राज्यसमाचार

डाॅ. साहब (नगर विधायक) को गुस्सा क्यों आ रहा है ?

गोरखपुर , 11 मई। डॉक्टर साहब को गुस्सा क्यों आ रहा है ? उनके तेवर बदले हुए क्यों हैं ? आखिर अपनी ही सरकार में वह एक विपक्षी विधायक की भूमिका में क्यों नजर आ रहे हैं ? क्या मंत्री न बन पाने का गुस्सा उनके इस नए रूप में प्रकट हो रहा है ?
ये तमाम सवाल हैं जो गोरखपुर नगर के विधायक डा. राधा मोहन दास अग्रवाल (आरएमडी) को लेकर उठ रहे हैं।
डाॅ अग्रवाल को जानने वाले उनके नए रूप से चौंक रहे हैं। नगर विधायक शांत और गंभीर स्वभाव के माने जाते हैं और 15 वर्ष से विधायक रहने के बावजूद अब तक वह किसी विवाद में नहीं आए। पहली बार विवाद में आए भी तो अपने स्वभाव के ठीक उलट कारणों से। उन्होंने महिला आईपीएस अधिकारी चारू निगम को इस तरह डपटा कि उनकी आंखों में आंसू आ गए। पहले सजल आंखों वाली तस्वीर और बाद में फेसबुक पर इस घटना को लेकर लिखे गए दो स्टेटस ने आईपीएस चारू निगम को राष्टीय स्तर पर चर्चा में ला दिया। उनके फेसबुक स्टेटस को पढ़ने, लाइक करने वालों की संख्या हजारों में पहुंच गई। हालांकि अब उन्होंने ये पोस्ट डिलीट कर दिये हैं।

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इस घटना से विधायक डा आरएमडी अग्रवाल को भी चर्चा मिली लेकिन नकारात्मक रूप से। खुद डा. अग्रवाल कह रहे हैं कि मीडिया ने उन्हें 24 घंटे में देश का सबसे बड़ा गुंडा बना दिया। अगले तीन दिन में उन्होंने और अधिक आक्रामक रूख दिखाते हुए शराब की गैरकानूनी दुकानों को बंद कराने के मुद्दे पर टाउनहाल में पंचायत कर जनता को अपने पक्ष में करने का प्रयास किया और काफी हद तक वह सफल भी हुए लेकिन पंचायत में उन्होंने अपने भाषण में जो तेवर दिखाए और जिस तरफ अफसरों को ‘ चमड़ी नहीं बचने ’ जैसे शब्दों का प्रयोग किया उससे फिर उन सवालों को बल मिला कि आखिर डा. साहब गुस्सा क्यों आ रहा है ?

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डाॅक्टर अग्रवाल राजनीति में आने के पहले बच्चों के प्रसिद्ध डाॅक्टर थे। उन्होंने बीएचयू से एमबीबीएस, एमडी किया। वह छात्र संघ की राजनीति में सक्रिय रहे और पदाधिकारी भी चुने गए। छात्र राजनीति के दौरान वह समाजवादी विचारधारा से प्रभावित थे।
गोरखपुर आने के बाद वह आरएसएस के सेवा कार्यों से जुड़े। वह मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गुरू महंत अवेद्यनाथ के काफी करीब रहे।

वर्ष 2000 में वह राजनीति में सक्रिय होने लगे। यही दौर था जब योगी आदित्यनाथ सांसद बनने के बाद तेजी से उभर रहे थे। उनका तबके बीजेपी मंत्री शिव प्रताप शुक्त से टकराव हुआ।
शिव प्रताप शुक्ल वर्ष 1989 में पहली बार विधायक बने थे और भाजपा सरकार में मंत्री बने। वह गोरखपुर के सबसे ताकतवर भाजपा नेता माने जाते थे और गोरखपुर में उनकी ही मर्जी चलती थी। धीरे-धीरे भाजपा संगठन में श्री शुक्ल की कार्यशैली को लेकर रोष पनपने लगा। असंतुष्ट, योगी आदित्यनाथ के पास जुटने लगे। मेंयर चुनाव में शुक्ल की पसंद को टिकट मिला जिसका भाजपा कार्यकर्ताओं ने विरोध किया। यह चुनाव भाजपा और योगी आदित्यनाथ द्वारा खड़े किए गए बागी उम्मीदवार के बीच ही होता दिख रहा था लेकिन भाजपा के खिलाफ लोगों के गुस्से ने किन्नर आशा देवी को मेयर बना दिया।
इसके बाद 2002 के चुनाव में योगी आदित्यनाथ ने शिव प्रताप शुक्ल के खिलाफ डा. राधा मोहन दास अग्रवाल को हिन्दू महासभा से चुनाव लड़वाया और जिताया। तबसे डा अग्रवाल तीन और चुनाव 2007, 2012 और 2017 जीत चुके हैं।
विधायक चुने जाने के बाद डा अग्रवाल ने सुरक्षा गार्ड नहीं लिया। वह खुद मारूति 800 ड्राइव करते हुए नगर में देखे जाते हैं। उन्होंने निर्माण कार्यों में लोगों की भागीदार बनाने का अभियान चलाया। विधानसभा में भी वह बेहद सक्रिय रहे। इन कारणों से उन्हें लोकप्रियता मिली।

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इस दौरान उन्होंने अपनी इमेज को खुद एक अलग तरह से गढ़ा। योगी आदित्यनाथ के बाद यदि किसी और भाजपा नेता को मीडिया में सबसे अधिक चर्चा मिलती रही तो वह डा अग्रवाल ही थे। उन्होंने हिन्दू युवा वाहिनी की साम्प्रदायिक राजनीति से अपने को दूर रखा। उन्होंने योगी आदित्यनाथ की मंडली में अपनी एक उदार राष्ट्रवादी नेता की छवि निर्मित की। वह हर तरह की विचारधारा के लोगों से सम्पर्क रखते और उनके कार्यक्रमों में उपस्थिति रहतेे। शहर में बीजेपी के कट्टर विरोधी तमाम लोग कहते सुने जाते कि वे डा अग्रवाल को वोट देते हैं क्योंकि उन्हें उनमें एक आदर्श विधायक नजर आते हैं।
डा अग्रवाल की स्थानीय भाजपा संगठन से कभी नहीं बनी। इसका कारण यह था कि वह संगठन के जरिए लोगों से संवाद बनाने के बजाय सीधे तौर पर संवाद-सम्पर्क बनाते। उन्होंने इन डेढ़ दशकों में अपने सम्पर्क-संवाद का एक समानान्तर नेटवर्क विकसित कर लिया। इससे भाजपा संगठन में उनके प्रति नाराजगी बढ़ती गई और पिछले दो चुनावों में तो भाजपा के स्थानीय संगठन द्वारा उन्हें टिकट न देने की भी खुले तौर से मांग की गई।
शहर के तमाम लोगों को लगता है कि योगी आदित्यनाथ और डा अग्रवाल की राजनीति अलग-अलग है। डेढ़ दशक में कई मौकों पर कई मुद्दों पर दोनों का स्टैंड अलग-अलग रहा और दोनों के बीच शीतयुद्ध गरम होने की खबरें आती रहीं। हर चुनाव में चर्चा जोर पकड़ लेती कि इस बार डा अग्रवाल का टिकट कट जाएगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इस चुनाव में भी यही चर्चा रही। यही नहीं कांग्रेस प्रत्याशी को भाजपा से अंदर से समर्थन की भी बात उठी लेकिन डा अग्रवाल को और ज्यादा अंतर से जीत मिल गई। यह बात और रही कि उनके विरोधी प्रत्याशी को भी पहली बार ज्यादा मत मिले।
भाजपा की सरकार बनने के बाद उम्मीद थी कि चार बार के विधायक और विधानसभा में विधायक दल का मुख्य सचेतक की जिम्मेदारी निभाने वाले डा अग्रवाल को मंत्री बनाया जाएगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ। डा अग्रवाल ने मंत्री बनने की इच्छा को फेसबुक पर यह लिखकर सार्वजनिक किया कि शायद ईश्वर उन्हें इससे बड़ी भूमिका में देखना चाहता है।
यह भी चर्चा है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ विधानसभा में जाने के लिए गोरखपुर नगर से ही चुनाव लड़ेंगे। ऐसा होता है तो जाहिर है कि डा अग्रवाल को यह सीट छोड़नी होगी और तब उन्हें वाकई में किसी बड़ी भूमिका में लाया जाएगा या खामोशी से हाशिए पर भेज दिया जाएगा ?

फिलहाल ये वो सवाल हैं जिन पर शहर के लोग चर्चा करते रहते हैं। पिछले डेढ महीने में नगर विधायक के बदले तेवर ने इन चर्चाओं को और पुख्ता किया है। सबसे पहले उनके बदले तेवर बीआरडी मेडिकल कालेज में एनआरएचएम संविदा कर्मियों द्वारा वेतन न मिलने पर दिए जा रहे धरने में शरीक होने दिखे। इसके पहले एक मई को मजदूर दिवस पर उप श्रम आयुक्त कार्यालय में आयोजित समारोह में डा अग्रवाल ने आरोप लगाया कि श्रम विभाग अपनी योजनाओं को असली लाभार्थियों तक नहीं पहुंचा पा रहा है। उन्होंने इतने सवाल खड़े कर दिए कि उपश्रमायुक्त सफाई देते-देते परेशान हो गए। इसके बाद वसंती कोईलहवा में शराब की दुकान हटाने को लेकर हुए रास्ता जाम, महिलाओं पर पुलिस लाठीचार्ज और इसके बाद डा अग्रवाल और एएसपी के बीच बहस की घटना से तो सभी परिचित हो चुके हैं।

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डा अग्रवाल ने अपने इस बदले तेवर को सरकार के खिलाफ जाने पर सफाई दी है और कहा है कि भाजपा की सरकार है लेकिन व सरकार में नहीं हैं। वह भाजपा विधायक है। वह जैसे पिछली सरकारों को जनमुद्दों पर घेरते थे, उसी तरह अब भी कार्य कर रहे हैं। जनता के सवालों को यदि वह नहीं उठाएंगें तो विपक्ष उठाएगा। ऐसे में वह सरकार व पार्टी के ही पक्ष में कार्य कर रहे हैं।
इस तरह से डा अग्रवाल, गोरखपुर में योगी सरकार के प्रतिपक्ष बन गए हैं। गोरखपुर में विपक्ष इतना बेदम है कि लोगों की समस्याओं, सवालों, आंदोलन में भागीदार होना तो दूर उसे उठा भी नहीं पा रहा है। वैसे भी गोरखपुर और उसके आस-पास के सात जिलों में 41 में

विपक्ष के पास चार ही विधायक हैं। जिसमें से एक अमन मणि भाजपा में ही जाने के लिए उतावले हैं।
मुख्यमंत्री बन जाने के बाद योगी आदित्यनाथ के लखनउ चले जाने से गोरखपुर और आस-पास के जिलों में राजनीतिक शून्यता की भी स्थिति पैदा हो गई है। हिन्दू युवा वाहिनी अपने संरक्षक के आदेश के मुताबिक अपने को ‘ रचनात्मक कार्यों ’ में ढालने में लगी है।
इन परिस्थितियों में विकल्प की राजनीति खड़ी करने और उसे विकसित करने की प्रचुर संभावनाएं हैं। तो क्या डा अग्रवाल के बदले तेवर इसी संभावनाओं को भांप रहे हैं ?

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