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गोरखपुर में हैं इस्लाम के चौथे खलीफा हजरत अली की तलवार

गोरखपुर, 11 अप्रैल। शहर में इस्लाम से सबंधित तमाम पवित्र वस्तुएं (तबरुकात) मौजूद है जिनके बारे में लोगों को जानकारी कम है। यह सब तबरुकात मौजूद हैं जाफरा बाजार स्थित सब्जपोश खानदान में। यहीं पर मीर शाह क्यामुद्दीन के पोते मीर सैयद गुलाम रसूल का मकबरा है। लोगों की मान्यता है कि मकबरे के गुबंद में उस जमाने की कुरआन शरीफ व इस्लाम के चौथे खलीफा हजरत अली की तलवार सहित अन्य तबरुकात मौजूद है। वहीं गैंडे की खाल की ढाल डा. ताहिर अली सब्जपोश के यहां मौजूद है।
सैयद दानिश ने बताया कि जौनुपर से मीर शाह क्यामुद्दीन गोरखपुर तशरीफ लायें। इनके दो साहबजादे मीर अहमदुल्लाह व मीर फजलुल्लाह थे। मीर फजलुल्लाह अवध के फौज में जनरल थे उन्होंने बक्सर के युद्ध में वतन की आजादी के लिए लड़ाई लड़ते हुए शहादत पायी। इनकी कोई औलाद नहीं थी। लिहाजा उस दौर के बादशाह ने मीर शाह क्यामुद्दीन के पोते मीर सैयद गुलाम रसूल (मीर शाह क्यामुद्दीन के दूसरे पुत्र के पुत्र) को माफी नामा, रकम व गांव दिए। यहीं पर सैयद गुलाम रसूल का मकबरा है और यहीं पर गुम्बद में रखी हुई है हजरत अली की तलवार, पुराना कुरआन व अन्य पवित्र वस्तुएं मौजूद हैं।

बेहुरमती से बचाने व अन्य वजहों से गुबंद पूरी तरह से सील कर दिया गया हैं। हजरत अली की तलवार व अन्य तबरुकात का कोई स्पष्ट प्रमाण तो नहीं हैं लेकिन पुरखों से सुनी रिवायत खानदान के हर फर्द ने सुनी हैं और यह बात काफी मशहूर हैं। मोहल्ले के तमाम लोग इससे वाकिफ हैं।
इसी सब्जपोश घराने में मिस्र की लड़कियों के हाथों से बना 176 साल पुराना गिलाफ-ए-काबा भी हैं। इसी के साथ है मदीना से लाया गया कदम-ए-रसूल व बगदाद से लाया गया हजरत गौसे पाक के मजार का पवित्र पत्थर भी मौजूद हैं। काबा का गिलाफ, कदम रसूल गौसे पाक के मजार का पत्थर जाफरा बाजार स्थित सैयद नौशाद अली सब्जपोश के घर में हैं जिसकी जियारत ईद और बकरीद में करायी जाती हैं।
सब्जपोश खानदान के सैयद दानिश अली सब्जपोश ने बताया कि इन पवित्र वस्तुओं को सन् 1840 में मीर अब्दुल्लाह पवित्र हज यात्रा के दौरान वापसी में लेकर आये थे।
उन्होंने बताया कि सन् 1840 में मीर अब्दुल्लाह के नेतृत्व में घोड़ों से हज करने के लिए एक काफिला तैयार हुआ। जब ये इराक स्थित बगदाद शरीफ पहुंचे तो उस वक्त हजरत गौसे पाक की मजार की दोबारा तामीर हो रही थी। उन्होंने मजार से निकले पत्थर को मजार के खादिम से तबरूक के तौर पर मांग लिया।
इसके बाद हज करने अरब पहुंचे तो काबा शरीफ का गिलाफ उतारा जा रहा था। गिलाफ को हदिया के रूप में खास लोगों को काबा शरीफ का गिलाफ देने की परंपरा थी। मीर अब्दुल्लाह भी अमीरों में शुमार थे। उन्हें भी दस्तयाब किया गया। वहीं मदीना शरीफ से उन्हें कदमें रसूल भी मिला। फिर वह लेकर गोरखपुर चले आये।
तब से लेकर इन पवित्र वस्तुओं की जियारत बादशाह शाहजहां के जमाने की बनी मस्जिद में करायी जाती है।
 शाहजहां के जमाने की मस्जिद
सैयद दानिश अली सब्जपोश ने बताया कि उनके वंशज मीर शाह क्यामुद्दीन शाहजहां के शासन काल में गोरखपुर तशरीफ लायें और यहीं छोटा सा रौजा व मस्जिद तामीर की। तब से यह मस्जिद कायम है। 15 वर्ष पहले इसमें कुछ तामीरी काम कराया गया है।