साहित्य - संस्कृति

जनता के संघर्ष और चेतना को उन्नत करती है लोकसंस्कृति-आनंद स्वरूप वर्मा

देश की हवा, धरती, वायुमंडल को बचाने के लिए लोकसंस्कृति की रक्षा जरूरी
जोगिया में लोकरंग 2016 का आगाज
जोगिया कुशीनगर 7 मई। प्रसिद्ध पत्रकार एवं समकालीन तीसरी दुनिया के संपादक आनंद स्वरूप वर्मा ने कहा है कि लोकसंस्कृति, लोककथाएं और लोककलाएं जनता के संघर्ष और चेतना को उन्नत करते हैं। इसलिए देश की हवा, धरती, वायुमंडल को बचाने के लिए लोकसंस्कृति की रक्षा जरूरी है। लोकसंस्कृति का संरक्षण विकास के लिए किया जाना वाला कार्य बेहद अनुकरणीय है।
श्री वर्मा ने आज जोगिया गांव में आयोजित नवें लोकरंग-2016 का उद्घाटन करते हुए यह बात कही। उन्होंने कहा कि लोकरंग के बारे में वह वर्षों से सुनते रहे हैं लेकिन आज उन्हें यहां आकर बहुत प्रसन्नता हो रही है। उन्होंने कहा कि सरकारी तंत्र और कार्पोरेट प्रायोजित मीडिया अपसंस्कृति का प्रसार पूरी ताकत से कर रहा है। ऐसे में लोकरंग जैसे छोटी लडाई भी बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है। ऐसी लड़ाइयां देश के कई हिस्सों में भी हो रही है और यह लड़ाई बढ़ती जा रही है। उन्होंने कहा कि लोकसंस्कृति में प्रतिरोध के बीज छिपे होते हैं। ये हमें कुरीतियों के खिलाफ जागरूक करती हैं। यह आज से नहीं बल्कि सदियों से होता आ रहा है। दुनिया के किसी भी हिस्से में जनआंदोलन होता होता है तब लोक संस्कृति, लोककलाएं सबसे आगे दिखायी देते हैं। चाहे बिरसा मुडा का संघर्ष हो, तेभागा का आंदोलन हो, नक्सलबाड़ी का आदोलन हो या भारत का स्वाधीनता संघर्ष लोककलाओं और लोक संस्कृति उसमें सबसे मुखर रही है। लोक संस्कृति हमारे संघर्ष के बैरोमीटर की तरह होते हैं।

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श्री वर्मा ने इप्टा के आंदोलन को याद करते हुए कहा कि इप्टा के आंदोलन ने देश की जनता को बड़े दायरे में प्रभावित किया। आज चिंता की बात यह है कि लोककलाएं आज अपने को किसी तरह से जिंदा किए हुए हैं। उन्हें खाद-पानी देने की कोशिश को छीनने की कोशिश हो रही है। उन्होंने अफ्र्रीका और तीसरी दुनिया के देशों में साम्रज्यवाद विरोधी संघर्ष में सांस्कृतिक आंदोलनों और बुद्धिजीवियों की भूमिका का उल्लेख करते हुए कहा कि उन्होंने साम्राज्यवादियों की तीसरी दुनिया की शिक्षा और संस्कृति को अपने अनुरूप ढालने की कोशिश को नाकामयाब किया। उन्होंने कहा कि सत्ता की कोशिशें होती हैं कि लोकसंस्कृति में जीवन को शून्य कर दे, अपंग कर दे या खत्म कर दे लेकिन वे कामयाब नहीं हो पा रहे हैं क्योंकि लोकसंस्कृति की जड़े जनता में गहरे तक पैठी हुई है। उन्होने कहा कि अपने देश में औपनिवेशिक मानसिकता से मुक्त होने का संघर्ष अभी पूरा भी नहीं हो पाया कि नवऔपनिवेशिक हमला तेज हो गया। ऐसे में लोकसंस्कृति से जुड़े लोगों की चुनौती और बड़ी हो जाती है। उन्होंने केन्या, चीन और भारत की लोककथाओं के जरिए बड़े ऐतिहासिक परिवर्तनों का उल्लेख करते हुए लोगों को लोकसंस्कृति को प्रखर बनाने के लिए जुटने का आह्वान किया।

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मुख्य अतिथि के उद्बोधन के बाद आनंद स्वरूप वर्मा, प्रो रविभूषण, वरिष्ठ कथाकार मदन मोहन, जिलाधिकारी शंभू नाथ, एसपी दीपक कुमार भट्ट, बीआरडी मेडिकल कालेज के पूर्व प्राचार्य प्रो केपी कुशवाहा, लखनउ से आईं माहिला आंदोलन की प्रमुख कार्यकर्ता ताहिरा हसन, हिन्दुस्तान के स्थानीय संपादक सुनील द्विवेदी, वरिष्ठ पत्रकार हर्षवर्धन शाही ने लोकरंग-2016 की स्मारिका का लोकार्पण किया।

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