विचार

‘ जे नोटवा बंद कइले बा उहो चटनी ओटनी खात बा का ’

 

रमाशंकर चौधरी

किसुन कुशवाहा उर्फ महतो खड्डा विधान सभा क्षेत्र से भाजपा से टिकट की दावेदारी कर रहे एक नेता के प्रबल समर्थक हैं लेकिन उससे ज्यादे मोदी भक्त हैं। खेतिहर मजदूर किसुन की आदत में शुमार है कि वह सुबह चाय पीने चौराहे पर जाते हैं और सभी हिन्दी अखबार जरुर पढते है। अखबारों से मिली सूचनाओं से वह अपने विचार बुनते हैं और तर्क के अस्त्र तैयार करते हैं। अक्सर वह बड़े-बड़े बहसबाजों को चित्त कर देते हैं।
पीएम की परिवर्तन रैली में भाजपा नेता ने उन्हें एक बस उपलब्ध करायी जिसे लेकर उन्हें कसया जाना था। उन्हें कुल 50 लोगों को ले जाने की जिम्मेदारी मिली। वह बहुत उत्साहित थे। एक सप्ताह पहले से लोगों को मोदी जी की रैली में जाने के लिए तैयार करने लगे।
27 नवम्बर की सुबह ही वह रैली में जाने वाले लोगों को घर जाकर दस बजे तक चैराहे पर आने का हांका लगा गए लेकिन लोगों ने जुटने में 11 बजा दिए। बस तो कसया पहुंच गई लेकिन सभा स्थल पर बस नहीं पहुंच सकी और लोगों को काफी दूर तक पैदल चलना पडा। यही नहीं वह अपने लोगों से बिछड़ भी गए। सभा स्थल में एक किनारे खड़े होकर उन्हें पीएम का भाषण गौर से सुना। भाषण सुनने के बाद वह लोगों के सवालों का जवाब देने की तैयारी करने लगे क्योंकि वह जानते थे कि चौराहे के बहसबाज उन्हें जरूर घेरेंगे और उनके नए सवालों का जवाब देना पड़ेगा।
बस जब गांव के चैराहे पर पहुंची तो हरि काका ने उतरते पूछ लिया- काहो महतो ! केतना भीड रहल ह। जवाब में किसुन बोले-बस इहे बूझ कि गोड़ रखे के जगह नाही बचल रहल।
चीनी मिल व किसानों के बारे में भी सवाल उठा जिस पर किसुन का जवाब था-इकरे बारे में मोदी जी कहलन कि प्रदेशओ में भाजपा के सरकार बन जाई त सब बन्द पर मिल चालू करवा दिहेन।
तब तक उनके चिरपरिचित प्रतिद्वंदी वहां आ पहुंचे और सवालों की पूरी तोप उनकी ओर घूमा दी-‘ औरी पनियहवां से तमकुही रोड के रेलवे लाईनिया बनी की नाही , बैंकवा कब से पूरा पैसा दिहल शुरु करी, पुरनका गन्ना के दमवा कब से मिली ?
इन तमाम सवालों से महतो परेशान हो गए। कभी नाराज नही होने वाले महतो झुँझला गए। बोले -‘ सत्यनारायण बाबा कथा सुन के आव तानी कि सब के बताईं। ‘
यहां तक तो गनीमत रही। घर पहुंचे तो शाम हो चुकी थी। रात के खाने की तैयारी में लगी पत्नी ने पूछ लिया- ‘ का बनी ? नून तेल अउर तरकारी सब खतम हो गइल बा।’ नोटबंदी का असर घर तक पहुँच गया था। महतो बोले-चटनी ओटनी बनाव। उहे खा लेहल जाई। विपक्षी दलों का आक्रोश प्रदर्शन तो एक दिन बाद था लेेकिन महतो की पत्नी का आक्रोश 12 घंटे पहले ही फूट पड़ा-तू अउर हम चटनी ओटनी खाइब। जे नोटवा बंद कइले बा उहो चटनी ओटनी खात बा का ?
रैली से थके हारे आए महतो पर पत्नी के आक्रोश का इम्पैक्ट ‘ सर्जिकल स्ट्राइक ’ जैसा था। वह तबसे चुप हैं।

(पाठक इसे गल्प न समझें। यह सच्ची कहानी है जो छितौनी के चौराहे पर कही गई और नोटबंदी के इफेक्ट की तमाम कहानियों में फिलहाल यह वायरल है)

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