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‘ जुगनू तुमको चांद उगाने होंगे , इससे पहले की अंधेरों की हुकूमत हो जाये ‘

एमएसआई का ग्राउंड बना ऐतिहासिक मुशाअरे का गवाह बना

गोरखपुर, 19 नवम्बर। शनिवार की रात मियां साहब इस्लामियां इण्टर कालेज बक्शीपुर ऐतिहासिक मुशायरे व कवि सम्मेलन का गवाह बना। नामचीन शायरों का अपने रूबरू पाकर लोग भावविभोर हो गये। भीड़ से पूरा ग्राउंड भरा रहा। वाह बहुत खूब, सुब्हानल्लाह की सदायें निकलती रही। यह सिलसिला रविवार की सुबह तक चलता रहा।

जैसे-जैसे रात बढ़ती जा रही थी। लोग बेकरार होते गये। दस बजते बजते ग्राउण्ड भर गया। शायर आने लगे तो उनको सुनने की बेचैनी बढ़ने लगी। यह हसीन मौका इनायत कराया स्टार चेरिटेबुल ट्रस्ट ने। तीसरे सैयद मजहर अली शाह मेमोरियल आल इण्डिया मुशायरा एवं कवि सम्मेलन में देश के 18 नामचीन शायरों ने अपने कलाम से लोगों का दिल जीत लिया। मुख्य अतिथि निदेशक/सचिव सांस्कृतिक विभाग उप्र शासन डा. हरिओम रहे। वहीं अध्यक्षता  इलाहाबाद उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायमूर्ति कलीमुल्ला खान ने की। विशिष्ट अतिथि के तौर पर अदनान फर्रुख शाह मियां साहब व डा. अजीज अहमद मौजूद रहे। मेहमाने खुशूसी ने शमां को रोशन कर महफिल का आगाज किया। संचालन को बाखूबी अंजाम देने के लिए जैसे ही कलीम कैसर ही स्टेज पर आये तालियों की गड़गड़ाहट से पूरा ग्राउंड गूंज उठा। इसके बाद कुंवर जावेद ने अपना कलाम पेश किया।

दीया बनूं तो पतिंगा नसीब हो मुझको।

नहाना चाहूं तो गंगा नसीब हो मुझको।

मेरी तमन्ना अगर कोई है, तो बस ये हैं।

मैं यूं मरूं की तिरंगा नसीब हो मुझको।।

पढ़ लोगों की दाद पायी।

इसके बाद पढ़ा-

वो लोग साहिबे कुरआन हो नहीं सकते।

किसी भी धर्म की पहचान हो नहीं सकते।

जो उग्रवाद को यारों जिहाद कहते है।

वो और कुछ हैं मुसलमान हो नहीं सकते।

इसके बाद बारी थी हरदिल अजीज शायर मंजर भोपली की। जैसे ही उन्होंने माइक अपने हाथ में लिए गुलाबी ठंड में गर्माहट का एहसास हो गया। उन्होंने पढ़ा-

जो चाहे कीजिए कोई सजा तो है ही नहीं।

जमाना सोच रहा है खुदा तो है ही  नहीं।।

सब आसमान से उतरे हुए फरिश्तें है।

सियासी लोगों में कोई बुरा तो है ही नहीं ।

वो अपने चेहरों के दागों पर क्यों न फख्र करें।

अब उनके पास कोई आईना तो है नहीं।

पढ़ वाहवाही लूटी। फिर पढ़ा-

भारत माता के टुकड़ें की क्यों तैयारी है

देश के गद्दारों से कह दो धरती जान से प्यारी है

मंदिर में भी ऊंच नीच हो ये तो राम नहीं कहता

सती बना दो रूप कुंवर को ये घनश्याम नहीं कहता

हिन्दू धर्म से नफरत करना यह इस्लाम नहीं कहता

मस्जिद की दीवारें तोड़ों  कोई राम नहीं कहता

मुल्ला पंडित और नेता की यारों ये मक्कारी है।

देश के गद्दारों से कह दो धरती जान से प्यारी है।

फिर पढ़ा-

ये जमीं भी मेरे सज्दों से हुई है रोशन।

दिल अगर चीर के देखो तो तिरंगा निकले।

वाहवाही व सुब्हानअल्लाह की आवाज तेज हुई तो उन्होंने

फिर पढ़ा –

फासला इश्क की शिद्द को बढ़ा देता है।

इसलिए काबा मदीने से अलग रखा है।।

पढ़ लोगों को सुब्हानल्लाह कहने पर मजबूर कर दिया।

डा. नसीम निकहत ने पढ़ा

सितम नसीब फिजाओं से क्या मिलेगा तुम्हें।

चराग हो तो हवाओं से क्या मिलेगा तुम्हें।

ये चंद सिक्कों में जन्नत खरीदने का फरेब।

भिखारियों की दुआओं से क्या मिलेगा तुम्हें।।

हाशिम फिरोजाबादी ने पढ़ा-

खुद अपने आपको बर्बाद कर रहा हूं मैं।

यह देख फिर से तुझे याद कर रहा हूं मैं।।

फिर पढ़ा-

अब तो शहर से जाया भी नहीं जा सकता

और तुम्हें अपना बनाया भी नहीं जा सकता

एक ही चेहरा बसा रखा है उन आंखों में

इन चिरागों को बुझाया भी नहीं जा सकता।

डा. राहत इंदौरी को सुनने के लिए महफिल उतावली नजर आ रही थी। उन्होंने शानदार लहजे में अपना कलाम सुनाया-

जागने की भी जगाने की भी आदत हो जाये।

काश तुझको किसी शायर से मोहब्बत हो जाये।

दूर हम कितने दिनों से है कभी गौर किया।

फिर न कहना जो अमानत में ख्यानत हो जाये।।

उन्होंने अपने मख्सूस अंदाज में पढ़ा-

जुगनू तुमको चांद उगाने होंगे।

इससे पहले की अंधेरों की हुकूमत हो जाये।।

उखड़ पड़ते हैं मेरी कब्र के पत्थर हर दिन।

एक दिन तुम आ जाओ तो मरम्मत हो जाए।।

हमसे पूछते क्या हों कि रूमाल के पीछे क्या है।

फिर किसी रोज ये सैलाब दिखायेंगे तुम्हें।।

फैसला जो कुछ भी मंजूर होना चाहिए।

जंग हो या इश्क हो भरपूर होना चाहिए।।

कट चुकी है उम्र सारी जिसकी पत्थर तोड़ते।

अब तो इन हाथों में कोहिनूर होना चाहिए।।

सिर्फ खंजर ही नहीं आंखों में पानी चाहिए।

खुदा दुश्मन भी मुझे खानदानी चाहिए।

एक अखबार हूं औकात ही क्या मेरी।

शहर में आग लगाने के लिए काफी हूं।

फिर उन्होंने पढ़ा-

सिर्फ इक बार मेरी नींद का ये जाल कटे।

जाग जाऊं तो जगाने के लिए काफी हूं।।

कलाम पेश कर खूब दाद पायी। आखिर में उन्होंने पढ़ा

जनाजे पर मेरे लिख देना।

मोहब्बत करने वाला जा रहा है।।

डा. सुमन दूबे,  डा. नदीम शाद मुमताज नसीम ने शेर पढ़ लोगों का दिल जीत लिया। पप्पू लखनवीं व सुंदर मालेगांवी ने भी अपने कलाम से लोगों को गुदगुदाया। इसके अलावा अन्य शायरों अंजुम रहबर,कर्नल वीपी सिंह, आलोक श्रीवास्तव, दीपक गुप्ता,  डा. सागर त्रिपाठी,निकहत अमरोहवी,  ने सभी का दिल में कोई कसर नहीं छोड़ी। इससे पहले ट्रस्ट के द्वारा  कई लोगों को सम्मानित किया गया। इस मौके पर स्मारिका व पुस्तक का विमोचन किया गया।

इस दौरान डा. विजाहत करीम, डा. सुरहीता करीम, प्रोफेसर अशोक कुमार तमाम लोग मौजूद रहे।⁠⁠⁠⁠

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