में सफलता पाई थी। इसी तरह दलितों में भी गैरजाटव जातियों को उसने अपने पक्ष में किया था।
विधानसभा चुनाव के बाद सपा चुपचाप नई सोशल इंजीनियरिंग करने में लगी है। बसपा से निकले पासी समाज के नेता आरके चौधरी हाल में सपा में शामिल हुए हैं। विधानसभा चुनाव में अपनी ताकत दिखाने में कामयाब हुई निषाद पार्टी से भी सपा का संवाद शुरू हुआ है।
निषाद पार्टी ने विधानसभा चुनाव पीस पार्टी के साथ मिलकर लड़ा था। पीस पार्टी को निषाद वोट तो ट्रांसफर हुए लेकिन पसमांदा मुसलमानों के वोट निषाद पार्टी को नहीं मिले। इस कारण वह यूपी में एक ही सीट (ज्ञानपुर) जीत पाई। पीस पार्टी भी कोई सीट जीत नहीं पाई। निषाद पार्टी 72 सीटों पर चुनाव लड़ी थी और उसे 5,40,539 वोट मिले। कई सीटों-पनियरा, कैम्पियरगंज, सहजनवा, खजनी, तमकुहीराज, भदोही, चंदौली में उसे दस हजार से अधिक वोट मिले। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष डा. संजय कुमार निषाद गोरखपुर ग्रामीण सीट से चुनाव लड़े और 34,869 वोट पाए। चुनाव तो वह नहीं जीत पाए लेकिन वह सभी प्रमुख दलों को अहसास दिलाने में कामयाब रहे कि निषाद जाति के वोटों पर उनकी अच्छी पकड़ है।

विधानसभा चुनाव में निषाद पार्टी ने सपा से गठबंधन की कोशिश की थी लेकिन सपा ने भाव नहीं दिया। निषाद पार्टी के नेता कहते हैं कि यदि सपा ने उनसे गठबंधन कर लिया होता तो वे कम से कम 30 से 35 सीटों पर नहीं हारते।

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चुनाव बाद वोटों का गुणा-भाग करने पर सपा को साफ तौर पर समझ में आ रहा है कि यदि निषादों के साथ-साथ सैंथवार, पटेल व कुछ अन्य ओबीसी जातियों को साथ लाया जा सके तो वह अपने सामाजिक आधार को काफी विस्तारित कर सकती है जो पिछले कुछ वर्षों से छीजता गया है।
यूपी में सपा सरकार बनने के बाद जो छोटे दल भाजपा के साथ आए हैं, वे बहुत खुश नहीं हैं। वह अपनी उपेक्षा को लेकर शिकायत भी करने लगे हैं। भारतीय समाज पार्टी के ओम प्रकाश राजभर कई बार अपनी उपेक्षा का सार्वजनिक इजहार कर चुके हैं।
लखनउ से गोरखपुर तक जो राजनीतिक गतिविधियां हो रही हैं, उससे यही संकेत मिलता है कि सपा पर्दे के पीछे से ओबीसी जातियों की एकता बनाने के कार्य में शिद्दत से जुटी है। कालीशंकर ‘ अंखड ओबीसी ’ समाज की बात कर रहे हैं तो डा. संजय कुमार निषाद मुस्कराते हुए कहते हैं कि ‘ जो हालचाल पूछे उसे ही भाई माना जाता है ’। दोनों अब एक साथ ओबीसी समाज की एकता की बात करेंगे.

निषादों की प्रमुख मांग-निषाद समाज सहित अन्य पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति का आरक्षण दिया जाय- को भी महासम्मेलन की मांग में जगह दी गई है। कालीशंकर को इस बात से कोई दिक्कत नहीं है कि अतिपिछड़ी जातियां ओबीसी कोटे के भीतर कोटे की मांग कर रही हैं. वह इस मांग का समर्थन करते हैं.
महासम्मेलन को त्रि-शक्ति महासम्मेलन का नाम देने के पीछे भी गूढ़ संकेत हैं। कहा तो यह जा रहा है कि ओबीसी समाज तीसरी शक्ति है, इसलिए यह नाम दिया गया है लेकिन कोशिश है कि तीन बड़ी ओबीसी जातियां-यादव, निषाद-सैंथवार या पटेल एक साथ हो जाएं तो यूपी में नई सोशल इंजीनियरिंग बन जाएगी। यह मोर्चा बन जाता है तो अन्य ओबीसी जातियों को भी इससे जुड़ने में देर नहीं लगेगी। यूपी में पटेल, कुर्मी फिलहाल तो भाजपा के साथ है लेकिन गुजरात में हार्दिक पटेल के विद्रोह की बयार यदि यहां तक भी आई तो स्थितियां बदल भी सकती हैं।
इस नई सोशल इंजीनियरिंग का पहला टेस्ट गोरखपुर में गोरखपुर संसदीय क्षेत्र के उपचुनाव में होगा। पहले परीक्षण में मिलने वाली सफलता इसका आगे का मार्ग प्रशस्त करेगी।

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