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जंगल के सांपों को अन्तरराष्ट्रीय वन्य जीव तस्करों से खतरा

सोहगीबरवा वन्य जीव प्रभाग व वाल्मीकि व्याघ्र परियोजना (वीटीआर) में विषधरों का शिकार कर रहे हैं तस्कर 

यूपी ,बिहार व नेपाल के सरहदी इलाकों में तस्करों की सक्रियता से वन अधिकारी चिंतित

रवि सिंह

निचलौल (महराजगंज), 5 जुलाई। सोहगीबरवा वन्य जीव प्रभाग व वाल्मीकि व्याघ्र परियोजना (वीटीआर) में एकबार फिर सांपों पर अन्तरराष्ट्रीय वन्य जीव तस्करों की नजर गडने लगी है। यूपी ,बिहार व नेपाल के सरहदी इलाकों में तस्करों व उनके मुखबिरों की सक्रियता ने वन अधिकारियों की चिंता बढ़ा दी है।
सोहगीबरवा वन्य जीव प्रभाग के शिवपुर, निचलौल व वाल्मीकि नगर व्याघ्र परियोजना के वन क्षेत्रों में वाइपर, कोबरा व अजगर की प्रजातियां बहुतायत में हैं।वाईल्ड लाईफ के जानकार बताते है कि बरसात के मौसम में ही सांपो में विष की थैली परिपक्व होती है।सर्दी के दिनों में सांप लंबी शीत-निद्रा की अवस्था में चले जाते हैं। गर्मी के बाद बारिश में उनमें वयस्कता आती है तो वे बाहर विचरण करते हैं और उनमें विष की थैली तैयार होती है। इधर सांपों के शिकारी घात लगाये रहते है और सांपों को जाल में फँसा लेते हैं। उनके विष और त्वचा को निकालकर अन्तर्राष्ट्रीय बाजर तक पहुंचाते है।यूरोपीय देशों में इसकी मांग सर्वाधिक बताई जाती है।
जिले के शिवपुर रेंज व बिहार के वीटीआर से सटे नेपाल के सीमावर्ती इलाके इनकी गतिविधियों के लिए खासा मुफीद माने जाते हैं। तस्कर आसानी से नेपाल व माड़ी वैली के रास्ते काठमांडू होते हुए इटली, फ्रांस व ब्रिटेन सरीखे देशों तक विष व सांपों की त्वचा को पहुंचाने में कामयाब हो जाते हैं।
एक ग्राम विष की कीमत कम से कम पांच हजार रुपये में बिकती है। पिछले वर्ष इसी समय बिहार के मंगुराहा वन क्षेत्र से छह संदिग्ध विष तस्कर पकड़े गए थे लेकिन कोई बरामदगी नहीं होने से वनकर्मियों ने उन्हें वन क्षेत्र से बाहर ले जाकर  छोड दिया था। यही नहीं जब तब सांपो के साथ पकडे गये तस्कर इन कारोबार की तस्दीक करते रहे है। ऐसे में एक बार फिर बरसात शुरू होने के साथ भारत -नेपाल के सरहदी इलाकों में बढते वन्यजीव तस्करों के जाल ने विभाग की चिंता बढा दी है।
इस संबध में बीटीआर के वन अधिकारी आरके सिन्हा कहते है कि जंगल में गश्त बढा दी गयी है। नेपाल से लगने वाले क्षेत्रों में संदिग्धों की सघन जांच कराई जा रही है। विभाग वन्यजीव की सुरक्षा को लेकर सजग है।

शिकार में माहिर है बावरिया व कालबेलिया समुदाय
सांपो से लेकर अन्य जंगली जानवरों के शिकार में राजस्थान और हरियाणा के  बावरिया व कालबेलिया जनजाति खासी माहिर है। इन लोगों को पैसे का लालच देकर तस्कर गिरोह शिकार कराते है और इनसे औने पौने दाम पर सांप व अन्य जंगली जानवरों के अंगो लेकर बाहर ले जाकर बेचते हैं।

बरसात शुरू होने के साथ ही यूपी बिहार व नेपाल के सरहदी इलाकों में जंगल के आस -पास ठौर जमाते इन घुमन्तू डेरों से भी जंगल को खतरा बताया जा रहा है।सूत्र बताते है कि तस्कर पहले अपने सूचना तंत्र को मजबूत करते हैं। बाद मे इन समुदायों के लोगो को सूचना देते है। ये शिकार वाले क्षेत्रों के आस-पास के इलाके में अपना डेरा डाल लेते है।दिन भर जंगल के आसपास के रिहायशी इलाके में जडी बूटी बेचते व तरह-तरह के खेल तमाशे दिखाते हैंऔर रात में शिकार की टोह में जंगल में घुस जाते और बडे आराम से शिकारकर डेरो में लौट जाते है। यही नही अभी कुछ दिनों पूर्व नेपाल में बाघ के दो खाल व 42 किलो हड्डी के साथ पकडे गये आठ लोगों में से दो महिलाओं समेत 6 भारतीय बावरिया समुदाय के ही थे।यही नही इस बार भी कालबेलिया समुदाय के लोगों ने शिवपुर रेज से सटे बिहार के नौरंगिया में अपना अस्थाई डेरा डाला है।⁠⁠⁠⁠

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